उन्होंने कहा कि गुरु लोगों को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश में लाता ही नहीं, बल्कि वह जीवन मूल्य और दृष्टि भी प्रदान करता है। गुरु को हमारी संस्कृति में भगवान का दर्जा दिया गया है। पूरी दुनिया भारत को विश्व गुरु मानती रही है। आज भले ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) जैसे संस्थानों में सूचना प्रौद्योगिकी का जोर हो और आज के स्टुडेंट्स भले ही सर्च इंजन गुगल से तत्काल जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन गुगल गुरु का स्थान नहीं ले सकता है।
उन्होंने मात्रभाषा में शिक्षा देने की वकालत करते हुए कहा, हमें औपनिवेशिक मानसिकता को त्यागकर भारतीय मूल्यों को अपनाना चाहिए। हमारे देश की समृद्ध सभ्यता एवं संस्कृति रही है और अनेक महापुरुषों ने बड़ा योगदान दिया है। आज छात्रों को उनके बारे में पढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि वे अपने देश का पूरा इतिहास नहीं जानते। उन्होंने स्वामी विवेकानंद, रवींद्र नाथ टैगोर, महात्मा गांधी, महर्षि अरविन्द और डॉ राधाकृष्णन की शिक्षा के बारे में दिए गए विचारों को उद्धृत करते हुए कहा कि शिक्षा केवल रोजगार पाने के लिए नहीं, बल्कि एक विवेकवान नागरिक बनाने के किए जरूरी है ताकि देश का सही विकास हो सके और भविष्य भी संवर सके।
उप राष्ट्रपति ने शिक्षा को प्रकृति और संस्कृति से जोडऩे पर बल देते हुए कहा कि शिक्षा नैतिक एवं जीवन मूल्यों का भी निर्माण करती है। इससे पहले मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि शिक्षक जीवन भर शिक्षक ही होता है। वह 25 साल से अगर शिक्षक है तो उसका एक ही पेशा पढ़ाना होता है, वह अपना पेशा नहीं बदलता है। माता-पिता के बाद शिक्षकों का ही जीवन में महत्व होता है क्योंकि वे आपके जीवन को एक दिशा देते हैं।