भारत के सुप्रीम कोर्ट ने देश में जिन ग्रीन और सेफ पटाखों की बात कही है उसका मतलब है कि उन्हें बनाने में ऐसी सामग्री का इस्तेमाल किया जाएगा, जो कम खतरनाक होती है। ग्रीन पटाखों की इस अवधारणा को देश की वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं ने आगे बढ़ाया। इनमें कॉउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) सेंट्रल इलेक्ट्रो केमिकल इंस्टीट्यूट, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, नेशनल बॉटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और नेशनल केमिकल लेबोरेटरी शामिल हैं। सीएसआईआर के नेशनल एनवायर्नमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने तीन-चार रासायनिक सूत्र तैयार किए हैं, जिनमें 30 से 40 फीसदी ऐसी नुकसानदेह सामग्री कम की जा सकती है।
वैज्ञानिकों ने ऐसे बम बनाए हैं, जो आवाज करते हैं, पर माहौल में सल्फर डाईऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं करते। ये धुएं की जगह भाप या हवा छोड़ते हैं। पेट्रोलियम और विस्फोटकों की सुरक्षा से जुड़ा संगठन इन पर परीक्षण कर रहा है। एक अवधारणा ई-कै्रकर या इलेक्ट्रॉनिक पटाखों की भी है। इनमें हाई वोल्टेज माइक्रो जेनरेटर काम करते हैं, जो रह-रहकर तेज आवाज करते हैं। इनमें तार से जुड़े पटाखों की लड़ी होती है, जिसके साथ एलईडी लाइट भी होती है। इनमें धमाके के साथ चमक भी होती है। यह तकनीक महंगी है। भारतीय बाजारों में विदेशी ई-क्रैकर उपलब्ध हैं, पर उनकी कीमत काफी ज्यादा है। चीनी ई-पटाखे भी तीन हजार रुपए या उससे भी ज्यादा दाम के हैं। भारतीय प्रयोगशालाओं ने भी तकनीक विकसित की है, जिनका सीएसआईआर की पिलानी प्रयोगशाला में परीक्षण चल रहा है।
अमरीकी संसद ने ईरान, उत्तर कोरिया और रूस पर पाबंदियां लगाने के लिए वर्ष 2017 में ‘काउंटरिंग अमरीकाज एडवर्सरीज सैंक्शंस एक्ट’ (काट्सा) पास किया था। इसका उद्देश्य यूरोप में रूस के बढ़ते प्रभाव को रोकना भी है। इसकी धारा 231 के तहत अमरीकी राष्ट्रपति के पास किसी भी देश पर 12 किस्म की पाबंदियां लगाने का अधिकार है। अमरीका ने रूस की 39 संस्थाओं को चिह्नित किया है, जिनके साथ कारोबार करने वालों को पाबंदियों का सामना करना पड़ सकता है। भारत के सबसे ज्यादा रक्षा-उपकरण रूसी हैं। इसके तहत अमरीकी राष्ट्रपति के पास राष्ट्रीय हित में किसी देश को इन पाबंदियों से छूट देने का अधिकार भी है।
दूरबीन का आविष्कार का श्रेय हॉलैंड के चश्मा बनाने वालों को जाता है। इटली के वैज्ञानिक गैलीलियो गैलीली ने इसमें बुनियादी सुधार किए। गैलीलियो को लोग एक खगोल विज्ञानी के रूप में याद करते हैं, जिसने दूरबीन में सुधार कर उसे अधिक शक्तिशाली तथा खगोलीय प्रेक्षणों के लिए उपयुक्त बनाया। खगोल विज्ञान को नई दिशा दी और आधुनिक खगोल विज्ञान की नींव भी गैलीलियो ने ही रखी थी।