scriptPolitical Kisse – यूपी के एक ऐसे मुख्यमंत्री, जो सरकारी ताम-झाम से रहे दूर | Political Kisse CM Babu Banarasi Das political Journey from MLA to Chi | Patrika News
चुनाव

Political Kisse – यूपी के एक ऐसे मुख्यमंत्री, जो सरकारी ताम-झाम से रहे दूर

Political Kisse : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के अतरौली गांव में 8 जुलाई 1912 को बाबू बनारसीदास का जन्म हुआ था। पढ़ाई के दौरान ही 15 वर्ष की उम्र में वो स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे। 1928 में नौजवान भारत सभा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बने थे। 12 सितंबर 1930 के गुलावठी में एक भयानक कांड हो गया था। एक सभा के दौरान हुए गोलीकांड में आजादी के 8 दीवाने भी शहीद हुए थे और बाबू बनारसी दास को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

लखनऊDec 01, 2021 / 02:35 pm

Amit Tiwari

babu_banrsi_das.jpg
लखनऊ. Political Kisse : भगवान राम-कृष्ण की धरती उत्तर प्रदेश ने देश को कई महान विभूतियां दी हैं। उन महान हस्तियों में बाबू बनारसी दास गुप्ता का भी एक नाम शामिल हैं। बाबू बनारसी दास यूपी के पहले ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं जो सरकारी ताम-झाम से दूर रहते थे। 1979 में यूपी का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने मुख्यमंत्री के लिए आवांटित सरकारी कोठी 4 कालीदास मार्ग में रहने से इंनकार कर कैंट स्थिति अपने मकान में ही रहना पसंद किया। बाबू बनारसी दास का देश की आजादी में भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। भारत की आजादी के लिए संघर्ष के दौरान बुलंदशहर जेल में बंद रहे बनारसी दास को जेलर ने जामुन के पेड़ पर बांधकर तब तक मारा कि जब तक वह बेहोश नहीं हो गए थे।
किसी पर भी जुल्म होते नहीं देख सकते थे

बाबू बनारसी दास स्वतंत्रता सेनानी थे। फिर यूपी की राजनीति में विधायक से लेकर विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री भी रहे। फिर सांसद से लेकर केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री तक रहे। बाबू बनारसी दास किसी पर भी अत्याचार होते नहीं देख सकते थे। यदि किसी के साथ हो रहे अन्याय की खबर मिलते ही वह खुद ही मौके पर पहुंच जाते थे।
1984 के दंगों में लखनऊ के एक सिख की थी मदद

ऐसा ही एक मामला लखनऊ में देखने को मिला था। वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला बताते हैं कि साल 1984 पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी कुछ सिखों के खिलाफ भी हिंसक घटनाएं हुई। लखनऊ के रानीगंज के एक मकान मालिक ने अपने सिख किराएदार की दुकान का सामान दुकान से बाहर फेंक दिया। इस घटना के कुछ देर ही बाद ही मौके पर पहुंचे बाबू बनारसी दास ने सिख दुकानदार का सामान अंदर रखवाया था।
गुलावठी कांड से उभरा था बाबू बनारसी दास का नाम

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के अतरौली गांव में 8 जुलाई 1912 को बाबू बनारसीदास का जन्म हुआ था। पढ़ाई के दौरान ही 15 वर्ष की उम्र में वो स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे। 1928 में नौजवान भारत सभा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बने थे। 12 सितंबर 1930 के गुलावठी में एक भयानक कांड हो गया था। बाबू बनारसी दास की नेतागिरी में गुलावठी में एक विशाल जनसभा आयोजित हुई थी। यह शांतिपूर्ण थी लेकिन पुलिस ने उस पर हमला कर 23 राउंड गोली चला दी। इस गोलीकांड में आजादी के 8 दीवाने शहीद हो गए थे। इस कांड में पुलिस ने करीब एक हजार लोगों को गिरफ्तार किया और भारी यातनाएं। 45 लोगों पर मुकदमा चला।
100 रुपये जुर्माना न देने पर 6 की जगह 9 महीने जेल में रहे

2 अक्टूबर, 1930 को बनारसी दास को मथुरा से गिरफ्तार करके बुलंदशहर लाया गया। लेकिन जिला और सेशन जज ने बनारसी दास को 14 जुलाई 1931 को छोड़ दिया। हालांकि गुलावठी कांड के कई कैदी 1937 में यूपी में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद ही छूट पाए थे। लेकिन बनारसी दास इसके बाद रुके नहीं। 1935 में क्रांतिकारी अंजुम लाल के साथ उन्होंने एक स्वदेशी स्कूल स्थापित किया। 1930 से 1942 के दौरान ही बनारसी दास चार बार जेल में गए। मार भी खाई, फिर भारत छोड़ो आंदोलन और व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में वे 2 अप्रैल, 1941 को गिरफ्तार हुए। पहले तो उनको छह महीने की सजा दी गई, फिर 100 रुपए का जुर्माना किया गया। लेकिन जुर्माना देने से इंकार करने पर तीन माह की और सजा मिली थी।
बुलंदशहर जेल में जामुन के पेड़ पर बांधकर बेहोश होने तक मारा गया

इसी तरह अगस्त 1942 में भी इनको खतरनाक मानते हुए गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया गया था। बुलंदशहर जेल में इनको इतनी यातनाएं दी गईं कि यूपी में हल्ला मच गया। 5 फरवरी, 1943 को प्रिजनर्स एक्ट के तहत तत्कालीन अंग्रेजी कलेक्टर हार्डी ने रात को जेल खुलवा बनारसी दास को बैरक से निकाल कर एक जामुन के पेड़ से बांध दिया। और कपड़े उतरवाकर तब तक मारा जब तक कि वे बेहोश नहीं हो गए थे। बनारसी दास ने जेल में भी पढ़ाई-लिखाई नहीं छोड़ी थी। इसी दौरान वो पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल, मौलाना आजाद, लाल बहादुर शास्त्री, सरोजिनी नायडू, गोविंद बल्लभ पंत और अब्दुल गफ्फार खान समेत तमाम चोटी के नेताओं के संपर्क में आ चुके थे।
1946 में बुलंदशहर से निर्विरोध बने थे विधायक

1946 के विधानसभा चुनाव में वो बुलंदशहर से निर्विरोध चुने गए थे। इसी साल वे बुलंदशहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बने थे। फिर वो वक्त भी आया जब इनको यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया। रामनरेश यादव के जाने के बाद ये 28 फरवरी 1979 से 18 फरवरी 1980 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वे प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने कालिदास मार्ग की मुख्यमंत्री की सरकारी कोठी के बजाय कैंट के अपने मकान में ही रहना पसंद किया। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने लंबा तामझाम नहीं रखा। बनारसी दास ने खादी और ग्रामोद्योग के विकास के लिए भी उन्होंने बहुत सी योजनाएं चलाईं।
कई सालों तक हरिजन सेवक संघ के रहे थे अध्यक्ष

वे कई सालों तक उत्तर प्रदेश हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष भी रहे। 1977 से वे खादी ग्रामोद्योग चिकन संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष रहे और जनसेवा ट्रस्ट बुलंदशहर के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे थे। बाबू बनारसी दास की संगठन क्षमता मजबूत थी। कांग्रेस में वो जमीनी स्तर से लेकर रणनीति बनाने तक में शामिल रहे। इस तरह उनके पास जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक काम करने का अनुभव था।
60 के दशक में अपनी राजनीति का मनवाया था लोहा

60 के दशक में एक काम ऐसा हुआ कि बनारसी दास की राजनीति का लोहा सबको मानना पड़ा। उस वक्त कांग्रेस की राजनीति में कई धड़े बन गए थे। सब अपना-अपना राग अलापते थे। यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने थे। कहते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ संपूर्णानंद अपने कैंडिडेट मुनीश्वर दत्त उपाध्याय की जीत को लेकर इतने भरोसेमंद थे कि सार्वजनिक रूप से कह दिया था कि अगर उपाध्याय हार गए तो मैं इस्तीफा दे दूंगा और उपाध्याय हार गये थे। बताते हैं कि इसी वजह से उनको इस्तीफा देना पड़ा। भविष्य के मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता अध्यक्ष बने थे। इसके पीछे बनारसी दास ही थे।

Home / Elections / Political Kisse – यूपी के एक ऐसे मुख्यमंत्री, जो सरकारी ताम-झाम से रहे दूर

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो