जोनर : रोमांटिक ड्रामा रेटिंग : 2 स्टार रनिंग टाइम : 135.23 मिनट स्टार कास्ट- अर्जुन कपूर, श्रद्धा कपूर, विक्रांत मैसी, सीमा बिस्वास, रेहा चक्रवर्ती, अनिशा भट्ट यूथ के फेवरिट राइटर्स में से एक चेतन भगत के नॉवल्स पर कई फिल्में बन चुकी हैं, जिनमें ‘हैलो’ फ्लॉप रही तो ‘3 इडियट्स’, ‘काई पो छे’ और ‘2 स्टेट्स’ बॉक्स ऑफिस पर धाक जमाने में कामयाब रहीं। लेकिन जो फिल्में हिट रही हैं, उनमें कहीं न कहीं टाइट स्क्रीनप्ले और परफेक्ट डायरेक्शन का कमाल रहा है। अब चेतन के एक और नॉवल पर फिल्म ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ आई है। यह नॉवल खुद कहीं न कहीं बॉलीवुड मसाला फिल्मों से इंस्पायर्ड रहा है, इसलिए इसमें पिरोई गई कहानी पाठकों के लिए कुछ अलग हटकर नहीं थी। अब इस सीधी-सपाट कहानी पर निर्देशक मोहित सूरी ने फिल्म बनाई है, जिसका सिनेमैटिक इंटरप्रिटेशन और भी नीरस व उबाऊ है। यहां पर डायरेक्टर और उनकी राइटिंग टीम से चूक हो गई, जिससे यह फिल्म हाफ एंटरटेनमेंट भी नहीं देती।
स्क्रिप्ट- बिहार के सिमराव गांव का माधव झा (अर्जुन कपूर) दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में एडमिशन लेता है। बास्केटबॉल खेलने में उस्ताद, माधव अंग्रेजी बोलने में फिसड्डी है। कॉलेज में वह रिया सोमानी (श्रद्धा कपूर) को देखता है और पहली नजर में ही उस पर लट्टू हो जाता है। रिया दिल्ली में पली-बढ़ी रिच फैमिली की मॉडर्न गर्ल है, लेकिन दोनों में एक बात कॉमन है वह है बास्केटबॉल। लिहाजा दोनों बास्केटबॉल फ्रैंड बन जाते हैं। दोस्तों के उकसाने पर माधव रिया से पूछता है कि उन दोनों के रिलेशनशिप का क्या स्टेटस है तो रिया बताती है कि वह उसकी हाफ गर्लफ्रेंड है। इसे माधव के दोस्त इस तरह परिभाषित करते हैं, ‘दोस्त से ज्यादा गर्लफ्रेंड से कम’। यह माधव को गंवारा नहीं होता, इस कारण उससे एक गलती हो जाती है, जिसके बाद रिया माधव को छोड़कर चली जाती है। इसके बाद कहानी कुछ हल्के-फुल्के ट्विस्ट्स और टर्न से गुजरती हुई आगे बढ़ती है।
एक्टिंग भाषा, परिवेश और लहजे को छोड़ दिया जाए तो बिहारी बबुआ के किरदार में अर्जुन ने सहज अभिनय किया है। क्यूट और ब्यूटीफुल श्रद्धा रिया के रोल में ठीक हैं, पर उनके चेहरे के भाव गुमशुदा से हैं। दोनों की कैमिस्ट्री वह कशिश पैदा नहीं करती, जिसकी उम्मीद रोमांटिक फिल्मों में की जाती है। सबसे अच्छी परफॉर्मेंस विक्रांत मैसी की है, जो मााधव के दोस्त शैलेष की भूमिका में हैं। मां के रोल में सीमा बिस्स फिट हैं।
डायरेक्शन मोहित के डायरेक्शन में फ्लो की कमी है। वह फिल्म में वो रूमानियत नहीं ला पाए, जो उनकी पिछली फिल्मों ‘आशिकी 2’ और ‘एक विलेन’ में थी। स्क्रीनप्ले पर काम किए जाने की दरकार थी। फिल्म में रोमांस और इमोशंस तो हैं, पर वह कनेक्ट नहीं करते। गीत-संगीत भी उम्दा नहीं है। महज ‘मैं फिर भी तुमको चाहूंगा’ गाना ही याद रहता है। लोकेशंस और सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है।
क्यों देखें लिखे हुए शब्दों का पिक्चराइजेशन परफेक्ट नहीं हो तो वह असरदार नहीं लगता। वैसे भी साहित्य और सिनेमा भले ही एक-दूसरे से कनेक्ट करते हों, लेकिन माध्यम बिलकुल डिफरेंट हैं। ऐसे में ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ सिनेमाई फलक पर अपनी छाप छोडऩे में नाकाम है। फिल्म बोरिंग से थोड़ी ज्यादा है। अगर आप चेतन की किताबों के भगत हैं और अर्जुन-श्रद्धा के फैन हैं तो ही फिल्म देखने जाएं, वर्ना फिल्म वक्त की बबार्दी सिवा कुछ नहीं है।