‘हाउसफुल’ फ्रेंचाइजी में कॉमेडी, ड्रामा और कन्फ्यूजन होता है। इस सीरीज की फरहाद सामजी निर्देशित फिल्म ‘हाउसफुल 4’ पुनर्जन्म पर आधारित है लेकिन कन्फ्यूजन यहां भी है। फिल्म में माइंडलैस ह्यूमर के ऐसे पटाखे फोड़े गए हैं, जो कभी आनंद देते हैं तो कभी इरिटेट भी करते हैं।
कहानी लंदन में शुरू होती है। हैरी को भूलने की बीमारी है, जिसके कारण वह और उसके भाई मैक्स व रॉय मुसीबत में पड़ते रहते हैं। हैरी से माइकल भाई की बड़ी रकम नष्ट हो जाती है। ऐसे में ये तीनों भाई रईस ठकराल की बेटियों पूजा, कृति और नेहा से शादी करने की जुगत में लग जाते हैं ताकि माइकल भाई के पैसे लौटा सकें। खानदानी गोले के जरिए डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए सितमगढ़ को चुनते हैं। वहां हैरी को 600 साल पहले यानी 1819 में हुई घटना रिकॉल होती है। इसके बाद कहानी में कन्फ्यूजन का सिलसिला शुरू हो जाता है। हालांकि इससे उपजी परिस्थितियां गुदगुदाती हैं।
‘कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है। मतलब जो कांड हमने 600 साल पहले किया था, शायद हम फिर से वही करने जा रहे हैं…’, ‘इसने जेंडर का टेंडर नहीं भरा’ सरीखे वन लाइनर्स, डायलॉग्स व जोक्स कहानी के अनुरूप हैं।
अक्षय टॉप फॉर्म में हैं, खासकर बाला के रोल में उनकी कॉमिक टाइमिंग जबरदस्त है। रितेश ने उनके साथ ताल से ताल मिलाते हुए माहौल में रंग जमाया है। बॉबी देओल निराश करते हैं। कृति सैनन की एक्टिंग ठीक है। पूजा व कृति खरबंदा को ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिला। चंकी, राणा दग्गूबाती, जॉनी लीवर व अन्य कास्ट का काम बढ़िया है।
स्टोरीलाइन वीक है, जिसमें पुनर्जन्म की चाशनी डालकर थोड़ी सी गलफहमियां पैदा की गई हैं। स्क्रीनप्ले न तो क्रिस्प है, न ही ज्यादा मजेदार। फरहाद सामजी ने हास्य परिस्थितियों व कॉमिक पंचेज पर ही फोकस रखा है। निर्देशन ठीक-ठाक है। संगीत अच्छा है। ‘बाला…’ गाना धूम मचा रहा है। मूवी बीच-बीच में बोर करती है। संपादन असंगत है।
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