आज के दौर में बड़े पर्दे पर अब बच्चों से संबंधित फिल्में भी धूम मचा रही हैं। इसी कड़ी में जेजे स्कूल ऑफ आट्र्स के अनुभवी निर्देशक सुहास डी. कडव ने ‘मोटू पतलू’ के निर्देशन का सफल जिम्मा उठाया है, जो बच्चों समेत युवा पीढ़ी को आकर्षित करने वाली है।
बच्चों को गुदगुदाने वाली 109:38 मिनट की कहानी एक सर्कस से शुरू होती है। यहां पर गुड्डू नाम का शेर लोगों को अपने करतब दिखाता है, जिससे वहां की ऑडियंस खुश होती है। तभी एक चूहा गुड्डू की नाक पर आ गिरता है और गुड्डू डर जाता है। इसी दौरान सर्कस में आग लग जाती है और सभी बाहर भागने लगते हैं, उन्हीं लोगों के साथ सर्कस का शेर गुड्डू भी बाहर आ जाता है। अब मानव जाति खुले शेर को देखकर डर जाते हैं और इधर-उधर भागने लगते हैं।
तब मोटू और पतलू की एंट्री होती है और वे दोनों गुड्डू को अपना दोस्त बनाकर उसे नेशनल पार्क में छोड़ने का फैसला करते है। वहीँ दूसरी तरफ नेशनल पार्क में जानवरों का शिकार करने वाले कई शिकारी आ जाते हैं तो वहां का राजा शेर जंगल के सभी जानवरों को बचाता है। इधर, गुड्डू भी वहीं जाने की तैयारी में है और करीब 20 किमी. पहले वह अपनी चाल से मानव जाति को धोखा देकर भाग जाता है।
अब मोटू और पतलू व इंस्पेक्टर को चकमा देकर गुड्डू नौ दो ग्यारह हो जाता है। अब मोटू और पतलू उन्हीं शिकारियों के हाथ लग जाते हैं। अब शिकारियों का सरदार दोनों को जंगल के राजा सिंघा को पकड़ने ले लिए निकल पड़ते हैं और वे नहीं जानते कि सिंघा गुड्डू नहीं, बल्कि जंगल का असली शेर है। इसी के साथ फिल्म आगे बढ़ती है।
एनीमेटेड मोटू और पतलू को पर्दे पर बहुत ही नए और निराले अंदाज में पेश किया गया है। साथ ही सर्कस के शेर को भी बड़े ही मजाकिया तौर पर दिखाने की पूरी कोशिश की गई है। इसके अलावा फिल्म से जुड़े सभी किरदारों ने अपने-अपने कार्यों को बखूबी निभाया है। विदित हो कि इस तरह के विचारों और एनिमेशन की दुनिया में कुछ अलग और नया कर दिखाने के लिए उसमें बोल और आवाज की बहुत ही अहमियत होती है। इस लिहाज से गुलजार ने जो बोल दिए हैं, उनकी तारीफ की जा सकती है। साथ ही विनय पाठक और सौरव चक्रवर्ती की आवाज को भी दर्शकों ने काफी पसंद किया है।
एनिमेटेड फिल्मों के जानकार और करीब 15 वर्षों के हुनरमंद निर्देशक सुहास डी. कडव ने अधिकतर शॉर्ट फिल्मों में ही अपनी किस्मत आजमाई है। उन्होंने पहली बार बच्चों को ध्यान में रखते हुए और उन्हीं की पसंदीदा सिरीज के कार्टून्स को बड़े पर्दे पर दिखाने का भरसक प्रयास किया है। बच्चों को लुभाने के लिए उन्होंने अपने निर्देशन में किसी भी तरह की कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी, साथ ही उन्होंने ऑडियंस का ध्यान आकर्षित करने के लिए एनिमेटेड फिल्म में तरह-तरह का तड़का भी लगाया है। हालांकि इस तरह की फिल्मों में निर्देशक समेत पूरी टीम पर कई तरह की जिम्मेदारियां रहती हैं, फिर भी कुछ अलग दिखाने में पूरी टीम ने अपना शत-प्रतिशत तो दिया है, लेकिन थोड़ा और अलग देखने की चाहत रखने वालों को कहीं न कहीं निराशा भी हाथ लगी है।
‘मानव जाति के मूरख रोता है क्या, अब आगे आगे देखो होता है क्या…’, ‘ कोई समझे न हम जीरो हैं, हम विलेन नहीं हीरो हैं…’ जैसे कई दिल को छू लेने वाले डायलॉग्स दर्शकों को जमकर गुदगुदाते हैं। बच्चों को कुछ सीख देने वाली कार्टूनिस्ट फिल्म पहले हाफ समेत सेकंड हाफ में भी लोगों को अपनी कहानी से बांधे रखती है। बहरहाल, इस तरह की बच्चों से जुड़ी फिल्मों में संगीत (विशाल भारद्वाज) का बड़ा महत्व होता है, जो कई मायनों में सफल भी रहा। इसके अलावा सुखविंदर सिंह, कुणाल गंजावाला के गीत भी ऑडियंस के लुभाते से रहे।
नटखट बच्चे और कार्टून की दुनियां में अपनी खुशी पाने वाले प्रेमी इस फिल्म को थ्री-डी अंदाज में देखने जा सकते हैं। आगे जेब और मर्जी आपकी…!