वर्ष 2012 में आगरा लखनऊ एक्सप्रेस-वे के निर्माण का ऐलान किया गया था। मैनपुरी के मोहब्बतपुर से शुरु होकर औरेया जिले के कुदरैल कठौतिया तक जिले के 40 किलोमीटर से गुजरे इस एक्सप्रेस वे के लिए 315 हेक्टेयर भूमि का गजट प्रकाशित किया गया था। इसके बाद 40 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि की मांग की गई। कुल 22 ग्राम सभाओं के 116 गांव इस अधिग्रहण की भेंट चढ़ गए। हालांकि सबसे अधिक विरोध चौबिया, ताखा और भरथना के किसानों ने किया।
हालांकि एक्सप्रेस-वे का निर्माण पूरा होने के बाद विरोध समाप्त हो गया। अब सरकार ने जब अधिग्रहण पत्रावलियों को तलब किया है तो माना जा रहा है कि भूमि अधिग्रहण के नाम पर हुआ खेल उजागर हो जाएगा। फिलहाल डीएम को पत्र भेजकर शासन ने भूमि अधिग्रहण से जुड़े रिकार्ड उपलब्ध कराने के आदेश दिए हैं।
जांच के दायरे में आएंगी कई परियोजनाएं
आगरा लखनऊ एक्सप्रेस-वे के अलावा जिले में वर्ष 2012 से 2017 तक विभिन्न विकास योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की पत्रावली उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए। इस दौरान जिले में इटावा-मैनपुरी फोरलेन निर्माण, एसएसपी चौराहा से यमुना पुल तक फोरलेन निर्माण, इटावा से आगरा तक साइकिल ट्रैक जैसी योजनाएं धरातल पर नजर आई थी। अधिग्रहण को लेकर फिलहाल असमंजस की स्थिति है। क्योंकि कुछ योजनाओं में सरकार ने भूमि का अधिग्रहण न करके पुरानी सड़क योजनाओं को ही चौड़ीकरण और विस्तारीकरण में शामिल कर लिया था।
पहली बार हो रहा है भूमि अधिग्रहण का ऑडिट
प्रदेश में पहली बार भूमि अधिग्रहण को लेकर ऑडिट की नौबत आई है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा अब तक विकास योजनाओं और घोषित योजनाओं का ही ऑडिट किया जाता रहा है। पहली बार सपा सरकार के पांच साल के कार्यकाल में हुए भूमि अधिग्रहण की जांच से हर ओर खलबली मच गई है। प्रदेश के 32 जिलों में भूमि अध्यापति विभाग के निदेशक ने पत्र भेजकर जिलाधिकारियों से जमीन का रिकार्ड उपलब्ध कराने की मांग की है।
जांच के बाद किसानों को मिलेगा न्याय
किसान सभा के प्रांतीय महामंत्री का मुकुट सिंह यादव का कहना है कि वर्ष 2012 में जैसे ही भूमि अधिग्रहण की शुरुआत हुई थी तो उन्होंने आन्दोलन शुरु किया था। सैफई में विकास प्राधिकरण की स्थापना के नाम पर मोटी रकम अधिग्रहण के लिए दी गई जबकि चौबिया व भरथना के किसानों के साथ नाइंसाफी की गई। अब कैग की जांच के बाद यह पूरा खेल सामने आएगा और किसानों को न्याय मिलेगा।