देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान की नमामी गंगे परियोजना के संरक्षण अधिकारी डा. राजीव चौहान बताते हैं कि जब कभी भी चंबल जैसी नदियों में डैम का पानी छोड़ा जाता है। चंबल में प्रजनन के बाद पैदा हुए घडियाल, मगरमच्छ और कछुए के बच्चे गंदे पानी की भेंट चढ़ जाते हैं जिनका प्रतिशत एक अनुमान के अनुसार करीब सत्तर फीसदी के आसपास होता है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश राज्य में सेंचुरी का संचालन होता है जिसके मुताबिक चंबल नदी में घड़ियालों, मगर, डाल्फिन, कछुये के अलावा करीब दौ सौ से अधिक प्रजाति के वन्य जीवों का संरक्षण मिला हुआ है लेकिन सेंचुरी अधिकारी और कर्मी वन्य जीवों के संरक्षण के नाम पर खुद को मजबूत करने में लगे हुये हैं क्योंकि इन पर किसी का कोई दबाव नहीं है।
जलस्तर बढ़ा
चंबल नदी के पानी से तटीय क्षेत्र के खेत पूरी तरह से जलमग्न हैं। खतरे के निशान को करीब 4 मीटर पार कर चुकी चंबल नदी इंसानी तौर पर नुकसान पहुंचा पाने की दशा में नही होती है क्योंकि इस नदी का प्रभाव रिहायशी इलाके के बजाय पूरी तरह से जंगल यानि बीहडी इलाके से हो करके होता है। इटावा जिले में यमुना, चंबल, क्वारी, सिंध, पहुज, पुरहा, अहनैया, सेंगर और सिरसा कुल नौ नदियां बहती हैं। जिले के आठ विकास खंडों मे बह रही इन नदियों के दोनों ओर करीब 60 गांव बसे हैं। बर्ड सेंचुरी घोषित होने के कारण फिलहाल चंबल नदी में जल यातायात और शिकार प्रतिबंधित है लेकिन यहां नाव के बजाय डोंगियां खूब चलती हैं। अन्य नदियों खासकर पचनद इलाके में लोग सैर सपाटा और पर्यटन के इरादे से रोजाना पहुंचते हैं।