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इटावा

गोपाल दास नीरज के निधन से उनकी जन्मस्थली इटावा में दौड़ी शोक की लहर, अखिलेश यादव ने कहा ये

सभी ने अपने अपने संदेश में नीरज के निधन को बड़ी साहित्यक क्षति बताया है। वहीं अखिलेश यादव ने भी सोशल मीडिया ट्विटर पर दुख जताया है।

इटावाJul 19, 2018 / 10:31 pm

Abhishek Gupta

Gopal Das

Gopal Das

इटावा. देश के जाने माने कवि और गीतकार गोपालदास नीरज अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका आज देर शाम दिल्ली के एम्स में उपचार के दौरान निधन हो गया। नीरज के निधन से इटावा के साहित्य क्षेत्र से जुड़ी हुई हस्तियों में दुःख का माहौल देखा जा रहा है। इटावा के वरिष्ठ कवि कुश चतुर्वेदी, कमलेश शर्मा, डा.राजीव राज और गौरव चौहान ने गोपालदास नीरज के निधन पर शोक जताया है। सभी ने अपने अपने संदेश में नीरज के निधन को बड़ी साहित्यक क्षति बताया है। वहीं अखिलेश यादव ने भी सोशल मीडिया ट्विटर पर दुख जताया है।उन्होंने लिखा है, “महान कवि श्री गोपालदास ‘नीरज’ जी के महाप्रयाण पर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि! उनके अमर गीत हमेशा-हमेशा हमारी स्मृतियों में गूँजते रहेंगे… कारवाँ गुज़र गया…”
https://twitter.com/yadavakhilesh/status/1019965108389203968?ref_src=twsrc%5Etfw
सरकार ने दो बार किया सम्मानित-

गोपालदास नीरज उत्तर प्रदेश के इटावा के बेटे थे। उनका जन्म 4 जनवरी 1925 को बकेवर इलाके के पुरावली गांव में हुआ था। बाद में नीरज अपने परिवार के बाद इकदिल में आकर बसे। नीरज हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक एवं कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य वाचक एवं फ़िल्मों के गीत लेखक रहे हैं। वे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया। पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।
कचहरी से लेकर सफाई विभाग में की टाइपिस्ट की नौकरी-

4 जनवरी 1925 इटावा जिले के पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के जन्म नीरज के पिता मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये । 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डीएवी कालेज में र्क्लक बनें। मेरठ कालेज में हिन्दीं प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया, किन्तु कालेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएँ न लेने व रोमांस करने के आरोप लगाये गये जिससे कुपित होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कालेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।
सिनेमा जगत में मचाया धमाल-

कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया। जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा। किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका जी बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये।
शायरी से लोगों को किया घायल-
नीरज के चंद मशहूर शेर ऐसे है जिनको हर बार सुनने के लिए लोग लालायित रहते हुए नजर आते हैं। उनमें से एक शायरी कुछ यूं हैं-
“इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥”

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