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इटावा

चंबल आर्काइव के संचालक किशन पोरवाल गांधी जी से जुड़े किस्से पर बताई यह बात

1 नवंबर, 1928 को इटावा आए महात्मा गांधी को देखने के लिए अग्रेंजी शासको की पांबदी के बाद भी बड़ी तादाद मे लोग सड़कों पर उतरे थे

इटावाSep 26, 2018 / 02:36 pm

Mahendra Pratap

etawah

चंबल आर्काइव के संचालक किशन पोरवाल गांधी जी से जुड़े किस्से पर बताई यह बात

इटावा. आजादी दिलाने की जंग के नायक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उत्तर प्रदेश मे चंबल इलाके से जुडे इटावा मे आजादी के दीवानो मेंजोश भरने के लिए आये थे। 1 नवंबर, 1928 को इटावा आए महात्मा गांधी को देखने के लिए अग्रेंजी शासको की पांबदी के बाद भी बड़ी तादाद मे लोग सड़कों पर उतर पड़े थे।
इटावा स्थित चंबल आर्काइव के संचालक किशन पोरवाल ने बताया कि गांधी जी की इस यात्रा का जिक्र भरथना के स्वतंत्रता सेनानी छक्की लाल यादव के आजादी के लिखे संस्मरणों में स्पष्ट है। स्वतंत्रता सेनानी छक्की लाल यादव ने अपने संस्मरण मे गांधी जी के इटावा, भरथना, औरैया व कंचौसी के दौरे का उल्लेख किया है। आजादी के आंदोलन में इटावा के लोगों ने उस समय गांधी जी को 8010 रुपये की थैली भेंट की थी। उनके साथ आचार्य कृपलानी भी थे। वे सबसे पहले रेलवे स्टेशन से उतरकर पुराना शहर के बजरिया छैराहा स्थित जुगल बिहारी टंडन जुग्गी लाला की कोठी पर गए। वहां उनका स्वागत हुआ।
कोठी पर कुछ देर रुक कर वे औरैया के लिए रवाना हुए। इकदिल चौराहे पर लोगों ने रोक कर उनका स्वागत भी किया। यहां से वे सीधे इटावा की सबसे बड़ी तहसील औरैया के लिए प्रस्थान कर गए। औरैया में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आंदोलन के दौरान बढ़चढ़कर भाग लिया था। औरैया में ही गांधी जी ने जनसभा को संबोधित किया। यहां पर गेंदालाल दीक्षित ने शिवाजी समिति तथा मातृवेदी नामक संगठन भी बनाया था, जिसके अनुयायियों ने आंदोलन को गति दी थी।
साइमन कमीशन का डटकर विरोध

पोरवाल बताया कि गांधी जी ने लोगों से सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने व साइमन कमीशन का डटकर विरोध करने को कहा था। भरथना, कंचौसी में भी जनसभा को संबोधित किया था। उनका चमत्कारी भाषण लोगों के दिलों को छू गया। परिणाम यह हुआ कि वर्ष 1931 और 1942 के आंदोलन में इटावा में क्रांति सी आ गई। हर तरफ आजादी हासिल करने का जज्बा ही दिखाई दे रहा था। गांधी जी का ही असर था कि पूंजीवादी वर्ग ने भी विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। गांधी का चरखा हर कांग्रेस कार्यकर्ता के घर पहुंच गया। आज भी इटावावासी इस बात से रोमांचित हैं कि पूरी दुनिया को सत्य अंहिसा और बंधुत्व का संदेश देने वाला यह महापुरुष कभी जिले में आया।
चंबल के बागियों का लड़ाई में सहयोग

पोरवाल कहना है कि स्वतंत्रता आदोलंन के दौरान साल 1914-15 में क्रान्तिकारी गेंदालाल दीक्षित ने चंबल घाटी में क्रान्तिकारियों के एक संगठन मातृवेदी का गठन किया। इस संगठन मे हर उस आदमी की हिस्सेदारी का आवाहन किया गया, जो देश हित में काम करने का इच्छुक हो। इसी दरम्यान सहयोगियों के तौर चंबल के कई बागियों ने अपनी इच्छा आजादी की लड़ाई मे सहयोग करने के लिये जताई।
ब्रहमचारी नामक चंबल के खूखांर डाकू के मन में देश को आजाद कराने का जज्बा पैदा हो गया और उसने अपने सैकड़ों से ज्यादा साथियों के साथ मातृवेदी संगठन का सहयोग करना शुरू कर दिया। ब्रहमचारी डकैत के क्रान्तिकारी आंदोलन से जुड़ने के बाद चंबल के क्रान्तिकारी आंदोलन की शक्ति काफी बढ गई। ब्रिटिश शासन के दमन चक्र के विरूद्ध प्रतिशोध लेने की मनोवृत्ति तेज हो चली। ब्रहमचारी अपने बागी साथियो के साथ चंबल के ग्वालियर मे डाका डालता था और चंबल यमुना मे बीहडो मे शरण लिया करता था। ब्रहमचारी ने लूटे गये धन से मातृवेदी संगठन के लिये खासी तादात मे हथियार खरीदे। केवल एक ही दफा इटावा आये गांधी जी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगा लगाया जा सकता है कि उनके आने पर ना केवल जोरदार स्वागत हुआ, बल्कि भारी जन सैलाब भी उमड़ पड़ा था। अपने स्वागत के दौरान गांधी जी ने यहां के आजादी के मतवालो में खूब जोश भरने का काम किया था।
गांधी जी ने वर्ष 1921 में जब असहयोग आंदोलन चलाया था, तो इटावा के जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मौलाना रहमत उल्ला के नेतृत्व में यहां के कांग्रेसजन ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। वर्ष 1922 में हुए काकोरी कांड में जिले के ज्योति शंकर दीक्षित और मुकंदीलाल गिरफ्तार हुए थे। गांधी जी इटावा की इस देश भक्ति से परिचित थे और पूरे देश भर में जन जागरण अभियान पर निकल पड़े थे। 1 नवंबर 1928 को इटावा में गांधी जी का आगमन हुआ था।
इटावा स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बड़ा महत्वपूर्ण शहर था। 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां के कलक्टर ए ओ ह्यूम ने पूरी ताकत के साथ इस आंदोलन को कुचलना चाहा था। लेकिन इटावा की चकरनगर रियासत के राजा निरंजन सिंह जूदेव के जाबांज सैनिकों ने एक स्थिति ऐसी ला दी कि कलक्टर ह्यूम को बुर्का पहनकर भागना पड़ा।
यहीं से ह्यूम का हृदय परिवर्तन हुआ और भारतीय जनमानस और उसकी समस्याओं के साथ उन्हें आत्मीयता का पाठ इटावा की धरती ने पढ़ाया।

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