इटावा नगर में यह सौभाग्यशाली पेड़ वन विभाग परिसर मे मौजूद है, इनमें एक तो प्रवेश द्वार पर ही और दूसरा कुछ दूरी पर वन अधिकारी के सरकारी आवास परिसर में मौजूद है। आज़ादी से पहले जब वन विभाग की स्थापना की गयी, तो उस समय भी ये पेड़ यहीं पर स्थापित मिला। उस समय इटावा वन विभाग दक्षिणी दुआव रेंज मे आता था। आवास विकास परिसर मे रहने वाले नियमिति पूजापाठ करने के लिए पेड़ से आते हैं।
हर मनोकामना होती है पूरी मान्यता है कि इस पेड़ के नीचे शुद्ध मन से कोई भी व्यक्ति मनोकामना करता है,तो वह जरूर पूरी होती है। अन्य पेड़ों की तरह कल्पवृक्ष में भी पत्ते और फूल आते हैं, लेकिन इसके फल के बारे में कहा जाता है कि यह बड़ा ही चमत्कारी और दुर्लभ होता है। कहा जाता है कि कल्पवृक्ष में बारह वर्ष के बाद बैगनी रंग का एक फल लगता है, जो आकार में पवित्र फल नारियल के समान होता है, लेकिन यह अदृश्य ही रहता है। कहा जाता है कि जिसके भाग्य में होता है यह फल उसे ही मिलता है, कहा जाता है कि जिस किसी व्यक्ति को कल्पवृक्ष से गिरा फल मिलता है, उस व्यक्ति का परिवार काफी समृद्धशाली हो जाता है।
इटावा के जिला वन विभाग परिसर मे विभागीय स्तर पर लगाई गई सिलापटटिका मे इसके वास्तविक महत्व को उल्लेखित किया गया है लेकिन इन दोनो अहम पेडो के बाबत यह नही बताया जा सकता है। कल्पवृक्ष की उत्पत्ति के पीछे किदवंती है कि एक बार देवतागण जब असुरों से पराजित होने के बाद बहुत ज्यादा दुखी हुए और असुरों से जीतने का कोई उपाय नहीं सूझा, तब सभी देवतागण ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। लेकिन उस समय ब्रहमा जी सुमेर पर्वत पर सभा कर रहे थे और सभा समापन के बाद देवताओं की ओर मुखतिब होकर ब्रह्मा जी ने देवताओं से अपने पास आने का कारण जानने का प्रयास किया। तब ब्रह्मा जी ने देवताओं को असुरों से जीतने का उपाय बताया कि समुद्र मंथन के दौरान उसमें से जो रत्न निकलेंगे उनमें से अमृत भी निकलेगा। इसका पान करने से वह अमर हो जायेंगे तभी वह असुरों को पराजित कर पाने में सफल हो सकेंगे। ब्रह्मा जी की बात सुनने के बाद जब देवताओं ने असुरों के साथ समुद्र मंथन में भाग लिया, तो उसमें से जो 14 रत्न निकले उनमें से एक कल्पवृक्ष भी था।
इस पेड़ के दर्शन करना सौभाग्य समझते हैं लोग ऐसी मान्यता है कि कल्पवृक्ष ऐसा वृक्ष है, जिसके दर्शन करने पर लोग इसे अपना सौभाग्य समझते हैं। हैरत है कि इटावा में इस पेडं के होने की जानकारी ज्यादातर लोगों को नहीं है, यदि वह यहां स्थित शिला पट्टिका का अध्ययन कर लें, जिसकी सरकारी स्तर पर वन विभाग ने भी पुष्टि की है, तो शायद वह भी इस पेड़ की महत्ता के बारे में जान जाएंगे। नेशनल हाइवे पर कानपुर-आगरा मार्ग से रोजाना ही जाने-अनजाने में कल्पवृक्ष की सड़क तक फैली शाखाओं के नीचे होकर आने-जाने से ही सैकडो़ लोगों का कल्याण हो ही जाता है। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो वन विभाग परिसर में कदम रखते हैं, जो इसके पास बने पक्के चबूतरे पर कुछ देर के लिए बैठ तो जाते हैं,लेकिन इतने भर से उस दिन इनका कुछ न कुछ लाभ तो होता ही होगा, लेकिन इस सबके लिए मन पूरी तरह से शुद्ध होना चाहिए तभी कल्याण संभव है।
इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है इटावा के जिला वन अधिकारी रमेश कुमार बताते है कि ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है । यह यूरोप के फ्रांस व इटली में बहुतायत मात्रा मे पाये जाने के साथ-साथ यह दक्षिण अफ्रीका और आस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है । भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है। इस अहम पेड को फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने 1775 में अफ्रीका में सेनेगल में सर्वप्रथम देखा था, इसी आधार पर इसका नाम अडनसोनिया टेटा रखा गया। इसे बाओबाब भी कहते हैं।
वृक्षों और जड़ी-बूटियों के जानकारों के मुताबिक यह एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है। जिसकी टहनी लंबी होती है और पत्ते भी लंबे होते हैं। दरअसल, यह वृक्ष पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है और इसके पत्ते कुछ-कुछ आम के पत्तों की तरह होते हैं। इसका फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी- सी गेंद में निकले असंख्य रुओं की तरह होता है। पीपल की तरह ही कम पानी में यह वृक्ष फलता-फूलता हैं। सदाबहार रहने वाले इस कल्पवृक्ष की पत्तियां बिरले ही गिरती हैं, हालांकि इसे पतझड़ी वृक्ष भी कहा गया है। कल्पवृक्ष की औसत जीवन अवधि 2500-3000 साल है। कार्बन डेटिंग के जरिए सबसे पुराने फर्स्ट टाइमर की उम्र 6,000 साल आंकी गई है। पद्मपुराण नाम ग्रंथ के अनुसार परिजात ही कल्पवृक्ष है ।