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इटावा

इटावा में मुकाबला त्रिकोणीय, प्रसपा प्रत्याशी बिगाड़ सकता है सबका खेल

कभी एओ ह्यूम के शहर के रूप मे पहचाने जाने वाले इटावा संसदीय सीट पर कांग्रेस, भाजपा और सपा के बीच चल रही जोरअजमाइश के बीच पीएसएस भी अपनी ताकत दिखाने में जुटी है।

इटावाApr 26, 2019 / 02:16 pm

आकांक्षा सिंह

lucknow

इटावा में मुकाबला त्रिकोणीय, प्रसपा प्रत्याशी बिगाड़ सकता है सबका खेल

दिनेश शाक्य

इटावा. कभी एओ ह्यूम के शहर के रूप मे पहचाने जाने वाले इटावा संसदीय सीट पर कांग्रेस, भाजपा और सपा के बीच चल रही जोरअजमाइश के बीच पीएसएस भी अपनी ताकत दिखाने में जुटी है। भाजपा ने इटावा से अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. रामशंकर कठेरिया को चुनावी मैदान में उतारा है, जो अपने आप को सबसे प्रभावी उम्मीदवार बता रहे हैं। आगरा से दो बार सांसद रह चुके कठेरिया का गृह जिला इटावा ही है लेकिन उन्होंने कर्मभूमि आगरा को बनाया।

डा. रामशंकर को सपा बसपा गठबंधन प्रत्याशी कमलेश कठेरिया और पिछली बार भाजपा से सांसद रहे कांग्रेस प्रत्याशी अशोक दोहरे टक्कर दे रहे हैं। इटावा गृह जिले में शिवपाल सिंह यादव के काम और उनके नाम के दम पर प्रसपा प्रत्याशी शंभूदयाल दोहरे मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने के प्रयास में जुटे हैं। मुलायम सिंह का गृह जिला होने के कारण सपा के लिए ये सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न है। 15 चुनावों में पांच बार मुलायम सिंह का ही इस सीट पर जादू चला। उनकी अगुवाई वाली सपा के प्रत्याशी ने चार और जनता दल ने एक बार सीट जीती। पिछली बार भाजपा ने 1,72,946 वोटों के बड़े अंतर से यह सीट सपा से छीन ली थी। इसी कारण भाजपा इस सीट पर पूरी ताकत लगा रही है।


कांग्रेस इस सीट पर 35 साल से जीत के लिए तरस रही है। दोहरे बाहुल्य सीट पर इस बार पार्टी ने सांसद अशोक दोहरे को मैदान में उतारा है। दोहरे पिछली बार भाजपा के टिकट पर जीते थे। अब कांग्रेस दोहरे की बदौलत यहां पासा पलटने की उम्मीद कर रही है। 1957 में बनी इटावा सीट पर कांग्रेस पहले ही चुनाव में हार गई थी। उसे तीन बार 1962, 71 और 84 में यहां जीत मिली। जबकि भाजपा केवल दो बार 1998 और 2014 में जीत पाई। 1957 में सोशलिस्ट पार्टी, 1967 में समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी, 1977 में बीकेडी, 1980 में जनता पार्टी सेक्युलर, 1989 में जनता दल, 1996, 1999, 2004 व2009 में सपा ने चुनाव जीता। 1991 में बसपा के तत्कालीन अध्यक्ष कांशीराम सांसद चुने गए।


2019 के प्रत्याशी
बीजेपी- रामशंकर कठेरिया
कांग्रेस- अशोक दोरहे
गठबंधन- कमलेश कठेरिया
प्रसपा- शंभू दयाल दोहरे


2014 का इतिहास
अशोक कुमार (बीजेपी)- 4,39,646 वोट
प्रेमदास कठेरिया (सपा)- 2,66,700 वोट,
अजय पाल सिंह जाटव (बसपा)- 1,92,804 वोट
हंसमुखी कोरी (कांग्रेस) 13000 वोट


जातीय समीकरण
कुल मतदाता- 17 लाख
दलित मतदाता- 4 लाख
ब्राह्मण मतदाता- 2 लाख
यादव मतदाता- 1.80 लाख
मुस्लिम मतदाता- 1.30 लाख


रामशंकर कठेरिया अपनी जीत को लेकर निश्चिंत हैं। बीजेपी उम्मीदवार रामशंकर कठेरिया कहते हैं कि इस बार पिछली बार से बड़ी जीत हासिल होगी, क्योंकि शिवपाल यादव की पार्टी के उमीदवार गठबंधन के वोट काटेंगे। उधर, डा. रामशंकर कठेरिया को गठबंधन के उम्मीदवार कमलेश कठेरिया चुनौती दे रहे हैं। वहीं बसपा का गठबंधन होने से कमलेश कठेरिया की उम्मादें दलित, यादव और मुस्लिम वोटों पर टिकी हैं। साथ ही राम शंकर कठेरिया पर बाहरी उम्मीदवार का ठप्पा भी लगा है। गठबंधन के उम्मीदवार कमलेश कठेरिया कहते हैं कि रामशंकर कठेरिया आगरा से आए वो वहीं चले जाएंगे। यहां से गठबंधन को जीत हासिल होगी। हालांकि दलित वोटरों पर अगर दोहरे उम्मीदवारों ने सेंध लगाई तो इसका फायदा या नुकसान कठेरिया उम्मीदवारों को हो सकता है लेकिन अशोक दोहरे अपनी जीत को लेकर खासा भरोसा है। कांग्रेस के प्रत्याशी अशोक दोहरे कहते हैं कि हम दो लाख वोटों से इटावा में जीत रहे हैं। हमारा मुकाबला किसी से नहीं है। इटावा में हर पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है।

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