कुछ वर्षों पूर्व जब दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के कैरेबियन देश त्रिनिदाद, क्रिकेट की शब्दावली में वेस्टइंडीज का एक देश से रामलीला पर शोध कर रही डा. इंद्राणी रामप्रसाद जब यहां का रामलीला का प्रदर्शन देखने जसवंतनगर आई तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई। रामलीला का प्रदर्शन इस तरह भी हो सकता है। बाद में दुनिया की 400 रामलीलाओं का अध्ययन करने के बाद उन्होंने जब अपनी थीसिस लिखी तो उसमें जसवंतनगर की मैदानी रामलीलाओं को उन्होंने दुनिया की सबसे बेहतरीन रामलीला बताते हुए विभिन्न रामलीलाओं का वर्णन किया।
त्रिनिनाद की डा.इंद्राणी रामप्रसाद कर चुकी हैं शोध
डा इंद्राणी रामप्रसाद को त्रिनिनाद विश्वविद्यालय से रामलीला के प्रदर्शन विषय पर डाक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने इसके बाद पूरी दुनिया के विभिन्न देशों में हिंदू समुदाय के लोगों तक इस रामलीला की खूबियों और आकर्षण को पहुंचाने का काम किया। इसके बाद ही लोग समझ सके कि जसवंतनगर की रामलीला दुनिया में बेजोड़ है।
2010 से यूनेस्का में शामिल है रामलीला
दुनिया भर में जहां-जहां रामलीलाएं होती है, इस तरह की रामलीला कहीं भर भी नहीं होती है। इसी कारण साल 2010 में यूनेस्को की ओर से रामलीलाओ के बारे जारी की गई रिर्पोट मे भी इस रामलीला को जगह दी जा चुकी है। 164 साल से अधिक का वक्त बीत चुकी इस रामलीला का आयोजन दक्षिण भारतीय तर्ज पर मुखोटो को लगाकर खुले मैदान मे किया जाता है। त्रिनिदाद की शोधार्थी इंद्राणी रामप्रसाद करीब 400 से अधिक रामलीलाओ पर शोध कर चुकी हैं लेकिन उनको जसवंतनगर जैसी होने वाली रामलीला कहीं पर भी देखने को नहीं मिली।
164 साल की यात्रा पार चुकी है रामलीला
रामलीला का इतिहास करीब 164 वर्ष पुराना है और ये खुले मैदान में होती है। यहां रावण की आरती उतारी जाती है और उसकी पूजा होती है। हालांकि ये परंपरा दक्षिण भारत की है लेकिन फिर भी उत्तर भारत के कस्बे जसवंतनगर ने इसे खुद में क्यों समेटा हुआ है ये अपने आप में ही एक अनोखा प्रश्न है। जानकार बताते है कि रामलीला की शुरुआत यहां 1855 में हुई थी लेकिन 1857 के गदर ने इसको रोका फिर 1859 से यह लगातार जारी है।
रामलीला के मुखोटे हैं खास
विश्व धरोहर में शामिल जमीनी रामलीला के पात्रों से लेकर उनकी वेशभूषा तक सभी के लिए आकर्षक का केन्द्र होती है। भाव भंगिमाओं के साथ प्रदर्शित होने वाली देश की एकमात्र अनूठी रामलीला में कलाकारों द्वारा पहने जाने वाले मुखौटे प्राचीन तथा देखने में अत्यंत आकर्षक प्रतीत होते हैं। इनमें रावण का मुखौटा सबसे बड़ा होता है तथा उसमें दस सिर जुड़े होते हैं। ये मुखौटे विभिन्न धातुओं के बने होते हैं तथा इन्हें लगा कर पात्र मैदान में युद्ध लीला का प्रदर्शन करते हैं। इनकी विशेष बात यह है कि इन्हें धातुओं से निर्मित किया जाता है तथा इनको प्राकृतिक रंगों से रंगा गया है। सैकड़ों वर्षों बाद भी इनकी चमक और इनका आकर्षण लोगों को आकर्षित करता है।
नहीं होता है रावण वध
सारे देशभर की रामलीलाओं के मुकाबले जसवंतनगर की रामलीला बिल्कुल ही जुदा मानी जाती है। इसके जुदा होने के पीछे रामलीला के कू्रर लेकिन सबसे अहम पात्र रावण का रक्षक की भूमिका मे खड़ा होना। रावण की न केवल पूजा की जाती है बल्कि पूरे शहर भर मे रावण की आरती उतारी जाती है सिर्फ इतना ही नहीं रावण के पुतले को जलाया नहीं जाता है लोग पुतले की लकड़ियों को अपने अपने घरो मे ले जा करके रखते है ताकि वे साल भर हर संकट से दूर रह सके।
प्रशासनिक अनुमित न मिलने के कारण रद्द रामलाली आयोजन रद्द
रामलीला कमेटी के व्यवस्था प्रभारी अजेंद्र सिंह गौर का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित एवं युद्ध प्रदर्शन की प्रधानता वाली रामलीला को कोरोना काल में आयोजन के लिए प्रशासनिक अनुमित न मिलने के कारण रद्द कर दिया गया है। वहीं जसवंतनगर उपजिलाधिकारी ज्योत्सना बंधु ने कहा कि रामलीला कमेटी की ओर से अनुमति का अनुरोध किया गया था चूंकि बड़ी तादात में लोगों के हिस्सेदारी होती है और प्रबंधन की ओर से संख्या का कोई निर्धारण नहीं किया जा सका, इसलिए रामलीला आयोजन की अनुमति नहीं दी गई है।