जोबिक पार्टी रही दूसरे स्थान पर
मिली खबरों के अनुसार वहां की दक्षिणपंथी दल जोबिक पार्टी को 20 फीसदी वोट मिले हैं और वह दूसरे स्थान पर है, जबकि एमएसजेडपी-पी पार्टी 12.13 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। इसके अलावा दो अन्य पार्टियां भी संसद में पहुंचने में कामयाब रही हैं। इनमें एलएमपी को 6.69 फीसदी, जबकि डीके (डेमोक्रेटिक गठबंधन) को 5.45 फीसदी वोट मिले।
1989 से हैं ओरबान सत्ता में
मालूम हो कि हंगरी में 1989 में कम्युनिज्म के खत्म होने के बाद से ओरबान वहां के प्रमुख बने हुए हैं। इससे पहले वह तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं और इस जीत के बाद वह चौथे कार्यकाल के लिए दावा ठोकेंगे।
विपक्षी दलों का बिखराव रहा प्रमुख कारण
ओरबान की जीत के पीछे वामपंथी और उदारवादी दलों का बिखराव बड़ा कारण रहा। विपक्ष के वोट बंटने की वजह से सत्ताधारी पार्टी को अप्रत्याशित जीत मिलती रही है। ओरबान को सही मायने में चुनौती तभी मिल सकती थी, जब वामपंथी गठबंधन को दक्षिणपंथी जॉबिन पार्टी का भी समर्थन मिले। आशंका जताई जा रही थी कि वैचारिक स्तार पर दो ध्रुवों पर खड़ी यह पार्टियां कभी साथ नहीं आएंगी और ऐसा ही हुआ। इस कारण ओरबान की राह आसान हो गई।
ऐसे होता हंगरी में चुनाव
हंगरी में संसद की कुल सीटें 199 हैं। इनमें से 106 सीटों पर भारत की ही तरह चुनाव क्षेत्रों में सीधे बहुमत के आधार पर फैसला होता है, जबकि 93 सीटों पर सामानुपातिक पद्धति से जीत हार तय होता है। 2014 के चुनावों में सिर्फ 43 फीसदी वोट पाने के बावजूद फिडेज पार्टी 106 में से 96 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।