साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि कुंवर नारायण के जाने से साहित्य जगत में शोक की लहर ” आत्मजई ” काव्य संग्रह भी अद्भुत किस्म की रवानी लिए हुए कविता की परंपरा को एक नई ताजगी देती है, नया जीवन देता है. ” आकारों के आसपास ” और ” अपने सामने ” ने भी उनकी काव्य विधा की ओर उर्वर मेधा को मज़बूती से बयां किया है.आज उनके निधन से साहित्य जगत का एक सितारा टूट कर उस दुनिया में कहीं खो गया जहां से कोई कभी लौट कर नहीं आता . फैजाबाद शहर के ह्रदय स्थल चौक इलाके में एक कारोबारी परिवार में 19 सितंबर, 1927 को जन्में कुंवर नारायण ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वर्तमान से करीब 6 दशक पूर्व अपने परिवार के साथ लखनऊ चले गए और फिर लखनऊ के होकर रह गए जहां से उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में पोस्ट ग्रैजुएशन किया था.मूल रूप से कारोबारी परिवार से जुड़े कवि कुंवर नारायण का मन व्यवसाय में नहीं लगा और उन्होंने साहित्य जगत से अपना गहरा नाता जोड़ लिया . साल 1995 में उन्हें
साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला, वहीं 2005 में उन्हें साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया .उनके साहित्य में योगदान के लिए भारत सरकार ने 2009 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था . बीते काफी समय से कवि कुंवर नारायण अस्वस्थ चल रहे थे और लम्बे इलाज के बाद उनका निधन हो गया ,उनके निधन पर साहित्य जगत में शोक की लहर है .