ताजिया उठाने की बुनियाद डाली गई
बताया जाता है कि 1980 में जब मुरादाबाद में हिन्दु-मुस्लिम दंगे की लपेट में पूरा प्रदेश सुलग रहा था, तब मिर्जा अशरफ अली बेग के बड़े भाई और पं. रामकृपाल मिश्रा ने प्रदेश और देश के माहौल में गंगा-जमुनी धारा से अमन और शांति कायम रखने और अच्छा माहौल बनाए जाने की दिशा में एक कदम बढ़ाया था। मोहर्रम कमेटी ने रामलीला में झांकी निकाली और दरगाहे सत्तारिया से पं. रामकृपाल ने ताजिया उठाने की बुनियाद डाली। इस अनूठी पहल का प्रसारण दूरदर्शन पर हुआ था और तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस प्रयास की मुक्तकण्ठ से सराहना की।
हिन्दू मुस्लिम एकता को मिला बल
1988 में जब परेड ग्राउण्ड को रामलीला को न देने का प्रश्न उठा तो उस समय रामलीला संघर्ष समिति के सदस्य की हैसियत से पंडित रामकृपाल मिश्रा, बाबू पातीराम, पूर्व विधायक और दरगाह-ए-सत्तारिया के सज्जादानशीन मिर्जा हसन अशरफ उर्फ प्यारे मियां, खुर्शीद आलम खां के नेतृत्व में रक्षामंत्री के.सी. पन्त से मिलकर ऐतिहासिक रोल अदा किया। जिस कारण आज भी परेड ग्राउण्ड रामलीला परिषद को मिल रहा है और इस कारण फर्रुखाबाद की हिन्दू मुस्लिम एकता को बल मिला है।
ये तमाम लोग हुए शामिल
ताजिया उठाने वालों में रामलीला परिषद के संरक्षक नारायण त्रिवेदी टल्ल मास्टर, एक अन्य संरक्षक मुन्नालाल वाष्र्णेय, महामंत्री पंकज अग्रवाल, चमन टण्डन कोषाध्यक्ष, रवीन्द्र कुमार वैश्य मंत्री, अतुल मिश्रा मंत्री, रतिपाल श्रीवास्तव उपाध्यक्ष, अमन गुप्ता मंत्री, मोहर्रम कमेटी के अध्यक्ष मोहम्मद शमशाद, उमेश चतुर्वेदी, नसीम अहमद सहित तमाम लोग शामिल थे। कौमी यकजहती की इस मिसाल को देखने के लिए सड़कों को किनारे खड़े रहे और स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते रहे। ऐसा फर्रुखाबाद ही नहीं कमालगंज में भी गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल देखने को मिलती है। रामलीला में जब मुसलमान रामचरित मानस का किरदार निभाते हैं तो धर्म…मजहब की दीवारें ढह जाती हैं।