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फर्रुखाबाद

ब्राह्मणों ने अपने पापों को नष्ट करने के लिए गंगा घाट पर किया वैदिक स्नान, मन को मिली शान्ति

रक्षाबंधन के त्यौहार पर जिले में वर्ष में एक बार सभी ब्राह्मण गंगा घाट पर एकत्र होकर श्रावणी उपाकर्म मनाते हैं।

फर्रुखाबादAug 27, 2018 / 05:49 pm

Mahendra Pratap

raksha bandhan 2018 brahmin vaidik snan latest news in hindi

श्रावणी उपाकर्म में ब्राह्मणों ने अपने पापो को नष्ट करने को किया वैदिक स्नान, मन को मिली शान्ति

फर्रुखाबाद. रक्षाबंधन पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं जिले में वर्ष में एक वार सभी ब्राह्मण गंगा घाट पर एकत्र होकर श्रावणी उपाकर्म मनाते हैं। उनका मानना है साल भर में जाने अनजाने में लाखों गलत कार्य इस शरीर से हो जाते है जिनको जिनको समाप्त करने व उनसे बचने के लिए वैदिक मंत्रों के द्वारा दस प्रकार के स्नान गंगा के जल से करते हैं। वहीं साल भर पहनने के लिए यज्ञ में आहुति डालकर जनेऊ हो अभिमन्त्रित करते है। जो लोग इस कार्य मे हिस्सा नहीं ले पाते वह अपने जनेऊ खरीदकर भेज देते हैं। आचार्यो का मानना है कि सावन की पूर्णिमा पर स्नान सभी गंगा में करते हैं लेकिन इस प्रकार से स्नान करना हर भक्त नहीं चाहता है।

कौन कौन से है दस स्नान

सभी आचार्यगण अपने बस्त्रों को उतारकर जल में प्रवेश करते हैं। उसके साथ पैती, जोकि कुश से बनाई जाती है। वह दस वस्तुओं को एक टेबल पर सजाकर जल में रखते हैं। सभी हाथ में जल लेकर पहले संकल्प करते हैं फिर स्वास्ति वाचन के बाद से स्नान करना शुरू करते हैं।दही स्नान, गौ मूत्र स्नान, गौ रज स्नान, फल स्नान, जौ स्नान, भस्म स्नान, गौ गोबर स्नान, मिट्टी स्नान, पुष्प स्नान, पनच्यगव्य स्नान करते हैं। हर स्नान का वैदिक मन्त्र आचार्यो द्वारा पढ़कर किया जाता है।

कौन कौन से पापों की करते क्षमा प्रार्थना

आचार्य ओंकार नाथ शास्त्री ने बताया कि कोई भी इंसान हो उसके पैर के नीचे चींटी दबकर मर जाती है वह पाप लग जाता है वैसे ही किसी इंसान पर अपनी गुस्सा प्रकट करना, अपनी आंखों से गलत देखना, गलत भोजन करना, किसी को गलत राय देना, किस को सही रास्ता न बताना इस प्रकार से लाखों पाप हम लोगों से हो जाते हैं। उनके नस्ट करने लिए ही इस श्रावणी उपाकर्म को मनाया जाता है।

जानिए ऐसे कौन से ऋषि व देवता जिनका साल में एक बार तर्पण व पूजन किया जाता

श्रावणी पूर्णिमा के दिन आचार्यो द्वारा स्नान करने के उपरांत यज्ञ का आयोजन किया जाता है लेकिन उससे पहले सभी देवताओं व सप्त ऋषियों व पूर्वजो को खुश करने के लिए तर्पण किया जाता है। उसके बाद नए बस्त्रों को धारण करने के बाद यज्ञ प्रारम्भ करते हैं। जिनमें सप्त ऋषियों का विशेष पूजन किया जाता है क्योंकि उन ऋषियों के वंशज होने के कारण ही सभी ब्राह्मणों के गोत्र बने हुए हैं। उन्ही से पहचान है ब्राह्मणों की, उसी से वह ब्राह्मणों के पूर्वजो के तौर पर भी पूजे जाते हैं। यज्ञ की प्रक्रिया अन्य यज्ञ की तरह होती है लेकिन मान्यता सप्त ऋषियों को दी जाती है।

देश के कुछ स्थानों पर मनाई जाती है श्रावणी उपाकर्म

देश भर में हजारों स्थानों से मां गंगा का विचरण होता है लेकिन सावन की पूर्णिमा क्यों खास है यह बहुत ही कम लोग जानते है जिसका कारण वर्तमान में लोग अपनी वैदिक संस्कृति को भूलने लगे हैं। यह कार्यक्रम पहले हर घर में मनाया जाता था। उस समय के राजा ऋषियों के आश्रमों में जाकर इस कार्यक्रम का आयोजन कराते थे लेकिन अब नहीं हो रहा है। राजाओं को अपने कार्यो से फुर्सत नहीं है। यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के बनारस, इलाहबाद, हरिद्वार आदि तीर्थ स्थानों पर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हजारों की संख्या में आचार्यो से लेकर अन्य लोग अपनी भागीदारी करते हैं। फर्रुखाबाद में भी इसका आयोजन आचार्य प्रदीप नारायण शुक्ल के द्वारा विगत पांच वर्षों से किया जा रहा है। हर वर्ष लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।

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