scriptचित्रगुप्त जयंती : इनकी दृष्टि से कोई नहीं बच पाता, जानें कैसे हुई भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति | bhagwan chitragupt jayanti 11 may 2019 | Patrika News
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चित्रगुप्त जयंती : इनकी दृष्टि से कोई नहीं बच पाता, जानें कैसे हुई भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति

इनकी दृष्टि से कोई नहीं बच पाता, जानें कैसे हुई भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति

May 10, 2019 / 06:15 pm

Shyam

chitragupt jayanti

चित्रगुप्त जयंती : इनकी दृष्टि से कोई नहीं बच पाता, जानें कैसे हुई भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति

धर्म शास्त्रों के अनुसार, जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योकि यही विधि का विधान है। विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये चाहे भगवान राम हो, कृष्ण हो, बुध और जैन सभी को निश्चित समय पर धरती लोक को त्यागना ही पड़ता है। जानें चित्रगुप्त जयंती मनाने के पीछे का उद्देश्य और महत्व।

 

मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है जिसे कोई नहीं सुलझा सकता। लेकिन हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा है कि जन्म लेने वाले सभी जीवों के अच्छे और बूरे सभी कर्मों का लेखा जोखा रखने का जो काम करते हैं, उन्हें चित्रगुप्त कहा जाता है, जिनकी नजरों से कोई भी नहीं बच पाता। हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को चित्रगुप्त जयंती मनाई जाती है। इस साल 2019 में 11 मई को मनाई जायेगी।

 

यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है। कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त। यही भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क में भेज देते हैं।

 

भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति

भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी है। सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला और कमल पर प्रजापिता ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई जो ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माता कहलाये। ब्रह्मा जी ने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया।

 

इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है।

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