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त्योहार

चार दिनों का लोक आस्था का महापर्व छठ कब है?

कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाए जाने के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्ल के षष्ठी तिथि के मनाए जाने के कारण इसे छठ कहा जाता है।

भोपालOct 14, 2019 / 01:42 pm

Devendra Kashyap

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लोक आस्था का महापर्व छठ इस बार 2 नवंबर को मनाया जाएगा। छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाए जाने के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्ल के षष्ठी तिथि के मनाए जाने के कारण इसे छठ कहा जाता है। छठ महापर्व चार दिनों का त्योहार है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ मईया और भगवान भास्कर की पूजा एक ही दिन की जाती है। दरअसल, छठ मईया और सूर्य देवता का संबंध भाई-बहन का है। छठ पूजा का प्रचलन पूर्वी भारत में है। खास तौर पर बिहार के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, दिल्ली और देश के अन्य क्षेत्रों में मनाया जाता है।

सूर्या उपासना का महापर्व है छठ

छठ पूजा सूर्योपासना का महापर्व है। इस दिन भगवान भास्कर की पूजा की जाती है। छठ पूजा में सूर्य देवता की पूजा का विशेष महत्ता है। यह एक मात्र व्रत है जिसमें सूर्य भगवान के अस्त और उदय होने पर अराधना की जाती है।
चार दिनों का महापर्व है छठ

छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला बड़ा ही कठीन पर्व है। इस व्रत में शरीर और मन को पूरी तरह से साधना पड़ता है। यही कारण है कि इस पर्व को ‘हठ योग’ भी कहा जाता है। इस पर्व में व्रतधारी लंबे अंतराल तक जल भी ग्रहण नहीं करते हैं।

छठ पूजा के पहले दिन ‘नहाए-खाए’

छठ पूजा के पहले दिन को नहाए खाए कहते हैं। इस दिन व्रतधारी गंगा या पोखर में स्नान करके प्रसाद बनाती हैं। इस दिन व्रती चावल, चने की दाल और कद्दू ( लौकी ) की सब्जी ग्रहण करती हैं।

दूसरे दिन ‘खरना’

छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहते हैं। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास के बाद शाम को पूजा-अर्चना करती हैं और शाम में गुड़ से बने खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करती हैं। माना जाता है कि खरना पूजन के बाद ही घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है।

तीसरे दिन पहला अर्घ्य

खरना पूजन के बाद व्रती 36 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं। तीसरे दिन व्रतधारी शाम को अस्ताचलगामी सूर्य ( डूबते हुए सूर्य ) को अर्घ्य देते हैं और सूर्य भगवान की उपासना करते हैं।

चौथे दिन दूसरा अर्घ्य

छठ के चौथे दिन यानी अगली सुबह व्रती उदीयमान सूर्य ( उगते हुए सूर्य ) को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके साथ ही यह महापर्व समाप्त हो जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस आस्था के महापर्व को ‘मन्नतों का पर्व’ भी कहा जाता है।

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