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मघा नक्षत्र में आ रही डांडा रोपनी पूनम, जानें इसका महत्व

Danda Ropani Poonam फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि पर 24 फरवरी शनिवार का दिन होने से और इस दिन मघा नक्षत्र की साक्षी से पूर्णिमा अनुकूल और शुभ मानी जा रही है, क्योंकि इस बार डाण्डा रोपिणी पूर्णिमा पर शनि पूर्णिमा का योग बनने से यह विशेष रूप से बलशाली और महत्वपूर्ण है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि इस दिन ग्रह गोचर में सूर्य शनि बुध का युति संबंध रहेगा। इस दृष्टिकोण से और मघा नक्षत्र के साथ बव करण की साक्षी रहेगी। यह दो-तीन स्थितियों पूर्णिमा के दिन अनुकूल मानी जाती है। आइये जानते हैं इसका महत्व

Feb 23, 2024 / 09:15 pm

Pravin Pandey

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डाण्डा रोपनी पूनम का महत्व

ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार मांगलिक कार्य जैसे विवाह आदि कार्यों के लिए डाण्डा रोपिनी पूर्णिमा से कोई विशेष दोष नहीं लगता, लेकिन कुछ परंपरा वाले स्थान पर पूर्णिमा के बाद मांगलिक कार्य नहीं करते। निमाड़ की ओर यह परंपरा आज भी मान्य है, कुछ समाज इस बात को आज भी महत्व देते हैं, जबकि जब तक सूर्य की मीन संक्रांति नहीं हो जाती, तब तक मांगलिक कार्य में कोई दोष नहीं है, अर्थात मीन की संक्रांति के पहले तक यदि कोई मुहूर्त निकालता है तो उस मुहूर्त में विवाह आदि कार्य किए जा सकते हैं। यदि गृह आरंभ के लिए नींव खोदना या भूमिपूजन का कोई मुहूर्त निकलता है, तो वह भी किया जा सकता है, परंपरा वाला विषय आपसी विचारधारा का हो सकता है।

डाण्डा रोपिणी पूर्णिमा से फाल्गुन पूर्णिमा तक संक्रांति के साथ-साथ मास निष्क्रमण का दोष भी माना जाता है, यह भी एक कारण है दूसरा कारण होलिका के दहन से लेकर एक माह तक का कालखंड भी त्यागने योग्य बताया गया है। नए मकान की, गृह प्रवेश या नई वधू को घर में लाने की सारी क्रिया पद्धति शुभ मांगलिक मानी जाती है। जब दहन काल या कालखंड होली के विषय में तो उसके आसपास की तिथियां या समय या मास को त्याग देते हैं, हालांकि इसके विषय में शास्त्र अभिमत अलग-अलग है, लेकिन परंपरा में लोग आज भी इसका अनुसरण करते हैं।

डांडा रोपिणी पूर्णिमा पर पर मुहूर्त का अनुक्रम कम हो जाता है, वहीं श्रेष्ठ और शुद्ध लग्न कम ही होते हैं कुछ स्थानों पर रेखा के दोष और उत्तर दक्षिण भारत में संक्रांति के दोष देखे जाते हैं। अलग-अलग परिपाटी के अनुसार विवाह गृह प्रवेश गृह आरम्भ के मुहूर्त होते हैं। मूल रूप से पंचांग की गणना का आधार पर देखें तो सूर्य की मीन संक्रांति मलमास की श्रेणी में आती है तो वह कालखंड त्यागने योग्य बताया गया है।

मुहूर्त चिंतामणि व वृहद जातक सार जैसे अन्य धर्म ग्रंथों में इसकी विवेचना विस्तार से दी गई है। वहीं 15 अप्रैल से सूर्य की मेष संक्रांति के बाद मांगलिक कार्य की शुरुआत हो जाती है। कुछ-कुछ स्थानों पर चैत्र माह में विवाह और अन्य मांगलिक कार्य को भी त्यागने की बात कही गई है। मीन संक्रांति का कालखंड मलमास की श्रेणी में आता है। इस दृष्टि से 15 दिन पहले से ही लोग मांगलिक कार्य का चिंतन करना बंद कर देते हैं।

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