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Holi 2022- पर्व का उल्लास सबसे पहले महाकाल मंदिर में होली उत्सव, वीडियो भी देखें

विश्व में सबसे पहले होलिका दहन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में ही होता है।

Mar 18, 2022 / 11:56 am

दीपेश तिवारी

mahakal holi 2022

mahakal holi 2022

भगवान महाकालेश्वर (Mahakaleshwar Mandir) मंदिर (उज्जैन) में सबसे पहले होली पर्व मनाया गया। गुरुवार को संध्या आरती के समय होलिका का विधि-विधान से पूजन हुआ। इसके बाद मंदिर प्रांगण में होलिका का दहन किया गया। परंपरा है कि हर त्यौहार की शुरुआत महाकाल मंदिर से होती है। इसी के तहत विश्व में सबसे पहले होलिका दहन भी उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में ही होता है।

दरअसल गुरुवार, 17 मार्च को भी होलिका दहने के बाद संध्या कालीन आरती हुई और होली (Holi) पर्व की शुरुआत हो गई है। इस दौरान भक्त और भगवान के बीच जमकर गुलाल उड़ा। देशभर से अनेक श्रद्धालु महाकालेश्वर मंदिर में होली खेलने के लिए उज्जैन पहुंचे।

जानकारों के अनुसार उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में होली पर्व की शुरुआत एक दिन पहले हो जाती है। वहीं किसी प्रकार का मुहूर्त देखे बिना ही भगवान महाकाल के दरबार में त्यौहार की शुरुआत होती है। वहीं साल 2022 में महाकालेश्वर मंदिर में भी हर वर्ष की भांति वहां के पंडे पुजारियों और उनके परिवार के द्वारा होली को सजाया गया। जानकारी के अनुसार महाकालेश्वर मंदिर में होलिका दहन से पहले विधि विधान के साथ पूजा अर्चना और आरती की जाती है।

भगवान महाकाल के दरबार में संध्या कालीन आरती के बाद इस बार भी पूर्व की भांति जमकर गुलाल उड़ा। यह नजारा हमेशा वर्ष में एक बार ही देखने को मिलता है। इस दौरान महाकालेश्वर मंदिर में भगवान महाकाल को फूलों के रस से स्नान भी कराया जाता है। इसके अलावा भगवान महाकाल पर गुलाल चढ़ाकर आरती की जाती है। आरती के दौरान भक्त और भगवान के बीच जमकर होली खेली जाती है। ऐसे में इस होली को देखने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं।

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गुलाल की खासियत
महाकालेश्वर मंदिर के पूजारियों का कहना है कि इस दौरान भगवान महाकाल को चढ़ाए जाने वाले गुलाल का खास ध्यान रखा जाता है। इसके तहत मंदिर में केवल हर्बल गुलाल का ही प्रयोग किया जाता है। किसी भी प्रकार के केमिकल मिश्रित रंग से मंदिर में होली नहीं खेली जाती है।

वहीं हर रोज होने वाली भस्म आरती के तहत होली पर्व के दौरान भगवान महाकाल को फलों के रस से स्नान कराया जाता है। खास बात ये है कि यह परंपरा केवल दक्षिण मुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर में ही निभाई जाती है। इसके अलावा भगवान को टेसू के फूलों से बना रंग को अर्पित किया जाता है।

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