scriptबुधवार : गुप्त नवरात्रि के अंतिम दिन एक बार जरूर पढ़ें यह देवी कवच, पूरे परिवार की मनोकामना हो जायेगी पूरी | Gupta Navaratri 2019 : read this goddess armor for your desire | Patrika News
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बुधवार : गुप्त नवरात्रि के अंतिम दिन एक बार जरूर पढ़ें यह देवी कवच, पूरे परिवार की मनोकामना हो जायेगी पूरी

Gupta Navaratri (गुप्त नवरात्रि) 2019 Wednesday: On the last day of Gupta Navaratri, once definitely read this goddess armor (कवच), for your desire (मनोकामना)

भोपालJul 09, 2019 / 05:16 pm

Shyam

gupt navratri

बुधवार : गुप्त नवरात्रि के अंतिम दिन एक बार जरूर पढ़ें यह देवी कवच, पूरे परिवार का मनोकामना हो जायेगी पूरी

10 जुलाई दिन बुधवार को गुप्त नवरात्रि का अंतिम दिन है, इस माँ दुर्गा का यह सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला देवी कवच का पाठ जरूर करें। यह कवच इतना शक्तिशाली है कि जो भी इसका पाठ एक बार भी कर लेता है माँ दुर्गा उनके पूरे परिवार की रक्षा करने के साथ अनेक मनोकामनाओं को भी पूरा कर देती है।

 

।। अथः देव्याः कवचं ।।

अथ माँ दुर्गा कवच ब्रह्मा ऋषिह अनुषःतुफ छन्दाह चामुण्डा देवता,
अङ्गन्या सोकतंत्रो बीजमह दिग्बंध देवता स्तत्त्वमाह
श्री जगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशती पाठांगत्वेन जापे विनियोगः

मार्कण्डेय उवाच
ओम याद_गुह्यं परमम् लोके सर्वा रक्षाकरम नृणामः।
यांना कस्या छिड़ा ख्यातम् तन्मे ब्रूहि पितामह॥

ब्रह्मो उवाच
अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर्वभूतोपक्का रकमः।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तक्षिणुष्वा महामुंमे॥

 

एक बार मंगलवार शाम को जप लें इनमें से कोई भी एक मंत्र, बड़े से बड़े संकट हनुमान जी करते देंगे दूर

 

1- प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्र घंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकामः ॥
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठम कात्यायनीति चा ।
सप्तमं कालरात्रीति महा गौरीति चाष्टममाह ॥

2- नवमं सिद्धि दात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उकताकण्येतानी नामानि ब्रह्मा _नैव महात्मांना ॥
अग्निना दहा मानस्तु शत्रुमध्ये गतो राने।
विषमे दुर्गमे चैवा भयार्ताः शरणम गताः ॥

 

3- ना तेश्हां जायते किंचिदशुभम रणसँ_कते।
नापदम् तस्या पश्यामि शोकदुःखा _भयं न ही ॥
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि राक्षस ताना संस्षायाः ॥
प्रेता _संस्था तू चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गाजा _समा _रूढा वैशहनावी गरुडासना ॥

4- माहेश्वरी वृध्हारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ॥
श्वेतरूपा_धारा देवी ईश्वरी वृषः_वाहना।
ब्राह्मी हंसा_समारूढा सर्वा भरना भूष हिता ॥

 

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5- इयत्ता मातरः सर्वाः सर्वयोगा समन-विताः।
नाना_भरना_शोभागःया नाना_रत्नो पशो_भीताः ॥
दृतीयन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधा_समा_कुलाह।
शङ्खं चक्रम गदाम शक्तिं हलम चा मुसलायुधमा ॥

6- खेटकम टिमरन चैव परशुम् पाशमेवा चा।
कुन्तायुधम् दत्रिशूलं चा शाराम_आयुध_मुत्तमम् ॥
डैयानाम देहनाशाय भक्ता_नामा_भयाया चा।
धारयन्त्या_आयुधा_नीथम देवानं चा हिताया वाई ॥

 

7- नमस्तेअस्तु महारौद्रे महा_घोरा_पराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महा_भयविनाशिनी ॥
त्राहि माँ देवी दुषःप्रेक्ष्ये शत्रूणां भयावर_धिनि।
प्राचाहयाम रक्षतु माँ_मैंड्री आग्नेय_या_अग्नि_देवता ॥

8- दक्षिणावतु वाराही नैऋत्यां खड़गे_धारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेदा वायव्यां मृगा_वाहिनी ॥
उदच्याम् पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्तादा वैशहनावी तथा ॥

 

9- एवं दशा दिशो रक्षेच_चामुण्डा शव_वाहना।
या में चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ह्ठताः ॥
अजिता वामे पार्श्वे तू दक्षिणे चापराजिता।
शिखामु_द्योतिनी रक्षेदुमा मूर्धिनी व्यवस्थिता ॥

10- मालाधारी ललाटे चा भ्रुवौ रक्षेद यहस्विनी।
त्रिनेत्रा चा भ्रुवोर_मध्ये यम_घंटा चा नासिक ॥
शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्र्डवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तू शांकरी ॥

 

11- नासिकायाम् सुगंधा चा उत्तरोष्ठे चा चर्चिका।
अधारे चामृतकला जिह्वा_याम चा सरस्वती ॥
दंताना रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तू चण्डिका।
घंटिकाम चित्र_घंटा चा महा_माया चा तालुके ॥

12- कामाक्षी चिबुकम रक्षेदा वाचं में सर्वमंगला।
ग्रीवायाम् भद्रकाला चा पृश्ह्टः_वंशे धनुर_धारिणी ॥
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकाम नलकूबरी।
स्कन्धयोः खादिगणी रक्षेदा बाहु में वज्रधारिणी ॥

 

13- हसयोर्दान_दिनी रक्षेद_अम्बिका चांगुलेशहु चा।
नखाज्ञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेताकुलेश्वरी ॥
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये लेता देवी उदरे शूलधारिणी ॥

14- नाभौ चा कामिनी रक्षेदा गुह्यं गुह्येश्वरी तःथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुंडे महिष्हावाहिनी ॥
कैयानम भगवती रक्षेज्जानूनी विंध्य_वासिनी।
जांघे महाबला रक्षित_सर्वकामना_प्रदायिनी ।।

 

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15- गुल्फा_योर्नारसिंही चा पाद_परिष्ह्ठे तू तैजसी।
पादांगुलेशहु श्री रक्षित_पादादहतदसक्साला_वासिनी ॥
नखाना दंशहतृकारली चा केशांश्चैवोधर्वकेशिनी।
रोमा_कूपेशहु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तःथा ॥

16- रक्तमा_इजावा_सामान_सां_यस्थि_मेडन्सी पार्वती।
अंतरानी काला_रात्रिश्चा पित्तं चा मुकुटेश_वारी ॥
पद्मावती पद्मकोशे कैफे छू_डामणिस_तथा।
ज्वालामुखी नखा_ज्वाला_मभेद्या सर्वसन्धिषहु ॥

 

17- शुक्रम् ब्राह्मणी में रक्षेच्अच्छायाम् छत्रेश्वरी तःथा ।
हंकाराम मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ॥
वज्रा_हस्ता चा में रक्षेत्प्राणाम् कल्याणशोभना ॥
रासे रुपए चा गन्धे चा शब्दे स्पर्शे चा योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ॥

18- आयु रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं चा लक्ष्मीं चा धनम विद्याम चा चक्रिणी ॥
गोत्रमिन्द्राणी में रक्षेत्पशूमे रक्षा चण्डिके।
पुत्राना रक्षण_महा_लक्ष्मी_भार्यां रक्षतु भैरवी ॥

 

19- पंथनम सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तःथा ।
राजद्वारे महा_लक्ष्मी_विजय सर्वतः स्थिता ॥
रक्षा_हीनं तू यत्स्थानम् वर्जितम् कवचेन तू।
तत्सर्वं रक्षा में देवी जयन्ती पापनाशिनी ॥

20- पडम्केम न गछछेत्तु यदीच्छेच्च्छुभमात्मनः।
कवचेनावृता नित्यं यात्रा यत्रैवा गच्छति ॥
तत्रा तत्रा_अर्था_लाभश्चा विजयः सार्व_कामिकः।
यम यम चिन्तयते कमम तम तम प्राप्नोति,
निश्चितम् परमेश_वर्य_मतुलम प्राप्स्यते पुमाना ॥

 

21- निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रा_मेष्ह्व_पराजितः।
त्रैलोक्ये तू भवेत्_पूज्यः कवचे_नाविृतः पुमाना ॥
इदं तू देव्याः कवचं देवा_णाम्पई दुर्लभमा।
यह पथप्ररतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितं ॥

 

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22- दैवी काल भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्ह्व_पराजितः।
जीवड़ा वर्षहषतम संग्राम_पमृत्युवि_वर्जितः ॥
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लुटाविस्फोटकादयः।
स्थावरम जंगमं चैव कीर्तिमं चापि यद्विषहमा ॥

23- अभी_चारानी सर्वाणि मंत्र_यन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः ॥
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तःथा।
अन्तरिक्षचार्रा घोरा डाकिन्यश्चा महाबलः ॥

24- ग्रहभूतपिशाचाश्चा यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षस_इटालाः कुश्ह्माण्डा भैरवादयः ॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे ह्रीदय संस्थिते।
मानोन्नति_भवेदा राज्ञस्तेजोवृद्धिकरम परम ॥
यशसा वार्ड_धरते सोअपि कीर्ति मण्डितभूतले।
जपेतासप्तशतीं चण्डीं कृितवा तू कवचं पूरा ॥

25- यावद्भूमण्डलम् धत्ते सशैलवनकानमा ।
तावत्तिष्ह्ठती मेदिन्याम सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी ॥
देहान्ते परमम् स्थानं यतस्रैरपि दुर्लभम् ।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महमाया प्रसादतः ॥
लभते परमम् रूपम शिवना सहा मोदते ॥

।। इति समाप्तः ।।

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