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Hanuman Jayanti : आरती श्री हनुमान जी की

Published: Apr 07, 2020 04:08:03 pm

Submitted by:

Shyam

आरती से पूर्व इन मंत्रों से हनुमान जी की वंदना करें

Hanuman Jayanti : आरती श्री हनुमान जी की

Hanuman Jayanti : आरती श्री हनुमान जी की

पूरे देश में भगवान हनुमान जी भक्त बहुत ही श्रद्धा पूर्वक हनुमान जी का जन्मोत्सव श्री हनुमान जयंती का पर्व 8 अप्रैल दिन बुधवार को मनाएंगे। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि भगवान श्री मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम के परम भक्त श्री हनुमान जी महाराज का स्मरण मात्र से जीवन के सारे दुःख दूर हो जाते हैं। श्री हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रूद्र अवतार माने जाते हैं। हनुमान जयंती के दिन हनुमान जी का विधिवत पूजन करने के बाद इस आरती का गान करने से प्रसन्न हो जाते हैं हनुमान जी महाराज।

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चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि के दिन महाबली श्री हनुमान की जयंती मनाई जाती है। पूजन के बाद इस मंत्र स्तुति का उच्चारण कर हनुमान जी की इस आरती का गायन श्रद्धापूर्वक करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं। आरती के बाद हनुमान जी की 11 परिक्रमा जरूर करें।

Hanuman Jayanti : आरती श्री हनुमान जी की

आरती से पूर्व इन मंत्रों से हनुमान जी की वंदना करें

1- ऊँ मनोजवं मारुत तुल्यवेगं, जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम्।।

वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं, श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे।।

2- ऊँ अतुलितबलधामं हेम शैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

Hanuman Jayanti : आरती श्री हनुमान जी की

।। श्री हनुमान भगवान की आरती।।

आरती किजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरवर कांपे, रोग दोष जाके निकट ना झांके॥

अंजनी पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई॥

दे वीरा रघुनाथ पठाये, लंका जाये सिया सुधी लाये॥

Hanuman Jayanti : आरती श्री हनुमान जी की

लंका सी कोट संमदर सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई॥

लंका जारि असुर संहारे, सियाराम जी के काज संवारे॥

लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे, आनि संजिवन प्राण उबारे॥

पैठि पताल तोरि जम कारे, अहिरावन की भुजा उखारे॥

बायें भुजा असुर दल मारे, दाहीने भुजा सब संत जन उबारे॥

सुर नर मुनि जन आरती उतारे, जै जै जै हनुमान उचारे॥

Hanuman Jayanti : आरती श्री हनुमान जी की

कचंन थाल कपूर लौ छाई, आरती करत अंजनी माई॥

जो हनुमान जी की आरती गाये, बसहिं बैकुंठ परम पद पायै॥

लंका विध्वंश किये रघुराई, तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई॥

आरती किजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

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