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वैशाख अमावस्या : लॉकडाउन के बीच ऐसे पाएं इस अमावस्या का पूर्ण फल

इस माह का प्रत्येक दिन विशेष पुण्यदायी…

भोपालApr 14, 2020 / 06:52 pm

दीपेश तिवारी

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वैशाख का महीना हिन्दू वर्ष का दूसरा माह होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। इस वर्ष यानि 2020 में वैशाख अमावस्या 22 अप्रैल, 2020 (बुधवार) से शुरु हो रही है।

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार इसी माह से त्रेता युग का आरंभ होने की वजह से वैशाख अमावस्या की धार्मिक महत्ता और भी बढ़ जाती है। इस माह का प्रत्येक दिन विशेष पुण्यदायी माना जाता है और अमावस्या तो अपने आप में अत्यंत फलदायी होती है।

वैशाख अमावस्या के दिन धर्म-कर्म, दान-पुण्य,स्नान-दान और पितरों के तर्पण के लिये अमावस्या का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी अमावस्या तिथि पर ज्योतिषीय उपाय किये जाते हैं। इसके अलावा शनि की शांति, अन्य ग्रह दोषों से मुक्ति के लिए भी इस दिन पूजा आदि की जाती है।

वैशाख अमावस्या मुहूर्त…
अप्रैल 22, 2020 को 05:39:44 से अमावस्या आरम्भ
अप्रैल 23, 2020 को 07:57:19 पर अमावस्या समाप्त

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लॉकडाउन 2: ऐसे करें घर में स्नान…
वैशाख अमावस्या के दौरान स्नान-दान का अत्यधिक महत्व होने के बीच इस बार कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन 2 के कारण इस बार बाहर किसी नदी में स्नान करना तो संभव नहीं होगा।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार ऐसे में चंद उपाय अपना कर अपने घर में ही वैशाख अमावस्या का पूर्ण फल प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए प्रातःकाल सूर्योदय के समय उठें। दैनिक शौचादि से निवृत्त होकर अपने नहाने के जल में नर्मदा, गंगा आदि जिस भी पवित्र नदी का जल आपके घर में उपलब्ध हो, वो डाल लें। साथ में थोड़े से तिल भी डाल लें। यदि आपके घर में किसी भी पवित्र नदी का जल उपलब्ध ना हो तो इस मंत्र का उच्चारण करें-
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
अर्थ : हमारे जल में गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी इन सप्त नदियों का जल समाहित हो जाए।

वैशाख अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म…
प्रत्येक अमावस्या पर पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए व्रत अवश्य रखना चाहिए। वैशाख अमावस्या पर किये जाने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-
: इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करें।
: पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण एवं उपवास करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें।
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: वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है, इसलिए शनि देव तिल, तेल और पुष्प आदि चढ़ाकर पूजन करनी चाहिए।
: अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर सुबह जल चढ़ाना चाहिए और संध्या के समय दीपक जलाना चाहिए।
: निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन और यथाशक्ति वस्त्र और अन्न का दान करना चाहिए।
वैशाख अमावस्या के दिन ये करें..
– वैशाख अमावस्या के दिन व्रत करना चाहिए। इससे संयम, आत्मबल और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
– इस अमावस्या के दिन स्नान के जल में तिल डालकर स्नान करने से शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है।
– इस दिन नहाते समय जल में यदि अपने दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली से त्रिकोण बनाया जाए तो धन की कमी दूर होती है।
– इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण करना चाहिए। इससे उन्हें मुक्ति मिलती है।
– पितृ दोष के निवारण के लिए वैशाख अमावस्या के दिन पितरों के नाम से गरीबों को भोजन करवाएं।
– इस दिन स्नान करके सूर्य को जल में तिल डालकर अर्घ्य देने से ग्रह दोष दूर होते हैं।
– दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है। इसलिए इस दिन शनि की पूजा आराधना करना चाहिए।
– वैशाख अमावस्या के दिन प्रदोषकाल में दीपदान करने से अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है।
– वैशाख अमावस्या पर प्रदोषकाल में पीपल के पेड़ के नीचे सात दीपक जलाने से रोग मुक्ति होती है।
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वैशाख अमावस्या : पौराणिक कथा
वैशाख अमावस्या के महत्व से जुड़ी एक कथा पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। प्राचीन काल में धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण हुआ करते थे। वे बहुत ही धार्मिक और ऋषि-मुनियों का आदर करने वाले व्यक्ति थे। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है।
धर्मवर्ण ने इस बात को आत्मसात कर लिया और सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास लेकर भ्रमण करने लगा। एक दिन घूमते हुए वह पितृलोक पहुंचा। वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास के कारण हुई है। क्योंकि अब उनके लिये पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है।
यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो। धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। इसके बाद धर्मवर्ण ने संन्यासी जीवन छोड़कर पुनः सांसारिक जीवन को अपनाया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।

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