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त्योहार

इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को

भारत में पर्वों का निर्धारण
चंद्रकलाओं द्वारा निर्धारित काल गणना एवं तिथि क्रमानुसार किया जाता है, जबकि केवल मकर संक्रांति का पर्व सूर्य की गति के अनुसार माना जाता है

Jan 10, 2016 / 09:47 am

सुनील शर्मा

Makar Sakranti in Jaipur

Makar Sakranti in Jaipur

कुछ वर्षों से मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी के बजाए 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। अंग्रेजी कैलेण्डर के मुताबिक यह तिथि आज भी 14 जनवरी ही दर्शाती है, जबकि ज्योतिषाचार्यों की गणना के मुताबिक संक्रांति का पर्व इस वर्ष 15 जनवरी को मनाया जाएगा। भारत में पर्वों का निर्धारण चंद्रकलाओं द्वारा निर्धारित काल गणना एवं तिथि क्रमानुसार किया जाता है।

ईस्वी सन की गणना में त्यौहार आगे-पीछे मनाए जाते हैं
यही कारण है कि बहुप्रचलित ईस्वी सन की गणना में त्यौहार आगे-पीछे मनाए जाते हैं। ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविद डॉ.दीपक शर्मा ने बताया कि होली, दीपावली, दशहरा, जन्माष्टमी आदि सब इसके उदाहरण हैं। भारतीय पर्वों में केवल मकर संक्रांति ही एक ऐसा पर्व है, जिसका निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है।

2016 में देव गुरु वृहस्पति का सूर्य देव की सिंह राशि में गोचर होगा। जिससे यह अवधि समस्त शुभ कार्यों के लिए भी महत्वपूर्ण होगी।

इस दिन को सूर्य की आराधना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता
शताब्दी के मुताबिक एेसे मनेगी संक्रांति : 19वीं, 20वीं शताब्दी में मकर संक्रांति 14 व 15 जनवरी को मनेगी। 21वीं व 22वीं शताब्दी में 14, 15 व 16 जनवरी को मनाई जाएगी।

बसंत ऋतु की होगी शुरूआतः पौष माह में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।

इसके साथ ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है। इस दिन को सूर्य की आराधना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन के बाद से ही दिन में तिल-तिल बढ़ता है।

लीप ईयर के कारण संक्रांति का क्रम हर दो साल में बदलता है
साल 2016 में भी मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को ही मनाया जाएगा। लीप ईयर के कारण संक्रांति का क्रम हर दो साल में बदलता है। 2017 व 18 में वापस से मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाएगा। इसके बाद 2019-20 में वापस से 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनेगी। यह क्रम लगातार 2030 तक चलता रहेगा।

55 विकला या 72 से 90 सालों में एक अंश पीछे रह जाती है

ज्योतिषाचार्य नवनीत व्यास ने बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए प्रतिवर्ष 55 विकला या 72 से 90 सालों में एक अंश पीछे रह जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में एक दिन देरी से प्रवेश करता है। करीब 1700 साल पहले 22 दिसंबर को मकर संक्रांति होती थी फिर जनवरी तक तिथि खिसक गई।


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