त्योहार

सावन मास में इस स्तुति के पाठ से प्रसन्न हो, हर काम में विजय होने का आशीर्वाद देते हैं भगवान शंकर

Rudrashtakam paath : इस स्तुति के पाठ से प्रसन्न हो महादेव ने रामजी को भी विजयश्री का आशीर्वाद दिया था

Jul 25, 2019 / 03:17 pm

Shyam

सावन मास में इस स्तुति के पाठ से प्रसन्न हो, हर काम में विजय होने का आशीर्वाद देते हैं भगवान शंकर

सावन मास में भक्तों की श्रद्धापूर्वक की गई थोड़ी सी प्रार्थना से भी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं भगवान शंकर, इसी कारण उन्हें ‘आशुतोष’ भी कहा जाता है। अगर कोई भक्त विनय पूर्वक श्रीरामचरितमानस में वर्णित इस स्तुति का पाठ करने से प्रसन्न हो अपने भक्त सभी मनोकामना पूरी करने के साथ हर कार्य में विजयी होने का आशीर्वाद भी देते हैं।

 

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श्रीरामचरितमानस में लंका विजय से पूर्व भगवान श्रीराम ने शिवजी की ‘रुद्राष्टकम’ Rudrashtakam Rudrashtakam ) स्तुति का पाठ किया था और रावन पर विजयश्री प्राप्त की थी। अगर किसी के जीवन में परेशानियां है या कोई शत्रु परेशान कर रहा हो तो सावन मास में इस स्तुति का पाठ करने के बाद मिलने वाला शुभफल किसी चमत्कार से कम नहीं होता। इसका पाठ करते समय भावमग्न होकर भगवान शंकर से मन ही मन अपनी कामना को पूरी होने का निवेदन भी करते है।

 

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।। अथ श्री रुद्राष्टकम स्तुति ।।

1- नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥

2- निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं। गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं। गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥

3- तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं। मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥

4- चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥

 

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5- प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥

6- कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥

7- न यावद् उमानाथपादारविन्दं। भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥

8- न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्॥
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥

9- रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये॥
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥

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