scriptसीता नवमी 2020 : अखण्ड सौभाग्य, उत्तम जीवनसाथी के लिए ऐसे करें व्रत और पूजा | Sita Navami : Vrat Puja Vidhi, Muhurt 2 May 2020 | Patrika News
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सीता नवमी 2020 : अखण्ड सौभाग्य, उत्तम जीवनसाथी के लिए ऐसे करें व्रत और पूजा

माता सीता की जयंती शनिवार 2 मई 2020 को हैं

May 01, 2020 / 11:12 am

Shyam

सीता नवमी 2020 : अखण्ड सौभाग्य, उत्तम जीवनसाथी के लिए ऐसे करें व्रत और पूजा

सीता नवमी 2020 : अखण्ड सौभाग्य, उत्तम जीवनसाथी के लिए ऐसे करें व्रत और पूजा

वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन माता जानकी सीता का प्राकट्य दिवस (जयंती) मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं अपने अखण्ड सौभाग्य की कामना एवं अविवाहित कन्याएं उत्तम जीवन साथी की कामना से निर्जला व्रत रखकर माता सीता के साथ भगवान श्रीराम जी का विधिवत पूजन करती है। इस साल 2020 में सीता नवमी का पर्व शनिवार 2 मई को मनाई जाएगी। जानें पूजा विधि एवं महत्व।
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सीता नवमी की कथा

मिथिला के राजा जनक को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन ही माता सीता जी धरती से प्राप्त हुई थी। तभी से हर साल वैशाख महीने के शुक्ल नवमी सीता नवमी को मनाया जाता है, लेकिन देश के कुछ हिस्सों में सीता जयंती फाल्गुन कृष्ण अष्टमी को भी मनाते हैं। सीता नवमी का पर्व भारत के साथ ही नेपाल देश में भी बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
सीता नवमी 2020 : अखण्ड सौभाग्य, उत्तम जीवनसाथी के लिए ऐसे करें व्रत और पूजा
सीता जयंती पूजा विधि

सीता नवमी के दिन उपवास रखकर भगवान श्रीराम एवं माता सीता जी का विशेष पूजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्रती को पृथ्वी दान करने के बराबर पुण्यफल मिलता है। पूजा के लिए अपने घर के पूजा स्थल पर साफ-सफाई करके एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर उस पर राम-सीता जी की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें। सीता नवमी को महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, अपने अखण्ड सौभाग्य की कामना एवं कंवारी कन्याएं योग्य जीवन साथी की कामना से व्रत रखकर माता व राम जी का विधिवत सोलह प्रकार की पूजा सामग्रियों से पूजन करती है।
सीता नवमी 2020 : अखण्ड सौभाग्य, उत्तम जीवनसाथी के लिए ऐसे करें व्रत और पूजा
सीता जन्म की रहस्यमयी कथा

रामायण में लिखा है माता सीता एक बार राजा अपनी प्रजा के हित के लिए अपनी भूमि पर हल चला रहे थे तभी उनके हल में भूमि के अंदर एक कलश टकराया, जब राजा जन्म के उस कलश को बाहर निकालकर देखा तो उसमें एक सुंदर नवजात कन्या थी। राजा जनक निःसंतान थे इसलिए उस कन्या को पाकर वे बहुत प्रसन्न हुए औऱ उसका नाम सीता रखा। जिस दिन सीता जी जनक जी को मिली उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी। एक और कथा के अनुसार माता सीता के जन्म से जुड़ा एक रहस्य यह भी है कि माता सीता राजा जानकी की पुत्री नहीं, बल्कि लंकापति रावण की पुत्री थी।
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