प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान चित्रगुप्त जगत के निर्माणकर्ता प्रजापित ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और जिन्हें कालचक्र के नियंत्रणकर्ता मृत्यु के देवता श्री यमराज जी के विशेष सहयोगी है। त्रिदेवों ने जब धर्मराज को कर्मफल दाता नियुक्त किया तब धर्मराज ने अपने लिए एक सहयोगी योग्य साथी की मांग प्रजापित ब्रह्मा जी से की। कहा जाता है कि धर्मराज की मांग पर प्रजापिता ब्रह्मा जी एक हजार साल तक घोर तप किया और उनके तप के तेज से एक पुरूष उत्पन्न हुआ, जो ब्रह्मा जी के अंश कहलाएं, प्रजापिता ब्रह्मा जी की काया ये उत्पन्न होने के कारण चित्रगुप्त जी कायस्त कहे जाने लगे और इनका नाम चित्रगुप्त रखा गया। चित्रगुप्त को ब्रह्मा जी ने धर्म के विशेष सहयोगी के रूप में नियुक्त किया।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्मफल की किताब, कलम, दवात और करवाल है। भगवान चित्रगुप्त जी एक कुशल लेखक हैं, जो समस्त प्राणियों के शुभ और अशुभ कर्मफलों का लेखा-जोखा अपनी कर्मफल किताब में सतत लिखते रहते हैं। चित्रगुप्त जी द्वारा लिखे गए कर्मफलों के अनुसार ही धर्मराज सभी प्राणियों को उनका फल प्रदान करते हैं। भगवान श्री चित्रगुप्त की सुक्ष्म दृष्टि ऐसी दिव्य है जिससे कोई भी प्राणी नहीं बच सकता।
धार्मिक मान्यतानुसार जब जीवों की आत्मा कर्म बंधन में अच्छे कर्मों को भूल बूरे कर्म, पाप कर्म करके से दूषित हो जाती है। जब जीवात्मा के शरीर से प्राण निकल जाते हैं तो यमलोक से यमदूत लेने आते हैं, जिन्होनें अच्छे कर्म किए होते हैं उन्हें सम्मान पूर्वक स्वर्ग ले जाया जाता है और बूरे कर्म करने वाले पापियों की आत्मा तो यमदूतों को देखकर ही कांपने लगती है, रोने लगती है, लेकिन यमदूत दूत बड़ी निर्ममता से पापियों की आत्मा को घसीटते हुए यमलोक ले जाकर घोर रौरव नरक में फेंक देते हैं। इसलिए कहा जाता है कि भगवान चित्रगुप्त की दृष्टि से कोई भी जीव बच नहीं सकता।
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