नियमित गुजारा भत्ता देने का मामला अलग
अगर पति नियमित तौर पर गुजारा भत्ता दे रहा है तो फिर मामला अलग हो जाता है। तलाकशुदा पत्नी को अपनी आयकर श्रेणी के हिसाब से इस रकम पर टैक्स देना होता है। न्यायालयों ने स्पष्टï कर दिया है कि गुजारा-भत्ते के तौर पर मिलने वाली नियमित रकम राजस्व प्राप्ति मानी जाएगी। इसलिए इस पर टैक्स लगना चाहिए। हालांकि इस रकम पर दो बार टैक्स लगता है- पहले पति इस पर टैक्स देता है और उसके बाद पत्नी भी देती है।
इन मामलों में नहीं लगता
जमीन-जायदाद जैसी भौतिक संपत्तियों के मामले में प्रावधान कुछ अलग हैं। घर जैसी परिसंपत्तियों के हस्तांरण पर टैक्स नहीं लगता है, लेकिन स्थिति तब पेचीदा हो जाती है जब पत्नी इसे बेचने का फैसला करती है। जायदाद आदि की बिक्री पर व्यक्ति को पूंजीगत लाभ कर देना होता है और इसकी गणना के लिए खरीदारी की रकम और जायदाद रखने की अवधि अहम होती है।
पूंजीगत लाभ को लेकर स्पष्टता नहीं
जिस तरह परिसंपत्तियों पर पूंजीगत लाभ कर की गणना को लेकर स्पष्टता नहीं है, उसी तरह यह भी साफ नहीं है कि तलाक के बाद पत्नी के साथ रहे बच्चों की ट्यूशन फीस या उनके नाम पर किए गए निवेश पर पति को टैक्स में छूट मिलेगी या नहीं। इनमें नियम स्पष्ट नहीं है। कर कानूनों के तहत पति के लिए टैक्स में कटौती की कोई सुविधा नहीं होती है।