दो महीने पहले से करते हैं मेहनत
किसानों ने बताया कि दो महीने पहले नदी के रेत को कुरलु चलाकर सब्जियों के बोआई के लायक बनाया जाता है। इसके निजाई करने के बाद पुन: रेत को पलटने का काम किया जाता है। वहीं दो से तीन दिनों बाद हल्का पानी छींटने का काम किया जाता है। शुरुआती दौर में रखरखाव करने के लिए करीब 15 से बीस दिनों तक परिवार के दो-दो सदस्य घेराव कर सब्जियों की रखवाली दिन रात करते हैं। सब्जियां लगाने के बाद मेहनत तीन से चार महीने तक लगातार चलता रहता है।
कर्ज लेकर लगाते हैं सब्जियों की फसल
किसान विधाधर निषाद, शंकर, लक्ष्मीलाल, देवनारायण ने बताया कि पिछले 35 सालों से नदी में सब्जियों के साथ ही तरबूज की फसल भी लेते आ रहे हैं। 35 सालों से तीन से चार महीने तक मेहनत करने के बाद उन्हें लागत से तीन गुना फायदा नदी में लगाई फसलों से हो जाता है। तुलसीराम और जयराम ने बताया कि हर साल वे यहां सब्जियां लगाने के लिए बीज उधारी में लेते हैं। इसके बाद सब्जियों को बेचने के बाद उसे चुकाते हैं। आवेदन देने पहुंचे 25 से ज्यादा भूमिहीन किसानों ने बताया कि हर किसान को लगभग 20 हजार रुपए खर्च करना पड़ता है। बीज से लेकर दवाई डालने के हर गतिविधि को मिलाकर कुल 20 हजार रूपए तक खर्च आता है। करीब 5 लाख रुपए की फसल का नुकसान किसानों को उठाना पड़ा है।
शरदचंद्र यादव, तहसीलदार, देवभोग