आसान नहीं थी राह- गाजियाबाद के सिंकदरपुर गांव निवासी असीम रावत बदलते भारत की नई इबारत लिख रहे हैं। असीम रावत अपने गांव में हेथा डेयरी चलाते हैं। जहां 500 ज्यादा देसी गाय हैं और 50 से ज्यादा लोग
रोजगार में लगे हुए हैं। ऐसा नहीं है कि असीम की राह आसान रही यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की। शून्य से शुरू कर एक अलग मुकाम बनाना आसान नहीं था और सबसे बड़ी बात परिवार को इसके लिए समझाना।
2015 में लिया नौकरी छोड़ने का फैसला- दरअसल2001 में
आगरा विश्व विद्यालय से कंप्यूटर साइंस से बीटेक किया था। आईआईटी हैदराबाद से पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद उन्होंने अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी आदि देशों में नौकरी भी की। अमेरिका में नौकरी करते हुए असीम ने नवंबर 2015 में 4 लाख रुपये महीने की सैलरी वाली नौकरी छोड़कर स्वरोजगार करने का फैसला लिया और गाय पालने का काम शुरू करने का मन बनाय। अमीस का कहना है कि है वो कुछ ऐसा करना चाहते थे जिसमे सुकून मिले।
परिवार नहीं चाहता असीम गाय पालने का काम करें- अपने घर वापस आने के बाद जब उन्होंने अपने परिवार को अपने फैसले के बारे में बताया तो सबसे ने काफी विरोध किया। मां-बाप नहीं चाहते थे कि इतनी अच्छी नौकरी छोड़कर बेटा गांव में गाय गोबर में फंसे। लेकिन फिर भी असीम अपने फैसले से नहीं डिगे और आत्मविश्वास के साथ गांव में ही गायपालने का रोजगार शुरू कर दिया। असीम की मेहनत आज उनके गांव ही क्या आस-पास के शहरों तक में देखी जा सकती है। जहां दूध और उससे बने हुए सामान बाजार में जा रहे हैं।
तीन साल की मेहनत का मिला फल-
वह दूध और घी के साथ ही गौमूत्र और जैविक खाद का भी कारोबार कर रहे हैं। उनकी मेहनत का ही नतीजा है गौ पालन में वो ज़िले भर में पहले स्थान पर रहे हैं, जिसके चलते दिल्ली में राष्ट्रीय गौपालक रत्न पुरस्कार से नवाजा गया। यह सम्मान शुक्रवार को केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह के हाथों सौंपा गया।