मुस्लिम समाज में आज भी लोग कुरान और हदीश में लिखी हुई बातों की दुहाई देकर समाज को कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिये प्रयोग कर अपना लाभ तो लेते हैं पर पूरे समाज को विकास से कोसों दूर ढकेल देते हैं। हम कुछ यूं कहें कि आज भी मुस्लिम समाज को मौलवियों ने अपनी जकड़ में ले रखा है।
ये सब बातें उर्दू साहित्य के लेखक उबैदुर रहमान ने अपनी पुस्तक शिकवा है मेरा में लिखा है।इनकी पहली किताब तजकरा-ए-मशायख-ए-गाजीपुर सन् 2000 में प्रकाशित हुई।इन्होंने अबतक अपने शोध और गाजीपुर में मिले तथ्यों के आधार पर 10 किताबें लिखीं हैं वहीं कई किताबें प्रकाशित होने के क्रम में हैं।
इन्होंने बताया कि हमारे समाज में मौलवी का बहुत महत्व है और मौलवी लोगों ने किस तरह से समाज को हाइजैक कर रखा है उसी को ध्यान में रखकर इस किताब को लिखा है।बात-बात पर ये लोग जब मंचों पर जाते हैं तो इनमें से कुछ लोग अपने को सही साबित करने के लिये दूसरे को गलत साबित कर देते हैं।बात-बात पर काफिर का फतवा जारी कर देते हैं।इसी को देखकर मैं बहुत तकलीफ में था और तब मैने इस किताब के माध्यम से इन सब बातों को सामने लाने की कोशिश की।इन्होंने बताया कि मौलवी मुसलमानों की रीढ़ की हड्डी हैं।हम सभी मौलवी को नहीं कहते हैं।आज के मदरसे में जो मदारिस रखे जाते हैं वह पैसे लेकर रखे जाते हैं ये सबसे बड़ा कलंक है।इसी को लेकर मैने आवाज उठायी।इन्होंने बताया कि ये लोग मदरसों में साइंस और अन्य विषय नहीं पढ़ाने की बात करते हैं जिसके चलते लोग अधूरे रह जाते हैं।इन्होंने ये भी कहा कि फतवा ऐसे मानक मदरसों से जारी होना चाहिये कि उसकी कीमत हो गाँव-गाँव मदरसों से जो फतवा जारी हो रहा है उसपर रोक लगे।यह पूरी किताब नब्बे पेज की है और उर्दू जुबान में है लेकिन अभी तक बाजार में उपलब्ध नहीं है।