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गाज़ियाबाद

इस रिटायर ब्रिगेडियर ने दिया था एमबीटी अर्जुन टैंक का तोहफा

14 साल तक ब्रिगेडियर वीरेन्द्र चौधरी इस प्रोजेक्ट के डॉयरेक्टर रह चुके हैं, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मिल चुका है उन्हें अवार्ड

गाज़ियाबादAug 16, 2017 / 10:48 am

sharad asthana

brigadier
वैभव शर्मा, गाजियाबाद। देश की आजादी का हमने मंगलवार को जमकर जश्‍न मनाया। आजाद हवा में सांस लेने में हमारी सेना के जवानों का बहुमूल्य योगदान है। हम उनके हिम्मत और काम को सलाम करते हैं। हॉटसिटी गाजियाबाद में भी ऐसे गौरव सेनानी हैं, जिनकी बहादुरी को देश सलाम करता है। ऐसे ही एक सख्यित का नाम है ब्रिगेडियर वीरेन्द्र चौधरी। उन्होंने भारत को एमबीटी अर्जुन टैंक का तोहफा दिया। 14 साल तक ब्रिगेडियर वीरेन्द्र चौधरी इस प्रोजेक्ट के डॉयरेक्टर रह चुके हैं। उनकी सेवा के लिए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से उन्हें अवार्ड भी मिल चुका है।
6000 से अधिक राउंड किए फायर

रिटायर्ड ब्रिगेडियर ने 14 साल तक देश की सुरक्षा में 180 करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण योजना को संभाला। उन्होंने बताया कि एमबीजी अर्जुन टैंक की 120 एमएम की नली से 6 हजार से अधिक राउंड फायर किए गए। राजस्थान के रेगिस्तान में इसकी टेस्टिंग की जाती थी। इससे पहले हर बार वो दिल्ली में तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम से मिलते थे और टैंक के बारे में बताते थे।
अर्जुन टैंक से हो सकते हैं ऐसे वार

देश की सुरक्षा में लगे हुए एमबीटी अर्जुन टैंक में कई खूबियों को विकसित किया गया है। ब्रिगेडियर का कहना है कि इसमें जवानों के बैठने के साथ-साथ मारक क्षमता को बढ़ाया गया है। इसमें सामने खड़े, मूविंग पोजीशन में खड़े हुए और मूविंग पोजीशन में चलते टारगेट पर आसानी से निशाना लगाया जा सकता है।
1965 की लड़ाई में निभाई अहम भूमिका

पाकिस्तान से 1965 और 1971 की लडाई में भी गाजियाबाद के ब्रिगेडियर वीरेन्द्र चौधरी अहम भूमिका निभा चुके हैं। 65 की लड़ाई में वो कश्मीर में ईएमई वर्कशाॅप में कैप्टन टू सेकंड इन कमांड के पद पर तैनात थे। डीसी छुट्टी पर गए हुए थे। पीओके की तरफ से उस रात तीन बार हमला हुआ, लेकिन उन्‍होंने कुशलता का परिचय देते सभी को खदेड़ दिया।
1971 में एंटी टैंक मिसाइल से छुड़ाए छक्के

भारत-पाकिस्तान की 1971 की लड़ाई में ब्रिगेडियर चंड़ीगढ़ में थे। सूचना मिलने पर वो फाजिलका सेक्टर में पहुंचे। वहां एंटी टैंक मिसाइल एनचटीएसी और एएस 11 की जिम्मेदारी उनके पास थी। इनकी मदद से उन्होंने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए। 1963 में वीरेन्द्र चौधरी ने लेफ्टिनेंट के पद पर ज्वाइन किया। रुड़की से उन्होंने बीटेक इंजीनियरिंग और आईआईटी मद्रास से एमटेक की डिग्री ली। 1996 में वो सेना से रिटाय़र हुए।
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