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गाजीपुर सर सैय्यद अहमद खां के पसमंजर में के लेखक उबैदुर रहमान किए जाएंगे पुरस्कृत

मौलवियों ने हाइजैक कर रखा है मुस्लिम समाज को-उबैदुर रहमान

गाजीपुरOct 07, 2017 / 10:09 am

sarveshwari Mishra

Author Ubaidur rehman

लेखक उबैदुर रहमान

गाजीपुर. मुस्लिम समाज जहां आज भी पुराने खयालात के लोग आज भी दीन और रसूल की बात करते हैं। भले ही लोग अपने आपको शिक्षित होने का दावा करते हैं बावजूद इसके कहीं न कहीं ये लोग मौलवी और उनके द्वारा जारी फतवे को मानने व मनवाने का भी काम करते हैं जो कहीं न कहीं आज भी मुस्लिम समाज को पीछे ले जाने का काम कर रही है। इन्हीं सब बातों के उर्दू साहित्य लेखक उबैदुर रहमान ने अपनी किताब शिकवा है मेरा में लिखा है। वहीं अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान जो कि 1862 से 1864 तक गाजीपुर में जज के रूप में कार्यरत रहते हुए एक किताब गाजीपुर सर सैय्यद अहमद खां के पसमंजर में लिखा है जो अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के द्वारा प्रकाशित की जा रही है जिसका लोकार्पण 17 अक्टूबर को खुद कुलपति करेंगे। इन सब लेखनी पर अलीगढ़ आन्दोलन की मासिक पत्रिका मिलत बेदार महीन कमेटी (एमबीएमसी) के द्वारा 14 अक्टूबर को उबैदुर को अलीगढ़ में पुरस्कृत भी किया जायेगा।
Ubaidur Rehman
IMAGE CREDIT: Patrika
मुस्लिम समाज में आज भी लोग कुरान और हदीश में लिखी हुई बातों की दुहाई देकर समाज को कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिये प्रयोग कर अपना लाभ तो लेते हैं पर पूरे समाज को विकास से कोसों दूर ढकेल देते हैं।या हम कुछ यूं कहें कि आज भी मुस्लिम समाज को मौलवियों ने अपनी जकड़ में ले रखा है।
Ubaidur Rehman
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ये सब बातें उर्दू साहित्य के लेखक उबैदुर रहमान ने अपनी पुस्तक शिकवा है मेरा में लिखा है।इनकी पहली किताब तजकरा-ए-मशायख-ए-गाजीपुर सन् 2000 में प्रकाशित हुई।इन्होंने अबतक अपने शोध और गाजीपुर में मिले तथ्यों के आधार पर 10 किताबें लिखीं हैं वहीं कई किताबें प्रकाशित होने के क्रम में हैं।इन्होंने बताया कि हमारे समाज में मौलवी का बहुत महत्व है और मौलवी लोगों ने किस तरह से समाज को हाइजैक कर रखा है उसी को ध्यान में रखकर इस किताब को लिखा है।
ubaidur Rehman
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बात-बात पर ये लोग जब मंचों पर जाते हैं तो इनमें से कुछ लोग अपने को सही साबित करने के लिये दूसरे को गलत साबित कर देते हैं। बात-बात पर काफिर का फतवा जारी कर देते हैं।इसी को देखकर मैं बहुत तकलीफ में था और तब मैने इस किताब के माध्यम से इन सब बातों को सामने लाने की कोशिश की।इन्होंने बताया कि मौलवी मुसलमानों की रीढ़ की हड्डी हैं।
Ubaidur Rehman
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हम सभी मौलवी को नहीं कहते हैं।आज के मदरसे में जो मदारिस रखे जाते हैं वह पैसे लेकर रखे जाते हैं ये सबसे बड़ा कलंक है।इसी को लेकर मैने आवाज उठायी।इन्होंने बताया कि ये लोग मदरसों में साइंस और अन्य विषय नहीं पढ़ाने की बात करते हैं जिसके चलते लोग अधूरे रह जाते हैं।इन्होंने ये भी कहा कि फतवा ऐसे मानक मदरसों से जारी होना चाहिये कि उसकी कीमत हो गाँव-गाँव मदरसों से जो फतवा जारी हो रहा है उसपर रोक लगे।यह पूरी किताब नब्बे पेज की है और उर्दू जुबान में है लेकिन अभी तक बाजार में उपलब्ध नहीं है।
उबैदुर रहमान साहब सिर्फ अपने समाज की बातें ही आगे नहीं ला रहे हैं बल्कि गाजीपुर के गौरवपूर्ण इतिहास को भी सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं।गाजीपुर में न्यायिक सेवा में 1862 से लेकर 1864 तक अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान की जीवनी और इस दौरान गाजीपुर के लोगों की अशिक्षा को दूर करने के लिये शिक्षा के क्षेत्र में जो प्रयास किये थे उसको तथ्यों के आधार पर एक किताब का रूप दिया है जो 17 अक्टूबर को सर सैय्यद अहमद खां के 200 वीं जयन्ती पर अलीगढ़ युनिवर्सिटी खुद प्रकाशित कर रहा है जिसका विमोचन कुलपति करेंगे।वहीँ इनकी लेखनी से प्रभावित होकर अलीगढ़ आन्दोलन की मासिक पत्रिका मिलत बेदार महीन कमेटी(एमबीएमसी) के द्वारा 14 अक्टूबर को उबैदुर को अलीगढ़ में पुरस्कृत भी किया जायेगा।

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