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जीवनदायिनी गैस देने वाले पीपल के वृक्ष अब विलुप्त होने के कगार पर, इससे चिंतित पर्यावरण प्रेमियों ने बताई ये बात

locationगोंडाPublished: Mar 06, 2022 05:05:01 pm

Submitted by:

Mahendra Tiwari

गोंडा एक जमाने में गांव की पहचान कुए के ठंडे पानी व पीपल के वृक्ष से होती थी । एक भोजपुरी गायक ने इसका वर्णन करते हुए गाना लिखा था । कि कुएं का ठंडा पानी पीपल की छांव रे, रुक जाओ परदेसी आज मेरे गांव रे, प्रकृति की सुंदरता का वर्णन करता यह गाना आधुनिकता के युग में बेमानी साबित हो रहा ।

Peepal tree
जीवनदायिनी ऑक्सीजन गैस देने वाले पीपल, बरगद के वृक्ष अब धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर हैं । महज 25 से 30 वर्ष पहले गांव हो या शहर हमें पीपल व बरगद के विशालकाय वृक्ष नजर आते थे । यहां तक कि गर्मी के दिनों में लोग इन वृक्षों के नीचे बैठकर शीतलता का अनुभव करते थे । लेकिन जैसे जैसे शहरों का विकास के साथ-साथ सड़कों का चौड़ीकरण होने के कारण हमें 24 घंटे ऑक्सीजन देने वाले इन विशालकाय वृक्षों को सरकारी तंत्र को मजबूरन हटाना पड़ा। पर्यावरण चिंतक व नेचर क्लब के संस्थापक अभिषेक द्विवेदी बताते हैं कि गोंडा से जरवल के बीच में राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने में करीब 7 500सौ वृक्ष काटे गए । जिसमें करीब 500 सौ पीपल व बरगद के वृक्ष शामिल हैं । उन्होंने कहा उनकी जगह पर वृक्षारोपण महज खानापूर्ति हुई । ऐसे में प्राण वायु की कमी आना स्वाभाविक है । कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा सौ साल के वृक्षों को संरक्षित करने के लिए हेरिटेज ट्री नामक योजना चलाई थी । वन विभाग द्वारा जिलेभर से महज 8 पेड़ों की सूची दी गई । उसके पीछे विभाग का तर्क था उन पेड़ों की सूची दी गई है जो सरकारी जमीन पर लगे हैं । इस योजना में निजी क्षेत्र के वृक्षों को शामिल नहीं किया गया है । जबकि जनपद में विभिन्न प्रजाति के ऐसे हजारों वृक्ष होंगे जिनकी आयु सौ वर्ष से अधिक है । श्री द्विवेदी ने बहुत ही बेबाक शब्दों में कहा इसके लिए गांव के जागरूक लोगों को भी आगे आना होगा । और अब बचे हुए पुराने वृक्षों को धार्मिक तरीके से संरक्षित किए जाने की जरूरत है । गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने कहा था कि वृक्षों में मैं पीपल हूं । ऐसे में सदियों से इन वृक्षों का धार्मिक महत्व रहा है । वही 30 वर्षों से पर्यावरण की अलख जगा रहे व जीवन बचाओ आंदोलन के प्रमुख पर्यावरणविद संतोष कुमार बाजपेई बताते हैं । कि कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है । इस प्राणवायु की कमी के कारण लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं । लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के इस युग में हरे भरे वृक्ष ही हमें 24 घंटे ऑक्सीजन दे कर हमारे प्राण की रक्षा कर सकते हैं । इनका मानना है एक पीपल के पेड़ की आयु 300 वर्षों से अधिक होती है । इन पेड़ों की विशेषता यह होती है कि यह अपनी आयु पूरी करने के बाद जमीन से पूरी तरह उखड़ कर गिर जाते हैं । ऐसे में तमाम पेड़ अपनी आयु पूरी करने के बाद नष्ट हो गए । वहीं सड़कों के विकास का भी इन पेड़ों पर काफी असर पड़ा । अब शहर हो या गांव पीपल के यह विशालकाय वृक्ष बहुत ही कम नजर आते हैं । इनका कहना है कि गांव की खाली पड़ी सरकारी भूमि पर सरकार व पर्यावरण के प्रति जागरूक लोगों को आगे आकर इन का रोपण कराना चाहिए । ताकि गांव को एक बार फिर से पुरानी पहचान मिल सके ।
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