लॉक डाउन लगने पर लुधियाना में काम-धंधा बंद हो गया तो दूसरे मज़दूरों की तरह दोनों भाइयों के सामने भी संकट खड़ा हो गया। जेब में केवल पांच सौ रुपये बचे। न भोजन का इंतज़ाम और घर जाने भर पैसे भी नहीं। जेब में सिर्फ 500 रुपये थे। मदद की तलाश उन्हें लुधियाना के एक साइकिल स्टोर तक ले गयी। दोनों ने दुकानदार को मजबूरी बताई और पांच सौ रुपये दिये और आधार कार्ड देकर उसे बंधक रख दो सायकिल देने का निवेदन किया। कहा कि घर पहुंचने के बाद पैसा भेज देंगे। उनकी बेबसी पर दुकानदार दुकानदार ने भी दरियादिली दिखाई और साइकिलें दी दी। दोनों 21 अप्रैल को साइकिल से दोनों लुधियाना से घर के लिए निकल पड़े। रास्ते में जहां मदद मिल गयी तो कुछ खा लिया वरना चलते रहे और 10 दिन बाद घर पहुंचे तो उनकी आंखें खुशी से भर आईं। दोनों ने क्वारंटीन का पालन किया और परिजनों दूरी बनायी। दोनों भाइयों प्रकाश और राम अचल ने कहा कि लुधियाना में तो ऐसा महसूस हो रहा था कि जिंदगी वहीं खत्म हो जाएगी, अब सब टेंशन दूर हो गई है। कहा कि सबसे पहले पैसों का इन्तज़ाम करके लुधियाना के साइकिल स्टोर वाले को भेजेंगे, ताकि ग्राहकों पर उनका भरोसा बना रहे।
महाराष्ट्र के भिवंडी से एक युवक 15 दिन तक साइकिल चलाकर एक युवक अपने गांव बड़गो पहुंचा। उसे देखकर लोग खुश तो हुए लेकिन तत्काल पुलिस भी बुलवा लिया। पुलिस ने युवक को जांच के लिए जिला अस्पताल भेजकर क्वारंटीन कर दिया गया।
नौतनवा ब्लॉक के परसामलिक गांव निवासी ओमप्रकाश भी मुंबई से 13 दिन तक सायकिल चलाकर उसने बताया कि कोरोना संकट की घड़ी में कुछ नहीं सूझा तो जान बचाने के लिए सायकिल खरीदकर उसी से गांव को चल दिये। रास्ते में जगह-जगह लोगों ने उसे खाना खिलाया, मदद की। उसे प्राथमिक विद्यालय में बने क्वारंटीन में शिफ्ट कराया गया। वहीं पप्पू गुप्ता नाम का शख्स भी मुम्बई से साइकिल चलाकर दस दिन में धानी पहुंचा। उसे भी क्वारंटीन कर दिया गया।