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गोरखपुर

सीएम योगी बोले, हमारे धर्म में कहीं नहीं कहा गया किसकी पूजा करें

हिंदू होने का अर्थ यह नहीं कि मंदिर जाए, टीका लगाए

गोरखपुरSep 24, 2018 / 02:25 am

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

Akhilesh Yogi

Akhilesh Yogi

हमारे धर्म में कहीं नहीं कहा गया कि हम किसकी पूजा करें, किसकी न करें। यह कभी नहीं कहा गया कि हिन्दू का अर्थ मन्दिर में जाये, टीका लगाये। धर्म ने कभी उपासना को बन्धन नहीं बनाया और इसीलिए
हमारी संस्कृति ‘वसुधैवकुटुम्बकम’ की बात करती है। इस मंत्र ने लोक-कल्याण का वैश्विक मार्ग प्रशस्त किया।
ये बातें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कही। मुख्यमंत्री रविवार को गोरखनाथ मंदिर में ब्रह्मलीन महन्त श्री दिग्विजयनाथ महाराज की 49वीं एवं महन्त अवेद्यनाथ महाराज की चतुर्थ पुण्यतिथि के अवसर पर रविवार से प्रारम्भ विविध समसामयिक विषयों पर सम्मेलन के अन्तर्गत ‘लोक-कल्याण भारतीय संस्कृति की विशेषता है’ विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त दिग्विजयनाथ महाराज एवं गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त अवेद्यनाथ महाराज का पूरा जीवन लोक-कल्याण एवं लोक – मंगल को ही समर्पित था।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के अनेकानेक विशेषताओं में लोक-कल्याण एक महत्वपूर्ण विशेषता है यदि भारतीय संस्कृति का हम निचोड़ देखे तो वह परोपकार है। परोपकार लोक-कल्याण का ही पर्याय है। भारतीय जीवन मूल्य में स्वयं के स्वार्थ को जगह नहीं है। वही जीवन श्रेष्ठ है जो दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित हो। भारतीय संस्कृति की इसी लोक कल्याणकारी भावना से धर्म की वह शाश्वत व्यवस्था प्रतिष्ठित हुई जो परोपकार का मार्ग दिखाता है, जो सदाचार की राह का अनुगामी बनाता है, जो कर्तव्यों का भान कराता है और नैतिक मूल्यों के प्रति आग्रही बनाता है। भारत ने इसी धर्म की व्यापक अवधारणा को स्वीकारा है।
उन्होंने कहा कि भारत की सनातन संस्कृति में सदैव दूसरों के लिए जीवन जीने को महत्वपूर्ण माना गया। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ का मंत्र भारतीय संस्कृति में ही गूंजा जो लोक-कल्याण की ही प्रेरणा देता है। भारत के ऋषि परम्परा ने लोक-कल्याण एवं लोक – मंगल के लिए ही भारत की ऋषि परम्परा सदैव समर्पित रही। संकीर्णता के दायरे से बाहर निकलकर मुक्त चिन्तन के आग्रही संतो के गुरूकुलों से लोक-कल्याण और लोक – मंगल का ही मंत्र गूंजा। आज भी सरकार से अधिक धर्म स्थानों एवं धर्मार्थ संस्थानों द्वारा सेवा के प्रकल्प चलाये जा रहें हैं।
सम्मेलन के मुख्य वक्ता केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री डाॅ. सत्यपाल सिंह ने कहा कि वास्तव में मनुष्य के तीन शत्रु है- अज्ञान, अन्याय और अभाव। बिना इनके समाधान के लोक-कल्याण का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता। वास्तव में लोक-कल्याण का अर्थ इन्हीं तीन मानव शत्रुओं के विरूद्ध संघर्ष है। श्री गोरक्षपीठ ने शिक्षा संस्थाओं के माध्यम से अज्ञान के विरूद्ध संघर्ष छेड़ रखा है। अन्याय के विरूद्ध समाज को जागृति करने एवं वर्तमान में मुख्यमंत्री के रूप में महन्त योगी आदित्यनाथ ने अन्यायियों-अत्याचारियों के अन्त का शंखनाद कर रखा है। सेवा और विकास के बल पर अभाव के विरूद्ध जंग जारी है। इस पीठ की यही लोक-कल्याणकारी अज्ञान का देश प्रसंशक है। वास्तव में यह युद्ध सम्पूर्ण मानव जाती का युद्ध है।
विशिष्ठ अतिथि राष्ट्रीय स्वयं सेवक के मुकेश विनायक खांण्डेकर ने कहा कि भारत की पहचान उसकी संस्कृति से है। भारतीय संस्कृति ऋषियों की तपस्या का प्रतिफल है। इस संस्कृति में ही यह घोषित किया की परोपकार ही पुण्य है और दूसरों को पीड़ा देना ही पाप है। मातृवत् परदारेषु का उद्घोष भारतीय ऋषि परम्परा का ही है। आत्मावत सर्वभूतेषु एवं पराया धन मिट्टी के समान है मानने वाली भारतीय संस्कृति ने लोक-कल्याण, लोक-मंगल एवं सभी जीवों में ईश्वर का वास है जैसे मानवतावादी उन सिद्धान्तों को जन्म दिया जो शास्वत हैं।
रामकोट अयोध्या से पधारे जगद्गुरू राघवाचार्य महाराज ने कहा कि दोनो ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर को वास्तविक श्रद्धांजलि यही है कि उन्हांेने जिन जीवन मूल्यों के लिए अपना जीवन समर्पित किया उसे पूरा करने में अपनी सम्पूर्ण क्रियाशक्ति लगा दें।
सुग्रीवकिला अयोध्या से पधारे स्वामी विश्वेश प्रपन्नाचार्य महाराज ने कहा कि धर्म, अध्यात्म, देश, समाज और राजनीति के क्षेत्र मेें इस पीठ के आचार्यों ने सदैव अपनी सक्रिय भूमिका निभायी है। गुरू का स्वरूप प्रत्यक्ष भी है परोक्ष भी है।
अतिथियों का स्वागत एवं प्रस्ताविकी पूर्व कुलपति प्रो0 उदय प्रताप सिंह ने किया। मंच संचालन डाॅ. श्रीभगवान सिंह ने किया।
गोरक्षाष्टक पाठ अवनीश पाण्डेय, प्रियांशु चैबे, दिग्विजयस्रोत पाठ शिवांश मिश्र, महन्त अवेद्यनाथ स्रोत पाठ प्रांगेश मिश्र द्वारा प्रस्तुत किया गया।
इस दौरान डीडीयू के कुलपति प्रो. वीके सिंह, सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह, बड़ौदा से पधारे महन्त गंगादास, बड़ेभक्तमाल अयोध्या से पधारे अवधेशदास, महन्त धर्मदास, हरिद्वार से पधारे महन्त शान्तीनाथ, कटक उड़ीसा से पधारे महन्त शिवनाथ, महन्त राममिलनदास, पंचानन पुरी, स्वामी जयबक्शदास, महन्त रविन्द्रदास, महन्त मिथिलेशनाथ के अलावा प्रो. विनोद सिंह, प्रो. रविशंकर सिंह, प्रो. सुधाकर लाल श्रीवास्तव, डाॅ0 बीएन सिंह, डाॅ. उग्रसेन सिंह, अन्जू चैधरी, भाजपा जिलाध्यक्ष जर्नादन तिवारी, डाॅ. शैलेन्द्र उपाध्याय आदि मौजूद रहे।

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