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गोरखपुर

लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा मंत्री के खास से सपाइयों ने छीन ली कुर्सी, कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री की मदद भी काम न आई

यहां दो धुर विरोधी दलों के नेता परोक्ष गठबंधन में संयुक्त प्रत्याशी पर लगाए थे दांव

गोरखपुरSep 17, 2018 / 12:46 pm

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

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लोकसभा चुनाव के पहले कुशीनगर लोकसभा क्षेत्र में दो राष्ट्रीय दलों के बड़े नामों को तगड़ा झटका लगा है। सूबे के एक कद्दावर मंत्री और कांग्रेस के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के लोग भी कुशीनगर के विशुनपुरा में एक अदद प्रमुख की सीट को समाजवादी पार्टी से बचाने में नाकामयाब रहे। आलम यह कि संख्याबल का दावा करने के बावजूद सपा प्रत्याशी ने एकतरफा जीत हासिल कर ली।
वीवीआईपी विधानसभा पडरौना के दो विकास खंडों में विशुनपुरा ब्लाॅक सबसे बड़ा क्षेत्र माना जाता है। पडरौना विधानसभा और लोकसभा कुशीनगर में भी इस ब्लाॅक की एक निर्णायक भूमिका रहती है। पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद इस ब्लाॅक में प्रमुख सीट पर सपा नेता विक्रमा यादव का कब्जा रहा। 1995 में पहली बार प्रमुख चुने गए विक्रमा यादव लगातार इस सीट से प्रमुख रहे। इस सीट पर उनकी पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब 2005 में यह सीट अनुसूजित जाति के लिए सुरक्षित की गई थी तो उन्होंने अपने ड्राइवर को प्रमुख बनवा लिया था।
2010-11 में संयुक्त विपक्ष बनाकर इस सीट से विक्रमा यादव को हराने की कवायद शुरू हुई। तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह सीधे तौर पर इस विक्रमा यादव के चचेरे भाई रामदयाल यादव को चुनाव मैदान में उतारे थे। इस संयुक्त विपक्ष में परोक्ष रूप से बीजेपी और प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस शामिल थी। कहा जाता है कि सपा के भी काफी लोग संयुक्त विपक्ष में लगे हुए थे। लेकिन सारी ताकतें लगी रहने के बावजूद यह सीट विक्रमा यादव ने जीत ली।
हालांकि, 2015 आते-आते विक्रमा विशुनपुरा ब्लाॅक में कमजोर होते गए। एक बार फिर चुनाव की डुगडुगी बजी। लेकिन इस बार स्थितियां बदल चुकी थी। पिछली बार का संयुक्त विपक्ष इस बार भी एकजुट था। पडरौना के एक बड़े व्यवसायी परिवार से ताल्लुक रखने वाले गोल्डी जायसवाल ने अपनी पत्नी कंचन जायसवाल को मैदान में उतारा। लेकिन इस बार स्थितियां पहले जैसी नहीं थी। अजेय प्रमुख रहे विक्रमा या उनके परिवार का कोई भी पर्चा दाखिला तक नहीं किया।
निर्वाचित प्रमुख कंचन जायसवाल के पति गोल्डी जायसवाल पहले तो पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री आरपीएन सिंह के साथ रहे लेकिन कुछ ही महीनों में वे बसपा से भाजपा में आए कद्दावर मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के सबसे खास में शुमार हो गए।
उधर, अभी दो साल भी नहीं बीता कि पूर्व प्रमुख विक्रमा यादव का खेमा एक बार फिर सक्रिय हुआ। बीजेपी सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के करीबी प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला दिया। सबको अंदाजा था कि अविश्वास पास नहीं हो पाएगा लेकिन अंदाजा गलत निकला और कंचन जायसवाल की कुर्सी छिन गई। सूत्र बताते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव पास होने के बाद भी भाजपा के मंत्री अपने करीबी को आश्वस्त करते रहे कि पुनः जीत हासिल होगी। इसके लिए पूरी कवायद शुरू हो गई। उपचुनाव का ऐलान सितंबर माह में हुआ। दोनों पक्षों से पर्चा खरीदा गया। गोल्डी जायसवाल और उनकी पत्नी के अलावा विक्रमा यादव, उनके भाई लल्लन समेत छह ने पर्चा खरीदा। लेकिन अंत समय में गोल्डी जायसवाल या उनकी पत्नी पर्चा दाखिल नहीं कर सकी। बताया जा रहा कि इनके पास जरूरी बीडीसी ही नहीं जुट पाए। इसके बाद विक्रमा यादव का एक बार फिर ब्लाॅक में वापसी की चर्चा शुरू हुई तो फिर संयुक्त विपक्ष सक्रिय हो गया। गोल्डी जायसवाल का खेमा मैदान में बचे दो प्रत्याशियों अरुण राय और भरत यादव में किसी एक को मजबूती से उतारने का मन बना लिया। तय हुआ कि अरुण राय को मैदान में उतारा जाए। अरुण राय कांग्रेसी नेता के घर के हैं। अरुण राय का नाम आते ही पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह ने भी 20 बीडीसी की व्यवस्था करने का आश्वासन देकर आशीर्वाद दिया। काबीना मंत्री के करीबी गोल्डी जायसवाल अपने पास 40-45 बीडीसी के होने का दावा कर रहे थे। यानी जीत का जादुई आंकड़ा इनके पास होने की बात सामने आने लगी।
लेकिन जब उपचुनाव के लिए वोट पड़े तो सारे दावे धरे के धरे रह गए। विक्रमा यादव के भाई लल्लन को एकतरफा 92 वोट मिले तो अरुण राय को 25 वोट ही मिल सके। सात मत अवैध हो गए।

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