तीन दिन पूर्व की यह वारदात कठुआ कांड से कम खौफनाक नहीं है। वैसे ही फुटपाथ पर रहने वालों की जिंदगी किसी यातना से कम नहीं होती लेकिन मेहनत-मजदूरी के बल पर तमाम जिंदगियां यहां गुजर बसर करती हैं। दो जून की रोटी तलाश ही मासूम खुशी के मां-बाप को गोरखपुर खींच लाई थी। तभी से फुटपाथ ही इनका आसरा था। रोज की तरह इस शनिवार को भी खुशी अपने पिता की गोद में सोेयी हुई थी। देर रात में अचानक से कोई दरिंदा चुपके से उसे उठा लिया। जब रात में परिवारीजन की नींद खुली तो खुशी को वहां न पा सब परेशान हो गए। उसी रात बदहवास उसे खोजने लगे। काफी देर की खोजबीन के बाद वह एक सरकारी बंगले के परिसर में झाड़ियों में मिली। बेहोश। गले व सिर से खून का तेजी से रिसाव हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि बच्ची की जान लेने की कोशिश की गई थी।
मासूम संग दरिंदगी की सूचना पाकर पुलिस भी काफी सक्रिय रही। लेकिन वह इस मामले को किसी तरह निपटाने में लगी थी। जैसे ही मासूम की मौत हुई जल्दी से उसके शव को परिवारीजन को सौंप दिया गया। बिना पोस्टमार्टम कराए ही मामले को रफादफा कर दिया गया।