जो अटलांटा की सीडीसी न कर सकी वह योगी सरकार ने कर दिखाया!
इंसेफेलाइटिस केसों में अप्रत्याशित कमी, अगस्त 2019 तक केवल छह मौतें
स्वास्थ्य विभाग का दावा, जागरूकता व बेहतर चिकित्सीय सुविधा से हो पाया संभव
आंकड़ों पर उठ रहे सवाल भी, जानकार बता रहे मरीजों को दूसरी बीमारी बता किया जा रहा भर्ती
बिहार में इंसेफेलाइटिस (Encefelitis)के कहर से सहमें पूर्वांचल के लिए यह साल काफी सुखद है। इस साल के जारी आंकड़ों के मुताबिक इंसेफेलाइटिस के केसों में बेहद कमी आई है। इस साल अगस्त माह तक महज छह मौतें ही दर्ज हैं। इसमें दो केस जापानी इंसेफेलाइटिस(Japani encefelitis) के हैं तो चार केस एईएस(AES) के हैं। यह एक उत्साहजनक परिणाम है क्योंकि इंसेफेलाइटिस पर काबू पाने में अटलांटा की सीडीसी समेत देश की प्रमुख शोध संस्थानों के प्रयास के बावूजद मौत के आंकड़ों में कोई कमी नहीं आ सकी थी। स्वास्थ्य विभाग ने 1 जनवरी 2019 से 27 अगस्त 2019 तक के जो आंकड़े जारी किए हैं उसके मुताबिक इंसेफेलाइटिस के कुल 102 मरीज ही मिले। जबकि बीते साल अगस्त तक यह आंकड़ा डेढ़ सौ से अधिक पर था। आंकड़ों के अनुसार इस साल जेई यानी जापानी इंसेफेलाइटिस के कुल आठ केस सामने आए। इसमें दो बच्चों की मौत हो गई। जबकि एईएस के कुल 94 केस आए। इसमें से चार बच्चों की मौत हुई। बाकी सभी को बचा लिया गया। स्वास्थ्य विभाग दावा कर रहा है कि पिछले दो सालों में इंसेफेलाइटिस पर काबू पाया जा चुका है। पिछले साल अगस्त तक डेढ़ सौ से अधिक मरीज आए थे। इसमें से बीस की मौत हुई थी। जबकि इस साल मौतों का आंकड़ा करीब चौथाई पर पहुंच गया है। बीआरडी मेडिकल काॅलेज प्रशासन द्वारा दी गई एक सूचना के मुताबिक 2018 में इंसेफेलाइटिस से होनी वाली मौतों में कमी आई है। जानकारी के मुताबिक 2018 में मेडिकल काॅलेज में एईएस के 1047 मरीज भर्ती हुए जिसमें 166 की मौत हुई। जबकि इस दौरान 142 मरीजों में जेई की पुष्टि हुई थी। जेई से मरने वालों की संख्या इस साल 16 रही।
IMAGE CREDIT: Dheerendra Gopalइस तरह इंसेफेलाइटिस को काबू करने का दावा सरकार और स्वास्थ्य विभाग इंसेफेलाइटिस के केसों में आई कमी को जागरूकता अभियान और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का हवाला दे रहा है। स्वास्थ्य महकमा के अनुसार सभी विभागों ने मिलकर जागरूकता अभियान चलाया। दस्तक अभियान सहित कई अभियानों से लोगों में बीमारियों के प्रति जागरूकता आई है। इसके अलावा जिलों पर भी इंसेफेलाइटिस के इलाज के लिए बेहतर व्यवस्था दी गई है। इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर्स को भी सक्रिय रखा गया है। इन वजहों से इंसेफेलाइटिस के मरीजों को त्वरित इलाज मिल जा रहा है। इस वजह से बीमारी पर काबू पाया जा सका है।
2017 में आक्सीजन कांड ने सबको झकझोर कर रख दिया इंसेफेलाइटिस से हर साल होने वाली मौतों के बीच अगस्त 2017 में बीआरडी मेडिकल काॅलेज की एक घटना से सबको झकझोर कर रख दिया था। आक्सीजन की कमी से यहां तीन दर्जन से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी। पूरे देश में उबाल था, उस समय प्रदेश सरकार के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने ‘अगस्त में तो बच्चे मरते हैं’ का बयान देकर सरकार की काफी किरकिरी कराई थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जिला होने की वजह से सरकार की और फजीहत हुई थी। इस मामले में बाद में कई कार्रवाईयां हुई। तत्कालीन प्राचार्य समेत कई डाॅक्टर्स व स्टाॅफ के खिलाफ केस दर्ज कर गिरफ्तार कराया गया था लेकिन एक के बाद एक सभी आरोपी जमानत पर छूटते चले गए।
IMAGE CREDIT: Dheerendra Gopalदो साल से इंसेफेलाइटिस की डेली बुलेटिन बंद, आंकड़ें लिफाफा में बीआरडी में आक्सीजन कांड के बाद इंसेफेलाइटिस से जुड़े आंकड़ों पर सेंसरशिप लागू कर दी गई। उस घटना के पहले तक रोज-ब-रोज के आंकड़े मेडिकल काॅलेज के अस्पताल प्रशासन द्वारा जारी किया जाता था। इसमें बताया जाता था कि इंसेफेलाइटिस से कितने मरीज भर्ती हुए, कितन डिस्चार्ज हुए और कितनों की मौत हो गई। लेकिन आक्सीजन कांड के बाद मेडिकल काॅलेज से सूचना बंद कर दी गई। कुछ दिनों तक जिला सूचना विभाग आंकड़े जारी करता था लेकिन एक दो माह बाद उसे भी बंद कर दिया गया। आलम यह कि इससे जुड़े आंकड़ों को बेहद गोपनीय तरीके से शासन को भेजा जाता रहा। इसके बावजूद कुछ दिनों तक सूचना बाहर आ जाती रही, इस पर प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए कई जिम्मेदारों को इधर-उधर कर दिया। करीब दो साल से कोई सूचना नहीं दी जा रही है। हालांकि, मेडिकल काॅलेज के इस रवैया पर कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू ने विधानसभा में भी इंसेफेलाइटिस संबंधी बुलेटिन जारी नहीं करने का मामला उठाया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो सकी।
मौत के आंकड़ों पर उठ रहे सवाल उधर, आक्सीजन कांड के बाद इंसेफेलाइटिस संबंधी सूचना पर बैन और सरकार द्वारा जारी साल 2018 व 2019 के आंकड़े पर सवाल उठ रहे हैं। वजह यह कि अचानक से कौन सा चमत्कार हो गया कि इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों की संख्या में इतनी कमी हो गई। चिकित्सा क्षेत्र के एक जानकार बताते हैं कि इंसेफेलाइटिस के आंकड़ों में भी अब खेल हो रहे हैं। 2018 से बीआरडी मेडिकल काॅलेज में इंसेफेलाइटिस के मरीजों को एक्यूट वायरल फीवर/एक्यूट फीवरिल इलनेस होना बताकर एडमिट किया गया। इससे इंसेफेलाइटिस के आंकड़ों में व्यापक स्तर पर कमी आना दर्शाना संभव हो सका है। स्वास्थ्य महकमे के इस खेल को उजागर करने के लिए पिछले दो साल से सूचना के अधिकार के तहत एक्यूट वायरल फीवर/एक्यूट फीवरिल इलनेस से भर्ती मरीजों की संख्या मांगी जा रही है लेकिन वह सूचना उपलब्ध नहीं करायी जा रही। हालांकि, इन आरोपों पर स्वास्थ्य विभाग से लेकर कोई भी बड़ा जिम्मेदार कुछ भी बोलने को तैयार नहीं।
इन जिलों के लिए कहर रही इंसेफेलाइटिस गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल काॅलेज में गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्घार्थनगर, संत कबीरनगर, बहराइच, लखीमपुर खीरी और गोंडा आदि जिलों से लोग इलाज के लिए आते हैं। इसके अलावा बिहार प्रांत से भी काफी संख्या में मरीज इसी मेडिकल काॅलेज पर निर्भर हैं।
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