योगी खेमा और संगठन के बीच खींच सकती है लकीर गोरखपुर संसदीय सीट मंदिर के प्रभाव वाली सीट है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही इस सीट को छोड़ चुके हैं लेकिन वह अपने किसी खास या मंदिर से जुड़े व्यक्ति को ही इस सीट पर जीता हुआ देखना चाहते हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो मंदिर से जुड़े हुए किसी भी व्यक्ति को अगर संगठन टिकट देता है तो यह खेमा पूरी दमखम के साथ जुटेगा। जबकि संगठन के तमाम लोगों का तर्क यह है कि संगठन के व्यक्ति को या संगठन की पसंद को टिकट देकर पार्टी चुनाव जितवाने का प्रयत्न करे तो कार्यकर्ताओं का भी मनोबल बढ़ेगा। क्योंकि उपचुनाव में हार के बाद यहां संगठन की काफी किरकिरी हो चुकी है। आलम यह है कि दोनों खेमा इस हार के लिए एक दूसरे पर आरोप लगाने में ही व्यस्त है।
प्रदेश संगठन महामंत्री हार के बाद कई बार आ चुके गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव के बाद प्रदेश के संगठन महामंत्री सुनील बंसल कई दौरे कर चुके हैं। वह सांगठनिक मजबूती के लिए लगातार इस सीट के अलावा आसपास सीटों पर नजरें गड़ाए हुए हैं। आलम यह कि पूर्वांचल में सुनील बंसल ने जो भी बैैठक या कार्यक्रम लगाए उसमें अधिकतर गोरखपुर या इसके आसपास के जिलों में ही लगे। माना यह जा रहा है कि लोकसभा उपचुनाव में योगी के गढ़ में हार के बाद बीजेपी इस सीट पर खास रणनीति बना रही है ताकि विपक्षी गठबंधन को मात दिया जा सके।
उपचुनाव में मंदिर की पसंद थे योगी कमलनाथ गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का खेमा उपचुनाव में दांव लगाना चाह रहा था। मुख्यमंत्री का भी इस नाम पर मूक समर्थन हासिल था। मुख्यमंत्री खेमे की तर्क यह थी कि योगी कमलनाथ का सबसे मजबूत आधार उनका मंदिर से जुड़ा होना था। वह निर्विवाद तो थे ही मुख्यमंत्री से जुड़े अधिकतर लोग उनके लिए क्षेत्र में निकलते। सबसे महत्वपूर्ण यह कि योगी कमलनाथ अनुसूचित जाति के होने के नाते गोरखपुर के एक महत्वपूर्ण और जिताउ वोटबैंक को जोड़ने में सफल होते। इसके अलावा मंदिर की ओर से एक और नाम उछला था वह है वर्तमान क्षेत्रीय अध्यक्ष डाॅ.धर्मेंद्र सिंह का। डाॅ.धर्मेंद्र सिंह मंदिर के करीबी होने के साथ संगठन से भी जुड़े थे। उनको प्रत्याशी बनाए जाने पर ओबीसी वर्ग को साधने का तर्क दिया जा रहा था।
‘89 से लगातार मंदिर का रहा कब्जा, 2017 में लगा थ झटका गोरखपुर लोकसभा सीट गोरखनाथ मंदिर के प्रभाव क्षेत्र वाली सीट मानी जाती है। सन् 1989 से यह सीट लगातार मंदिर के पास रही है। 1989 में इस सीट से गोरखनाथ मंदिर के महंत अवेद्यनाथ विजयश्री हासिल किए थे। 1991 में हुए चुनाव में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे। यह चुनाव भी उन्होंने आसानी से जीत ली। 1992 व 1996 में भी महंत अवेद्यनाथ सांसद के रूप में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से प्रतिनिधित्व किए। लेकिन 1996 में महंत अवेद्यनाथ ने राजनीति से सन्यास ले लिया। इसके बाद हुए चुनाव में उन्होंने अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को मैदान में उतारा। 1998 में योगी आदित्यनाथ चुनाव जीतकर 26 साल की उम्र में सांसद बन गए। इसके बाद हुए संसदीय चुनाव का परिणाम योगी आदित्यनाथ के पक्ष में रहा। योगी आदित्यनाथ 1998 के बाद 1999, 2004, 2009 और 2014 का चुनाव लगातार जीतकर पांच चुनाव लगातार जीतने वाले गोरखपुर के पहले सांसद बने। लेकिन 2017 में यूपी का मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने संसदीय सीट छोड़ दी। इस सीट पर हुए उपचुनाव कराया गया। बीजेपी ने तत्कालीन क्षेत्रीय अध्यक्ष उपेंद्र दत्त शुक्ल को चुनाव मैदान में उतारा तो समाजवादी पार्टी ने विपक्षी एकता का दांव चलते हुए यहां काफी सक्रिय निषाद पार्टी के अध्यक्ष डाॅ.संजय निषाद के पुत्र प्रवीण निषाद को अपनी सिंबल पर मैदान में उतारा। कांग्रेस को छोड़कर विपक्ष सपा प्रत्याशी के पक्ष में खड़ा रहा। परिणाम अप्रत्याशित आया और योगी के गढ़ में बीजेपी चुनाव हार गई थी।