क्षेत्र में केले की खेती करने वाले किसान हरी प्रसाद बताते हैं कि गन्ना को बोना छोड़कर केले की खेती की ओर रूख किया। फायदे वाला सौदा तो है लेकिन अधिक पैदावार से अचानक कीमतों में गिरावट से लागत तक निकालना मुश्किल हो जाता है। वह बताते हैं कि अगर पूर्वांचल के किसान गन्ने की खेती को छोड़कर केला, आलू या अन्य इस तरह के फसल उगाना शुरू कर दे तो पैदावार तो बढ़ जाएगा लेकिन सुविधा और मार्केट के अभाव में किसान बर्बाद होने से भी नहीं बच सकेगा। क्षेत्र के एक किसान करीब एक दशक पूर्व का एक वाकया याद करते हुए बताते हैं कि चीनी मिलों के बंद होने से परेशान किसानों ने आलू, केला आदि बहुतायत में बोए थे। उस वक्त स्थिति यह हो गई कि अधिकतर किसानों को लागत तक नहीं मिल सकी। आज की तारीख में भी इन पैदावारों के संरक्षण के लिए कोई सरकारी उपाय नहीं किए जा सके हैं। किसान एक अदद कोल्ड स्टोरेज को परेशान रहता है। ऐसे में गन्ना के अतिरिक्त किसी अन्य विकल्प पर किसान की निर्भरता खुद को बर्बाद होने की दिशा में कदम उठाना ही हो सकता।
गोरखपुर मंडल कभी चीनी का कटोरा हुआ करता था और गन्ना यहां की लाइफलाइन। गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीनगर और आसपास के जिलों में प्रमुख नकदी फसल गन्ना ही था। लेकिन समय ने करवट ली और गन्ना किसानों के नकदी फसल से पहले वोटबैंक में तब्दील होेता गया। आलम यह कि पूर्वांचल में गन्ना किसानों की बदहाली दिखाकर वोट की फसल काटकर राजनीति तो चमकायी जाती रही लेकिन किसानों की किस्मत फूटती गई।
आंकड़ों पर अगर गौर करें तो गोरखपुर परिक्षेत्र की पांच चीनी मिलें को कुल 131877.06 लाख रुपये में अभी भी 27071.18 लाख रुपया भुगतान देना है। गोरखपुर परिक्षेत्र में बस्ती की तीन चीनी मिलें और महराजगंज की दो चीनी मिलों ने किसानों का भुगतान अभी तक नहीं किया है।
कुशीनगर की पांच चीनी मिलों में केवल ढाढा चीनी मिल ऐसी है जिसने शत प्रतिशत किसानों का भुगतान कर दिया है। जबकि इसी जिले की खड्डा चीनी मिल पर 1751.74 लाख बकाया है। रामकोला पी. चीनी मिल पर 7121.18 लाख रुपया बकाया है। कप्तानगंज चीनी मिल 5575.26 लाख रुपये किसानों का दबाए रखे हैं। सेवरही चीनी मिल 6469.96 लाख रुपये दबाए हुए है। प्रतापपुर चीनी मिल 1357.54 लाख रुपये किसानों का भुगतान नहीं किया है। गडौरा चीनी मिल 3221.30 लाख रुपये का भुगतान किसानों का अभी तक नहीं किया है। वहीं सिसवा बाजार चीनी मिल द्वारा 1574.20 लाख रुपये किसानों का गन्ना भुगतान रोके हुए है।
बस्ती के बभनान चीनी मिल को अभी भी गन्ना किसानों का 8480.12 लाख रुपये भुगतान करना बाकी है। वाल्टरगंज चीनी मिल को 1993.87 लाख रुपये भुगतान देना है। रूधौली चीनी मिल भी 5864.51 लाख गन्ना किसानों का दबाए हुए है।
फिलहाल, इस क्षेत्र में 11 चीनी मिलें चालू हालत में हैं। गोरखपुर में एक भी चीनी मिल चालू नहीं है। यहां की सरदारनगर, धुरियापार व पिपराइच चीनी मिलों पर ताला लटक रहा है। पिपराइच के दिन शायद आने वाले साल में बहुर जाए।
देवरिया की पांच मिलों में चार गौरीबाजार, बेतालपुर, देवरिया व भटनी मिलों पर ताला लटक रहे हैं। सिर्फ एक प्रतापपुर मिल संचालित है।
कुशीनगर जिले में 10 चीनी मिलें हुआ करती थीं। इनमें पांच मिलें रामकोला, खड्डा, सेवरही, कप्तानगंज व ढाढा बुजुर्ग चल रही हैं जबकि छितौनी, लक्ष्मीगंज, पडरौना, कठकुइयां व रामकोला खेतान बंद है। महराजगंज की चार मिलों में से सिसवा व गड़ौरा चल रही हैं जबकि फरेंदा व घुघली बंद हैं। बस्ती में पांच में से तीन बभनान, वाल्टरगंज व रुधौली मिलें चल रही हैं जबकि मुंडेरवा व बस्ती की मिलें बंद हैं। संतकबीरनगर की एक मात्र मिल बंद हो चुकी है। सिद्धार्थनगर में कोई चीनी मिल नहीं।