टैक्स पेयर्स चार्टर अंग्रेजी हुकूमत की याद दिला रहा, न्यूनतम मजदूरी/वेतन पर थी अपेक्षा
टैक्स पेयर्स चार्टर अंग्रेजी हुकूमत की याद दिला रहा, न्यूनतम मजदूरी/वेतन पर सरकार क्यों चुप
डाॅ.चतुरानन ओझा, अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच
कारपोरेट को लाभ पहुंचाने के लिए लाए गए इस बजट से आम आदमी गायब है। हर ओर ठेका व निजीकरण की आहट इस बजट में है। केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जिस तरह बजट पेश करते हुए बताया कि बड़े टैक्स पेयर्स के लिए चार्टर बनाया जाएगा उससे गुलामी के दिनों की अंग्रेजी हुकूमत का अक्स झलकता है। अंग्रेजों ने भी कुछ खास लोगों के लिए स्पेशल प्राविधान किया था। उनको विशेष सुविधा मिलती रही। अगर वित्त मंत्री आम आदमी, किसान, मजदूरों के बारे में भी ऐसी बात करती तो कितना बढ़िया होता। बजट में नए स्मार्ट सिटी की बात कही गई है लेकिन पहले घोषित 100 स्मार्ट सिटी का क्या हुआ यह भी बताना चाहिए था। सभी जानते हैं 100 का क्या हुआ और इस 5 का क्या होगा। स्वास्थ सेवाओं, रेलवे, शिक्षा सहित कई सेक्टर्स का भी कारपोरेटीकरण किया जा रहा। इस बजट में ऐसा कुछ नहीं है जिसमें स्वतंत्रता, समानता व भाइचारे की भाव दिखती हो। न्यूनतम मजदूरी देने पर कोई बात नहीं है। आंगनबाड़ी कार्यकत्र्रियों को स्मार्ट फोन देने की बात कही है लेकिन वह न्यूनतम मजदूरी की बात नहीं की हैं। यह बजट प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाला, पुराने झूठों को स्थापित करने वाला है। किसानों की आय दुगुनी की बात बहुत पहले से हो रही है। लेकिन किसानों की आय है ही कितनी जो दुगुनी होगी, किसान तो घाटे में है और घाटा होता जा रहा है। एलआईसी का कुछ हिस्सा बेचने जा रही हैं। नई शिक्षा नीति पर बजट में प्राविधान हैं। सरकार ऐसे कोर्स चलाएगी जिससे लोग विदेशों में जाकर रोजगार हासिल कर सकेंगे। इससे साफ है कि सरकार के पास अपने देश में रोजगार देने के लिए कोई पहल नहीं कर रही है ना ही इनके पास कोई नीति है। ढाई घंटे के वित्त भाषण में आम आदमी के लिए ऐसा कुछ नहीं जिससे कहा जा सके यह बजट आम आदमी के लिए है। मंदी से निपटने के लिए आम लोगों की क्रय क्षमता बढ़े इसके लिए कोई साहसपूर्ण प्राविधान नहीं कर पाई हैं। इस बार भी आम आदमी निराश हुआ, कारपोरेट के लिए बजट तय किया।
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