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गोरखपुर

Gorakhpur bypoll results 2018 तीन पीढ़ियों की मेहनत से इस सीट पर अपराजेय हुए थे योगी आदित्यनाथ

योगी आदित्यनाथ को अपने गुरु से विरासत में मिली इस सीट पर गोरखनाथ मंदिर के तीन महंतों ने बारी-बारी से दस बार प्रतिनिधित्व किया

गोरखपुरMar 14, 2018 / 07:52 pm

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

gorakhpur by election
गोरखपुर। भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर के इतर प्रत्याशी उतारकर हार का सामना करने को मजबूर हुई।
हिंदू महासभा हो या भारतीय जनता पार्टी गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर से जुड़े किसी प्रत्याशी के इतर कभी भी जीत दर्ज करने में सफल नहीं हो सकी है। हालांकि, गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसभाओं के दौरान बीजेपी प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ल को अपना प्रतिनिधि जरूर बताते रहे लेकिन लोग इसे शायद मन से स्वीकार नहीं कर सके। और इसका नतीजा यह रहा कि गोरखनाथ मंदिर की 29 सालों से अपराजेय सीट इस उपचुनाव में हाथ से निकल गई।
योगी आदित्यनाथ को अपने गुरु से विरासत में मिली इस सीट पर गोरखनाथ मंदिर के तीन महंतों ने बारी-बारी से दस बार प्रतिनिधित्व किया है। 16वीं लोकसभा में खुद पांचवी बार योगी आदित्यनाथ चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा देकर यह सीट छोड़ दी थी और उपचुनाव में सीट ही जनता ने दूसरे को सौंप दी।
गोरखनाथ मंदिर और राजनीति का गहरा संबंध रहा है। आजादी की लड़ाई में भी गोरखनाथ मंदिर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके अलावा हिंदूत्व का झंडा बुलंद करते हुए हिंदूवादी राजनीति का अलख जगाने में यह पीठ सबसे आगे रहा। आजादी के बाद अयोध्या में राममंदिर आंदोलन की धार को इसी पीठ से तेज किया जाता रहा। महंत दिग्व नाथ नाथ ने श्रीराम जन्मभूमि प्रकरण में खुद को आगे करते हुए 1949 में अयोध्या में राम-सीता की मूर्ति स्थापित करने में अग्रणी भूमिका अदा की थी।
1937 से हिंदू महासभा की राजनीति कर रहे महंत दिग्विजयनाथ ने पहला आम चुनाव भी लड़ा। लेकिन 1951 में पहले आम चुनाव में दो सीटों गोरखपुर दक्षिण और गोरखपुर पश्चिम से संसदीय चुनाव लड़े महंत दिग्विजयनाथ को सफलता नहीं मिल सकी। 1962 में उन्होंने गोरखपुर संसदीय सीट से फिर जोर आजमाईश की लेकिन इस बार भी उनको सफलता नहीं मिली। 1967 में वह हिंदू महासभा से चुनाव जीतने में सफल रहे। 1967 के संसदीय चुनाव में जनता ने महंत दिग्विजयनाथ के पक्ष में जमकर मतदान किया और वह चुनाव जीत गए। महंत दिग्विजयनाथ को 121490 मत मिले। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी एसएल सक्सेना को हराया था। सक्सेना को 78775 वोट मिले। लेकिन महंत दिग्विजयनाथ यह कार्यकाल पूरा न कर सके। 1969 में इस सीट पर उपचुनाव कराना पड़ा। उनकी जगह उनके उत्तराधिकारी महंत अवेद्यनाथ चुनाव मैदान में आए। वह उस समय मानीराम से विधायक थे। महंत अवेद्यनाथ सांसद चुन लिए गए। पर 1971 के आम चुनाव में महंत अवेद्यनाथ को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस प्रत्याशी नरसिंह नारायण पांडेय 136843 मत पाकर चुनाव जीत गए। महंत अवेद्यनाथ 99265 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। इस हार के बाद महंत अवेद्यनाथ ने संसदीय राजनीति से दूरी बनाते हुए विधानसभा चुनाव ही लड़ते रहे। वह मानीराम से आधा दर्जन बार विधायक रहे।
1989 में महंत अवेद्यनाथ एक बार फिर गोरखपुर संसदीय चुनाव लड़े। यह वह दौर था जब जनता दल की लहर चल रही थी और भाजपा भी जनता दल के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही थी। महंत अवेद्यनाथ ने अखिल भारतीय हिंदू महासभा से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। महंत अवेद्यनाथ 193821 वोट पाकर सांसद बने। जबकि जनता दल के रामपाल सिंह 147984 वोट पाकर दूसरे स्थान पर और कांग्रेस प्रत्याशी व निवर्तमान सांसद मदन पांडेय को तीसरे स्थान पर रहे।
1989 के इस चुनाव के बाद तो गोरखपुर संसदीय सीट पर गोरखनाथ मंदिर का कब्जा अजेय हो गया। 1991 में हुए चुनाव में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे। यह चुनाव भी उन्होंने आसानी से जीत ली।
1992 व 1996 में भी गोरखपुर के सांसद महंत अवेद्यनाथ ही चुने गए। 1996 का चुनाव जीतने के बाद महंत अवेद्यनाथ ने राजनीति से सन्यास ले ली। 1998 में उन्होंने यह सीट अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को सौंप दी। योगी आदित्यनाथ पहली बार चुनाव मैदान में थे। 1998 में योगी को जीत हासिल हुई। 1998 में गोरखपुर से 12वीं लोकसभा का चुनाव जीतकर योगी आदित्यनाथ संसद पहुंचे तो वह सबसे कम उम्र के सांसद थे। योगी आदित्यनाथ 26 साल की उम्र में पहली बार सांसद बने थे। इसके बाद हुए संसदीय चुनाव का परिणाम योगी आदित्यनाथ के पक्ष में रहा। योगी आदित्यनाथ 1998 के बाद 1999, 2004, 2009 और 2014 का चुनाव लगातार जीतकर पांच चुनाव लगातार जीतने वाले गोरखपुर के पहले सांसद बने।
2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया। मुख्यमंत्री बनने केबाद योगी आदित्यनाथ एमएलसी निर्विरोध निर्वाचित हुए और इसी के साथ उन्होंने संसद सदस्य के पद से इस्तीफा दे दिया। योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद यह सीट रिक्त हो गई। 11 मार्च को इस सीट पर उपचुनाव के लिए मतदान हुआ।
बुधवार को हुए मतों की गिनती में सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद ने 21961 मतों से बीजेपी प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ल को हराकर तीन दशक की अपराजेय सीट पर कब्जा जमा लिया।

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