प्रतिद्वंद्वी मूसा ने पहले ही दे दिया था समर्थन
अल-सीसी का निर्वाचन पहले से ही तय माना जा रहा था। इसकी बड़ी वजह यह थी कि उनके प्रतिद्वंद्वी मूसा मुस्तफा मूसा ने पहले ही उन्हें अपना समर्थन दे दिया था और वह चुनाव प्रचार में भी नहीं उतरे थे। इसके अलावा राष्ट्रपति चुनाव में उतरे बाकी के सारे उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया था। गौरतलब है कि 2011 में हुई क्रांति के बाद मिस्र में राष्ट्रपति चुनाव के लिए तीसरी बार मतदान हो रहा है।
41 फीसदी मतदाताओं ने लिया हिस्सा
एनइए के अध्यक्ष लाशिन इब्राहिम ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि मिस्र के करीब छह करोड़ मतदाताओं (देश के भीतर और देश के बाहर दोनों मिला कर) में से मात्र 41.05 प्रतिशत (24,254,152 वोट) ने ही मतदान में हिस्सा लिया, जबकि 2014 के चुनाव में 47.45 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया था। इसमें अल-सीसी को 21,835,387 वोट मिले, जबकि मूसा को 656,534 वोट प्राप्त हुए।
मतदान अनिवार्य बनाया गया था
कड़ी सुरक्षा के बीच मतदान 26 मार्च से 28 मार्च तक चला था। इसके लिए 13,700 मतदान केंद्र बनाए गए थे, और नौ अरब व अंतरराष्ट्रीय संगठन, 50 स्थानीय नागरिक संठन तथा अरब लीग व अफ्रीकी संघ चुनाव की निगरानी कर रहे थे। एनइए ने मतदान को अनिवार्य बना दिया था। उसने पहले ही यह तय कर दिया था कि राष्ट्रपति चुनाव में वोट न देने वाले मिस्र के मतदाताओं पर 500 मिस्री पाउंड (लगभग 28 डॉलर) का जुर्माना लगाया जाएगा।
बड़ी चुनौती है सीसी के सामने
दूसरी बार सीसी के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद उनके पास सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की है। 2013 में मोहम्मद मुर्सी के तख्ता पलट के बाद 8 जून 2014 को सीसी पहली बार राष्ट्रपति बने थे। आपको बता दें कि 2011 में हुई क्रांति के बाद से ही मिस्र की अर्थव्यवस्था बड़े संकट का सामना कर रही है। पर्यटन और विदेशी निवेश यहां की अर्थव्यवस्था के दो प्रमुख स्तंभ हैं।