ऑक्सीजन के कम फ्लो से परेशान हर दिन मरीज बदल रहे वार्ड
अधूरे इंतजामों के साथ शुरू किया कोविड वार्ड-2न ऑक्सीजन की प्रयाप्त सुविधा है और न स्टाफ की100 मरीज, डॉक्टर 2, वार्ड बॉय 2, अटेंडर रखने की अनुमति नहीगंभीर मरीज हो रहे परेशानसांस लेने में तकलीफ वाले मरीजों की सबसे ज्यादा हो रही मौतमेडिकल वार्ड को कोविड वार्ड में तब्दील करने दे परेशानी बढ़ी
ऑक्सीजन के कम फ्लो से परेशान हर दिन मरीज बदल रहे वार्ड
गुना. बढ़ते कोरोना संक्रमण के बाद जिला अस्पताल में सामान्य ओपीडी को बंद कर दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य कोविड के संदिग्ध व संक्रमित मरीजों पर ज्यादा से ज्यादा से फोकस करना था। साथ ही कोविड के मरीजों को पर्याप्त जगह के साथ स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना था। लेकिन यह दोनों ही उद्देश्य पूरे नहीं हो पा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह है अधूरे इंतजाम। इस समय मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना कोविड वार्ड-2 में करना पड़ रहा है। यहां भर्ती होने वाले ज्यादातर मरीज ऑक्सीजन का कम फ्लो आने की शिकायत के चलते दूसरे वार्ड में शिफ्ट में हो रहे हैं। यह सिलसिला बीते 10 दिनों से लगातर जारी है। चिंताजनक बात तो यह है कि यह जानकारी अस्पताल में सभी को है लेकिन जिम्मेदार अधिकारी इसे लगातार अनदेखा कर रहे हैं। यही कारण है कि कोविड वार्ड-2 में यह समस्या आज भी बनी हुई है।
जानकारी के मुताबिक मई माह में कोविड मरीजों की संख्या बढऩे के बाद जिला अस्पताल का 70 प्रतिशत हिस्सा कोविड मरीजों के लिए उपयोग किया जा रहा है। बीते कुछ दिनों दिनों में जिला अस्पताल में भर्ती होने वाले ऐसे मरीजों की संख्या ज्यादा बढ़ गई जिन्हें सांस लेने में तकलीफ ज्यादा थी। यही कारण है कि इन सभी मरीजों को भर्ती करने के लिए जगह का अभाव था।ऐसे में डीईआईसी भवन को भी कोविड वार्ड में तब्दील करना पड़ा। लेकिन यहां ऑक्सीजन वितरण का सिस्टम ठीक न होने के कारण मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जब इस दिक्कत का सामना लगातार अन्य मरीजों ने भी किया तो कई मरीजों को आनन फानन में कोविड वार्ड-1 में शिफ्ट कर दिया गया। इसके बाद तो यह सिलसिला हर नए मरीज के साथ बना हुआ है।
इस मामले को लेकर पत्रिका ने जिला अस्पताल के तकनीकी अधिकारी से बात की तो सामने आया कि डीईआईसी भवन के फस्र्ट फ्लोर पर कोविड वार्ड संचालित हैं। जहां करीब 100 मरीज भर्ती हैं। सबसे आखिर के 20 प्वाइंट ऐसे हैं जहां ऑक्सीजन का फ्लो कम पहुंच पा रहा है। इसकी एक वजह ऊंचाई के साथ-साथ अधिक दूरी होना है। जिसके कारण इन पलंगों पर भर्ती मरीज को ऑक्सीजन कम मात्रा मिलने की समस्या आ रही है।
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24 साल की महिला की वार्ड शिफ्ट करने के दौरान हो गई थी मौत
हाल ही में एक मामला ऐसा भी सामने आ चुका है जब एक महिला मरीज को ऑक्सीजन कम मिलने की शिकायत पर परिजन कोविड वार्ड-1 में भर्ती करने ले जा रहे थे। वे जैसे-तैसे वार्ड के मुख्य द्वार तक पहुंच भी गए थे लेकिन इसी दौरान उसकी मौत हो गई। उक्त महिला शहर की ही निवासी थी, जिसकी उम्र मात्र 24 साल थी।
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मरने वाले मरीजों में सांस की समस्या वाले ज्यादा
जिला अस्पताल से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इन दिनों यहां भर्ती होने वाले 8 0 प्रतिशत मरीजों को सांस लेने में दिक्कत सामने आ रही है। यही कारण है कि वर्तमान में जिला अस्पताल के ऑक्सीजन सपोर्ट वाले कुल 147 बैड में से केवल 18 ही खाली हैं। जबकि आईसीयू के सभी 10 बैड फुल हैं।
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टेक्नीकल स्टाफ के अभाव में वेंटीलेटर उपयोगविहीन
डीईआईसी भवन में ही 20 बैड का कोविड आईसीयू पूरी तरह बनकर तैयार है। जहां 8 वेंटीलेटर भी मौजूद हैं। लेकिन इन्हें ऑपरेटर करने के लिए टेक्नीकल स्टाफ न होने से इनका उपयोग आज तक नहीं हो पाया है। ऐसे मेें बेहद गंभीर मरीजों को शिवपुरी मेडिकल कॉलेज रैफर करने के अलावा कोई विकल्प मौजूद नहीं है।
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संक्रमित और संदिग्ध सब एक साथ
कोविड वार्ड-2 में संक्रमित मरीजों के साथ संदिग्ध मरीजों को भी रखा जा रहा है। जिससे ऐसे मरीज भी कोरोना संक्रमण का शिकार हो रहे हैं जिन्हें पहले से बीपी, शुगर व हृदय रोग की शिकायत है। इन मरीजों के समक्ष एक और समस्या अटैंडर न होने की वजह से आ रही है। अस्पताल का प्रोटोकॉल है कि कोरोना संक्रमित मरीज के साथ अटैंडर नहीं रह सकता।ऐसे में यदि गंभीर मरीज सांस लेने में तकलीफ या अन्य मदद की जरूरत होती है तो उसे मदद नहीं मिल पाती।
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स्टाफ की कमी भी खल रही
कोविड वार्ड की क्षमता 8 0 बैड की है लेकिन यहां 100 मरीज तक भर्ती करना पड़ रहे हैं। वहीं इन्हें देखने मात्र दो ही डॉक्टर हैं। वहीं पैरामेडिकल स्टाफ की संख्या 3 है। जबकि वार्ड बॉय एक समय में एक ही रहता है। ऐसे में मरीजों को समय पर मदद नहीं मिल पाती।
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यह बोले जिम्मेदार
डीईआईसी भवन में संचालित कोविड वार्ड-2 में ऑक्सीजन फ्लो कम आने संबंधी जानकारी अब तक मेरे संज्ञान में नहीं आई है। यदि ऐसा कुछ है तो मैं संबंधित से बात कर इसे ठीक कराने का प्रयास करूंगा।
डॉ हर्षवर्धन जैन, सिविल सर्जन
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