फसल बेचने के बाद भुगतान के लिए भटक रहा अन्नदाता
एक महीने बाद भी पूरी राशि न मिलने से परेशान किसानकई किमी का सफर तय कर गांव से शहर आने के बाद खाली हाथ लौटना पड़ाबैंक प्रबंधन कह रहा, हमारे पास कैश की कमी, एक बार में 50 हजार से अधिक नहीं दे सकतेकिसान बोले, घर में बीमार, इलाज कराने पैसे की बहुत ज्यादा जरूरत
फसल बेचने के बाद भुगतान के लिए भटक रहा अन्नदाता
गुना. अन्नदाता कहे जाने वाला किसान इस समय सब तरफ से परेशान है। एक तरफ जहां उपज बेचने के बाद भी भुगतान नहीं हो पा रहा है तो वहीं अपने परिवार के बीमार सदस्यों का इलाज भी नहीं करवा पा रहा है। क्योंकि उसके पास नकद पैसे नहीं है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में इलाज के साधन भी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में किसान बेहद चिंतित नजर आ रहा है। आए दिन किसान अपनी उपज का भुगतान लेने 20-25 किमी दूर स्थित अपने गांव से शहर आ रहा है लेकिन उसे खाली हाथ ही लौटना पड़ रहा है। ऐसे मुश्किल समय में उसे समझ नहीं आ रहा कि वह आखिर क्या करे। क्योंकि इस समय कृषि उपज मंडियां भी बंद हैं। जहां से उसे नकद पैसे मिलने की आस थी।
कोरोना की दूसरी लहर ने इस बार सब कुछ अस्त व्यस्त कर दिया है। कोरोना काल के पिछले अनुभवों के बाद किसानों ने यह नहीं सोचा था कि इस बार उसे उपज बेचना भी इतना महंगा साबित होगा कि अपनी फसल का भुगतान लेने के लिए ही उसे बैंक के कईचक्कर लगाने पड़ेंगे और इसके बाद भी भुगतान नहीं होगा। यहां बता दें कि मार्च माह के बाद जैसे ही लगातार कोरोना संक्रमण बढ़ता चला गया उससे साफ लग रहा था कि आगे चलकर यह सभी गतिविधियां चालू रह पाना मुश्किल होगा। हुआ भी ऐसा ही और सबसे पहले मंडी व्यापारियों ने संक्रमण के खतरे को भांपते हुए डाक लगाने से मना करते हुए मंडी समिति को लिखित रूप में पत्र थमा दिया। तब से लेकर अब तक जिले की सभी कृषि उपज मंडियां बंद हैं। सिर्फ शासन के समर्थन मूल्य पर खरीदी किए जाने वाले केंद्र ही अभी चालू हैं। लेकिन वहां बेहद सीमित संख्या में किसानों की उपज खरीदी जा रही है। जिससे अधिकांश किसान तो अब तक अपनी फसल बेच ही नहीं पाए हैं। वहीं वे किसान जो किसी कारण से पंजीयन नहीं करा पाए थे वे तो अपनी फसल बेच भी नहीं पा रहे हैं। वहीं जिन किसानों ने अब तक समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेची है वह अभी तक भुगतान के लिए भटक रहे हैं।
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किसान की परेशानी उसकी जुबानी
मैंने डेढ़ लाख की फसल समर्थन मूल्य पर बेची थी।जिसका भुगतान लेने मैं अपने गांव से तीन बार को-ऑपरेटिव बैंक के चक्कर लगा चुका हूं लेकिन अभी तक एक रुपए भी नहीं मिला है। रास्ते में बाइक से आने पर पुलिस वाले चालान काट देते हैं।
लवकुश, किसान
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बैंक से गांव की 25 किमी है। पिछले चार दिनों से लगातार आ रहा हूं सिर्फ एक बार 20 हजार रुपए दिए हैं। शेष भुगतान अभी तक नहीं हुआ। बैंक वाले कहते हैं कि हमारे पास कैश कम आ रहा है। द्य
भैयालाल, किसान
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