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बदल बदलकर नहीं दी जा रही हरी सब्जी व दाल

कर्मचारियों की कमी, समय पर नहीं बंट रहा भोजनरोटी बनाने की नहीं है मशीन, बेलने वाली सिर्फ दो महिलाएं

गुनाJan 16, 2020 / 12:38 pm

Narendra Kushwah

बदल बदलकर नहीं दी जा रही हरी सब्जी व दाल

बदल बदलकर नहीं दी जा रही हरी सब्जी व दाल

गुना. सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों को नाश्ता व भोजन उपलब्ध कराने के लिए सरकार लाखों रुपए का बजट उपलब्ध करा रही है। लेकिन अस्पताल प्रबंधन द्वारा नियमित रूप से इस व्यवस्था की मॉनीटरिंग नहीं की जा रही है। जिसके कारण भर्ती मरीजों को मीनू अनुसार प्रतिदिन भोजन उपलब्ध नहीं हो रहा है। यहीं नहीं आवश्यकता के अनुरूप कर्मचारी न रखे जाने के कारण मरीजों को सही समय पर नाश्ता व भोजन नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा इस व्यवस्था में लगे कर्मचारियों का भी आर्थिक व शारीरिक शोषण किया जा रहा है। खास बात यह है कि बीते एक साल से अब तक एसडीएम, एडीएम, कलेक्टर से लेकर संयुक्त संचालक तथा खुद स्वास्थ्य मंत्री एक से अधिक बार गुना जिला अस्पताल का निरीक्षण कर चुके हैं। लेकिन भोजन बनाने से लेकर वितरण की इस व्यवस्था में सुधार नहीं आ सका है।
जानकारी के मुताबिक इस समय जिला अस्पताल में भोजन वितरण की संपूर्ण व्यवस्था खुद अस्पताल प्रबंधन ही देख रहा है। इस स्थिति में यह व्यवस्था ठीक ढंग से संचालित होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं है। यही हकीकत मंगलवार को पत्रिका पड़ताल में सामने आई है। भोजन वितरण व्यवस्था को लेकर शासन के स्पष्ट और लिखित आदेश हैं कि भर्ती मरीजों को चाय, नाश्ता से लेकर भोजन निश्चित समय पर तथा मीनू अनुसार सब्जी व दाल बदल बदलकर दी जाए। इसके अलावा भोजन बनाने में घरेलू गैस का उपयोग कतई न किया जाए। खाना बनाने से लेकर वितरण तक साफ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाए। लेकिन इनमें से एक भी दिशा निर्देश का पालन अस्पताल में नहीं किया जा रहा है।

किचिन में रखी थीं चप्पलें
जिला अस्पताल के विभिन्न वार्डों में भर्ती सैकड़ों मरीजों को वितरित होने वाले भोजन की स्वच्छता जानने के लिए पत्रिका ने किचिन पर जाकर देखा तो गेट के अंदर कर्मचारियों की चप्पलें रखी हुई थीं। एक नहीं बल्कि तीन घरेलू सिलेंडर रखे थे। रोटी सेकने के लिए एक ही चूल्हा मौजूद था। खास बात यह है कि बीते माह जब प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री यहां आए थे तब वे खुद तथा अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने बाहर ही चप्पल व जूते उतारकर अंदर प्रवेश किया था। यही नहीं भोजन बनाने व वितरण में लगे सभी कर्मचारी एप्रिन में थे जबकि मंगलवार को पत्रिका पड़ताल में यह कर्मचारी साधारण नजर आए। वार्डों में भर्ती मरीजों को भोजन बांटते समय कर्मचारी हाथों में गिलब्स तथा एप्रिन नहीं पहने थे। खुले हाथों से ही मरीजों को रोटी व सलाद दिया जा रहा था।

काफी लेट आता है खाना
सरकार ने सरकारी जिला अस्पताल में भर्ती मरीजों को नाश्ता व भोजन देने की व्यवस्था की है। जिसके लिए बकायदा डाइट चार्ट भी निर्धारित किया गया है। जिसके तहत सुबह 7 से साढ़े 7 बजे तक चाय, बिस्किट, 9 से साढ़े 9 बजे तक दूध, पोहा, केला दिया जाना है। दोपहर डेढ़ से 2 बजे तक भोजन का वितरण होना है। जिसमें सलाद, रोटी, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सब्जी लौकी, तुरई, गिल्की, टमाटर, सेम, भिंडी, पालक आदि। दालों में अरहर, खड़ी व मूंग तथा नमकीन दलिया दिया जाना है। शाम को साढ़े 3 से साढ़े 4 बजे तक चाय, बिस्किट देने के बाद रात्रि में 8 से साढ़े बजे तक भोजन का वितरण किया जाना आवश्यक है। लेकिन भर्ती मरीजों ने बताया कि उनके पास नाश्ता व खाना काफी देर से पहुंचता है। ऐसे में कई मरीज अटैंडर अपने स्तर पर ही भोजन व नाश्ते की व्यवस्था कर लेते हैं। जबकि आर्थिक रूप से अक्षम मरीजों के अटैंडरों को काफी देर तक अस्पताल के ही भोजन का इंतजार करना पड़ रहा है।

इस तरह हो रहा कर्मचारियों का शोषण
जानकारी के मुताबिक अस्पताल की रसोई में कुल 7 कर्मचारी इस समय काम कर रहे हैं। जिनमें दो महिला कर्मचारी भी हैं, जो सिर्फ रोटी बेलने का ही काम करती हैं। जिन्हें दो से ढाई हजार रुपए वेतन दिया जा रहा है। बताया जाता है कि यह महिलाएं बीते करीब 5 साल से यही काम कर रही हैं। दो कर्मचारी नियमित हैं जिन्हें 15 से 30 हजार रुपए वेतन दिया जा रहा है। मंगलवार को इनमेें से एक कर्मचारी अनुपस्थित था। बताया गया कि उक्त कर्मचारी करीब दिन की छुट्टी पर है। खास बात यह है कि दो महिलाओं को छोड़कर अन्य पुरुष कर्मचारी न सिर्फ रोटी बेलते हंै बल्कि सेकने से लेकर सब्जी भी बनाते हैं। पूरा खाना बनने के बाद पुरुष चार कर्मचारी अस्पताल के विभिन्न वार्डों में जाकर नाश्ता व भोजन वितरित करते हैं। दो नियमित कर्मचारियों को छोड़कर अन्य कर्मचारियों को काफी कम वेतन दिया जा रहा है जबकि उनके चार से पांच साल तक काम करते हुए हो गए हैं।

बर्तन धोने न कर्मचारी न उपयुक्त जगह
जिला अस्पताल में लंबे समय से भर्ती मरीजों के बर्तन धोने की समुचित व्यवस्था नहीं है। जिसके कारण मरीज अटैंडर यह बर्तन शौचालय व टॉयलेट में धो रहे थे। मरीजों के स्वास्थ्य व इंन्फेक्शन से जुड़ी इस गंभीर समस्या को मीडिया ने स्वास्थ्य मंत्री के अस्पताल भ्रमण के दौरान प्रमुखता से उठाया। जिसके बाद अस्पताल प्रशासन हरकत में आया और तब से ही इस व्यवस्था में लगा हुआ है। लेकिन वर्तमान में सभी वार्डों में यह व्यवस्था नहीं हो सकी है। वर्तमान में सिर्फ सर्जिकल वार्ड के ही मरीजों के बर्तन धोने के लिए अलग से स्टैंड बनाया गया है। जबकि पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड, चिल्ड्रन वार्ड, मेडिकल वार्ड तथा मेटरनिटी वार्ड में पृथक व्यवस्था बनाने में प्रबंधन जुटा हुआ है।

नाश्ता व खाना काफी देर बाद आता है, तब तक बहुत भूख लगने लगती है। कई बार तो बाहर से नाश्ता व खाना मंगाना पड़ता है। लेकिन वह बहुत महंगा पड़ता है। हर मरीज बाहर से खाना मंगाकर नहीं खा सकता इसलिए उसे इंतजार ही करना पड़ता है। जो भोजन दिया जा रहा है उसमेें हरी सब्जी व दाल बदल बदलकर नहीं दी जा रही। अधिकांशत: रोटी छोटी व जली हुई दी जाती हैं।
रामवती बाई, मरीज

मरीजों को जिस बर्तन में खाना दिया जाता है उन्हें ठीक से नहीं धोया जा रहा है। इसी वजह से अधिकांश मरीज अस्पताल के बर्तन में खाना नहीं ले पा रहे तथा मरीजों के बर्तन में उन्हें खाना नहीं दिया जाता। मेटरनिटी वार्ड जिला अस्पताल का सबसे बड़ा वार्ड है, जहां सबसे अधिक मरीज भर्ती हैं लेकिन इसी जगह सबसे लेट भोजन का वितरण किया जाता है।
मनोज जैन, अटैंडर

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