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गुना

कागजों में मिट रहा कुपोषण

आंगनवाड़ी केंद्रों में एक लाख 32 हजार से ज्यादा बच्चे दर्ज हैं, मगर उनकी उपस्थिति कागजों में ही पूरी की जा रही है। इसी तरह महिलाओं का पोषण आहार भी कागजों में चल रहा है।

गुनाJan 13, 2019 / 08:49 pm

brajesh tiwari

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आंगनवाड़ी केंद्रों में एक लाख 32 हजार से ज्यादा बच्चे दर्ज हैं, मगर उनकी उपस्थिति कागजों में ही पूरी की जा रही है। इसी तरह महिलाओं का पोषण आहार भी कागजों में चल रहा है।

गुना. कुपोषण मिटाने हर महीने लाखों रुपए का बजट पोषण आहार से रूप में ठिकाने लगाया जाता है, लेकिन कुपोषितों बच्चों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है। इतना ही नहीं आंगनवाड़ी केंद्रों में एक लाख 32 हजार से ज्यादा बच्चे दर्ज हैं, मगर उनकी उपस्थिति कागजों में ही पूरी की जा रही है। इसी तरह महिलाओं का पोषण आहार भी कागजों में चल रहा है। महिला एवं बाल विकास विभाग हर महीने लाखों रुपए के बिल पास करता है, लेकिन न तो कुपोषित बच्चों के आंकड़े कम हो रहे हैं ना ही आंगनबाड़ी केंद्रों का लाभ जरूरतमंदों को मिल पा रहा है। इतना ही नहीं जिले के तीन परियोजनाएं बिना अधिकारी के चल रही हैं। गुना परियोजना में राजकुमारी जैन हैं, लेकिन वे बीमार होने की वजह से ज्यादा काम नहीं कर पा रही है। राघौगढ़ को छोड़कर सभी परियोजनाएं सुपरवाइजरों के भरोसे हैं। आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चे नहीं पहुंचे रहे हैं। उपस्थिति कागजों में पूरी कर नौनिहालों के पोषण आहार में सेंध लगाने का खेल चल रहा है। आंगनवाड़ी केंद्रों पर सरकार वर्कर और हेल्पर पर हर महीने 15 हजार खर्च करती है। पोषण आहार पर लाखों खर्च करती है। फिर भी जिम्मेदार ध्यान नहीं देते।

तीन परियोजनाएं अधिकारी विहीन
जिले में महिला एवं बाल विकास विभाग की तीन परियोजनाएं हैं। आरोन, चांचौड़ा और बमोरी परियोजना में सीडीपीओ नहीं है। सीडीपीओ विशाल आनंद श्रीवास्तव की प्रतिनियुक्ति के बाद से अब और अभाव हो गया है। राघौगढ़ में विजय कोली और गुना में राजकुमारी जैन हैं, मगर जैन गंभीर बीमारी से पीडि़त हैं। इस वजह से जिलेभर की 1660 आंगनवाड़ी केंद्र अफसरों के अभाव में पर्यवेक्षकों के माध्यम से देखे जा रहे हैं। जिला परियोजना अधिकारी जेएस वर्मा मानते हैं कि परियोजना अफसरों केअभाव में काम मुश्किल है, लेकिन पर्यवेक्षक हैं, उनसे व्यवस्था बनाए हैं। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आंगनवाड़ी केंद्रों के खुलने और बंद होने का समय भी पाबंद नहीं हो पाता। जिन परियोजनाओं में पर्यवेक्षकों को सीडीपीओ का प्रभार दिया है। लेकिन इस प्रभार से व्यवस्था नहीं सुधर पा रही है। पर्यवेक्षक भी नियमित रूप से केंद्रों का भ्रमण करने नहीं पहुंचतीं।
कुपोषण मिटाने के लिए सामाजिक संस्थाएं भी रहीं पीछे
गुना शहर से लेकर गांवों में कुपोषित बच्चों का आंकड़ा बढ़ रहा है, लेकिन बच्चों को पर्याप्त पोषण मिले, इसके लिए विभागों के अलावा सामाजिक संस्थाएं भी आगे नहीं आ रही है। एक समय गुना शहर में कई संस्थाओं ने कुपोषित बच्चों को गोद लिया था, लेकिन वे संस्थाएं फिलहाल गायब हैं।

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