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गुना

25 हजार से अधिक आदिवासियों की अपनी पहचान का संकट,राजनीति में फंसा…

– न ये रह पाए पिछड़े वर्ग में और न अनुसूचित जनजाति में
– पोर्टल से खेरुआ जाति हटाई
– आदेश के बाद भी न तो शिविर लगे और न ही बन पाए जाति प्रमाण पत्र,मामला मोगिया जनजाति का…

गुनाDec 02, 2019 / 01:13 pm

praveen mishra

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गुना। जिले की विभिन्न विधानसभा के एक सैकड़ा से अधिक गांवों में निवास करने वाले मोगिया जनजाति के 25 हजार से अधिक लोगों को अपनी पहचान का संकट खड़ा हो गया है। इसकी वजह ये है कि इनकी पहचान के लिए बनने वाले जाति प्रमाण पत्र कांग्रेस और भाजपा की आपसी राजनीति में फंस गए हैं।
प्रदेश सरकार के मंत्री और वरिष्ठ अफसरों के निर्देश के बाद भी अभी तक मोगिया जनजाति के लोगों के निवास करने वाले किसी भी गांव में जाति प्रमाण पत्र के लिए शिविर तक नहीं लग पाया है। खास बात तो ये है कि अभी तक इनको प्रदेश शासन खेरुआ जाति में मानकर पिछड़ा वर्ग का लाभ दे रहा था, हाल ही में मप्र शासन के पोर्टल से उनको ोरुआ जाति से हटा दिया है।
वर्तमान में ये 25 हजार लोग न तो विशेष अनुसूचित जनजाति में रहे और न ही पिछड़े वर्ग में। जाति प्रमाण पत्र न होने से मोगिया जनजाति के हजारों छात्र-छात्राएं छात्रवृत्ति से वंचित हैं।
ये है मामला
सूत्रों ने बताया कि वर्ष 1950 से आदिवासी समाज में शामिल मोगिया जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया था। गुना जिले के विभिन्न विधानसभाओं के ग्राम कर्रा खेड़ा, मसुरिया, भाऊपुरा, बेरखेड़ी, भैरोंघाटी, चक हनुमंतपुरा, टकनेरा, रूठियाई, भदौरी जैसे सैकड़ों गांवों में इस जाति के लोग निवास करते हैं। इनको पहले अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी किया।
इस जाति के लोगों के अनुसार सात-आठ साल पूर्व तत्कालीन प्रदेश सरकार ने इस जाति के लोगों को खेरुआ जाति का मानकर पिछड़ा वर्ग में शामिल कर दिया। खास बात ये रही कि ऐसा करने से जहां पिता को अनुसूचित जनजाति और उसके पुत्र को पिछड़ा वर्ग में माना गया था।

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जाति बदलने को लेकर छिड़ी थी लड़ाई
बताया जाता है कि सन् 2017 में पिता-पुत्र की जाति बदलने का खुलासा पत्रिका ने किया था, जिसके बाद तत्कालीन प्रदेश सरकार हरकत में आई थी। गुना से लेकर प्रदेश सरकार तक लड़ाई लडऩे का काम इनकी ओर से वनवासी संघ व भाजपा से जुड़ेे धर्मस्वरूप भार्गव ने लड़ाई लड़ी।
तत्कालीन प्रदेश सरकार की ओर से एक अधिकारियों का दल गुना आया और उसने दस्तावेजों की जांच पड़ताल के बाद माना कि यह लोग अनुसूचित जनजाति में ही आते हैं।

सरकार बदलते ही कांग्रेस नेता सक्रिय
सूत्रों ने जानकारी दी कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद स्थानीय स्तर पर भाजपा नेता से यह मुद्दा छुड़ाने के लिए कांग्रेस के कुछ नेता सक्रिय हुए और उन्होंने मोगिया जाति के आदिवासियों को साथ में ले जाकर प्रदेश के श्रम मंत्री व बमौरी विधानसभा क्षेत्र के विधायक महेन्द्र सिंह सिसौदिया से मुलाकात कराई।
सिसौदिया ने 2 अप्रैल 2०19 को इन आदिवासियों की समस्याओं को सुनने के बाद कलेक्टर के नाम एक पत्र भेजा था जिसमें उल्लेख किया था कि गुना जिले में निवासरत मोगिया जाति को अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र जारी नहीं किए हैं, मोगिया जाति के लोगों ने शासन के आदेशानुसार गुना जिले में प्रमाण पत्र जारी करने की मांग की है, इनको जल्द अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र जारी कर कार्रवाई से अवगत कराया जाए।
कलेक्टरों को दिए थे आदेश
सूत्रों ने बताया कि मध्यप्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन विभाग के तत्कालीन अपर सचिव केके कातिया ने कलेक्टर गुना और राजगढ़ को जिले में निवासरत मोगिया जाति को अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र जारी करने के आदेश दिए थे।
इन पत्रों के बाद 10 अप्रैल 2019 को जिले के सभी एसडीएम को जिला योजना अधिकारी महेद्र नवैया ने एक पत्र के जरिए मोगिया जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी करने को कहा था। मजेदार बात ये है कि मंत्री और सामान्य प्रशासन विभाग के तत्कालीन अपर सचिव के पत्र के बाद भी एक भी जगह शिविर नहीं लग पाए।
नहीं किया आदेश का पालन
खास बात ये है कि किसी भी एसडीएम ने इन आदेशों का पालन नहीं किया, जिसका परिणाम ये है कि जिले की किसी तहसील में इस जाति के लोगों को प्रमाण पत्र नहीं मिले। जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलने से आदिवासी सरकारी योजनाओं से वंचित तो हैं ही साथ ही स्कूली बच्चे भी छात्रवृत्ति एवं शासन की योजनाओ का लाभ नहीं ले पा रहे हैं।
जहां एक ओर कांग्रेस के कुछ नेता उनके जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए सक्रिय हैं तो वहीं भाजपा के कुछ नेता। यह बात अलग है कि दोनों की राजनीति के चलते प्रमाण पत्र तो दूर उनकी कोई पीड़ा सुनने तक को तैयार नहीं हैं।
बगैर जांच कराए खारिज कर दिए आवेदन
बताया जाता है कि मोगिया जाति के युवाओं ने अपनी पहचान पाने के लिए जि मेदारों का दरवाजा खटखटाया लेकिन नतीजा बेअसर रहा। सबसे ज्यादा परेशानी चांचौड़ा, गुना और बमौरी तहसील में है जहां अधिकारियों ने बिना पटवारी से जांच करवाए जाति प्रमाण पत्र आवेदन पत्र खारिज कर दिए।
मु यमंत्री की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं अफसर
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ सरकार जहां आदिवासियों के लिए कई योजनाएं संचालित करने में जुटी हुई है वहीं उनके मातहत मु यमंत्री कमलनाथ की मेहनत पर पानी फेरने में जुटे हुए हैं। अपनी पहचान पाने दर दर भटकने को मजबूर मोगिया समाज के लोगों ने अब सरकार के विरुद्ध आंदोलन छेडऩे का मन बना लिया है।

अफसर तक कन्फ्यूजन में
इस मामले में जब प्रशासन के एक अधिकारी से पूछा गया तो उनका कहना था कि मोगिया जाति अनुसूचित जनजाति में आती है। वहीं मोघिया जाति अनुसूचित जनजाति में। दोनों जातियों के बीच कन् यूजन के कारण अफसर जाति प्रमाण पत्र जारी करने में हिचक रहे हैं। वहीं इस संबंध में मोगिया समाज के सचिव रामहेत मोगिया का कहना था कि हमारी जल्द सुनवाई नहीं हुई तो हम समाज के बीच बैठकर कोई बड़ा निर्णय करेंगे।

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